मुफ्त में चीजें देने के राजनीतिक दलों के वादे लोकतंत्र के लिए अच्छे नहीं: उपराष्ट्रपति
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मुफ्त में चीजें देने के राजनीतिक दलों के वादे लोकतंत्र के लिए अच्छे नहीं: उपराष्ट्रपति

नायडू ने सवाल किया, ‘राजनीतिक दल बिना यह महसूस किए चुनाव से पहले अनोखे वादे कर रहे हैं कि उन्हें क्रियान्वित भी किया जा सकता है या नहीं.'

उपराष्ट्रपति वैंकेया नायडू (फाइल फोटो)

अमरावती (आंध्रप्रदेश): उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने बुधवार को कहा कि चुनाव में ‘मुफ्त में’ चीजें बांटने के राजनीतिक दलों के वादे लोकतंत्र के लिए अच्छे नहीं हैं. उन्होंने आश्चर्य जताया कि इसकी जवाबदेही कहां है. नायडू ने सवाल किया, ‘राजनीतिक दल बिना यह महसूस किए चुनाव से पहले अनोखे वादे कर रहे हैं कि उन्हें क्रियान्वित भी किया जा सकता है या नहीं.’ उन्होंने प्रश्न किया,‘यदि कल वे इन वादों को पूरा नहीं कर पाए तो कौन जवाबदेह होगा? क्या कोई जवाबदेही है?’

अपने स्वर्ण भारत ट्रस्ट में संवाददाताओं से अनौपचारिक बातचीत में नायडू ने सुझाव दिया कि राजनीतिक दलों को पहले राज्य की वित्तीय स्थिति, उसके कर्ज, करों से मिलने वाली आय और चुनावी वादों को पूरा करने के लिए जरुरी धनराशि का विश्लेषण करना चाहिए.

'पहले सोचना चाहिए कि वादों को पूरा करने के लिए संसाधन कैसे जुटाएंगे'
उपराष्ट्रपति ने कहा,‘उन्हें पहले सोचना चाहिए कि वे वादों को पूरा करने के लिए जरुरी संसाधन कैसे जुटाएंगे. यह राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय दोनों ही प्रकार के दलों पर लागू होता है.’

उन्होंने कहा कि पार्टियां चुनाव से पहले मनमाने वादे करती रहती हैं कि वे ये दे देंगी, वो दे देंगी , यह माफ कर देंगी, वह माफ कर देंगे. चुनाव के बाद वे दावा करती हैं कि उन्होंने एक ही बार में हर चीज माफ करने का वादा नहीं किया था और वे ऐसा चरणबद्ध तरीके से करेंगी.

नायडू ने कहा,‘सत्ता में पहुंचने वाले दल कहते हैं कि वित्तीय दशा अच्छी नहीं है क्योंकि उनके पूर्ववर्ती ने उसे (अर्थव्यवस्था) को बर्बाद कर दिया. यह तर्कसंगत भी हो सकता है, मैं इनकार नहीं करता. ’ उन्होंने कहा कि लेकिन राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त में चीजें देने के किये जाने वाले वादे लोकतंत्र के लिए अच्छे नहीं हैं.

(इनपुट - भाषा)

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