नक्सलियों के चंगुल से जवान को छुड़ा लाई पत्नी, जवान बोला-"उम्मीद नहीं थी जिंदा बचूंगा"
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नक्सलियों के चंगुल से जवान को छुड़ा लाई पत्नी, जवान बोला-"उम्मीद नहीं थी जिंदा बचूंगा"

नक्सलियों ने छह दिन पहले बीजापुर के सुकमा जिले के जगरगुंडा निवासी संतोष कट्टम को अगवा कर लिया था. संतोष कट्टम पुलिस विभाग में इलेक्ट्रीशियन के तौर पर भोपालपटनम में तैनात हैं. संतोष छुट्टी लेकर बीजापुर आया था तभी वह लॉकडाउन में फंस गया. उसकी पत्नी नक्सलियों के चंगुल से अपने पति को छुड़ा लाई. एक पत्नी और बेटी की गुहार और गांव वालों के दबाव में नक्सलियों ने अपहृत पुलिस के जवान संतोष कट्टम को छोड़ दिया है. 

संतोष कट्टम

बीजापुर: छह दिन लगातार दर-दर भटकने और ठोकरें खाने के बाद आखिर एक पत्नी की जीत हुई. उसकी मेहनत रंग लाई. एक पत्नी नक्सलियों के चंगुल से अपने पति को छुड़ा लाई. एक पत्नी और बेटी की गुहार और गांव वालों के दबाव में नक्सलियों ने अपहृत पुलिस के जवान संतोष कट्टम को छोड़ दिया है. नक्सलियों ने छह दिन पहले बीजापुर के सुकमा जिले के जगरगुंडा निवासी संतोष कट्टम को अगवा कर लिया था. संतोष की रिहाई के बाद नक्सली नेताओं ने कहा कि सरकार इसे अपनी जीत ना समझे. 

सुकमा जिले के जगरगुंडा निवासी संतोष कट्टम पुलिस विभाग में इलेक्ट्रीशियन के तौर पर भोपालपटनम में तैनात हैं. संतोष छुट्टी लेकर बीजापुर आया था तभी वह लॉकडाउन में फंस गया. संतोष चार मई को गोरना में आयोजित वार्षिक मेला देखने गया था. गोरना में मंदिर दर्शन के बाद संतोषअपने दोस्त का इंतजार कर रहा था कि तभी ग्रामीणों की वेशभूषा में मौजूद कुछ नक्सलियों को उस पर शक हुआ. जब नक्सलियों को पता चला कि संतोष पुलिस का जवान है तो उसे अगवा कर लिया गया. नक्सलियों ने उसके दोनों हाथ पीछे बांध दिए गए और आंखों पर पट्टी बांध दी. 

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6 दिन तक आंखों पर पट्टी बांधे वह जंगल में भटकता रहा. उसके दोनों हाथ पीछे से बंधे हुए थे. हथियारबंद नक्सली सख्ती से पहरा दे रहे थे. उसकी बंद आंखों को नहीं पता था कि वह कितना चला, कहां पहुंचा, उसके आसपास कौन है. उसको हर पल मौत का खौफ सता रहा था. उसे हर वक्त ये लगता था कि उसे किसी भी वक्त गोली मार दी जाएगी. लेकिन बीजापुर के अपहृत जवान संतोष कट्टम की किस्मत अच्छी थी कि नक्सलियों ने उसे छोड़ दिया. लेकिन संतोष कि रिहाई इतनी आसान नहीं थी. 

उसकी पत्नी सुनीता और दस साल की मासूम बेटी भावना उसकी रिहाई के लिए दर-दर भटकते रहे. उनकी अपील पर पत्रकारों की टीम चार दिनों तक दुर्गम जंगलों की खाक छानती रही. कोई भी संतोष की जानकारी देने को तैयार नहीं था. आखिरकार कुछ गांव वालों का दिल पसीजा और वो नक्सलियों तक उनकी बात पहुंचाने को राजी हो गए. इसके बाद रविवार को जंगल से संदेश आया कि संतोष पर निर्णय लेने के लिए नक्सली अपने इलाके में जनअदालत लगाने जा रहे हैं. इस जनअदालत में संतोष की पत्नी और बेटी को भी बुलाया गया. यहां करीब 1500  ग्रामीणों की मौजूदगी में संतोष को जनअदालत में पेश किया गया.

जन अदालत में नक्सलियों ने छह दिनों तक संतोष से की पूछताछ का ब्यौरा पेश किया. फिर ग्रामीणों ने उससे पूछताछ की. जन अदालत में नक्सलियों ने माना कि बेशक संतोष पुलिस की नौकरी में हो लेकिन, उसने कभी किसी के साथ अत्याचार नहीं किया. इसके बाद नक्सलियों ने उसे पुलिस की नौकरी छोड़ने की चेतावनी भी दी. बाद में आमराय से नक्सलियों ने संतोष कट्टम को छोड़ दिया, अपहरण के वक्त उसके पास जो सामान था वो भी उसे लौटा दिया गया. 

उम्मीद नहीं थी कि जिंदा बचूंगा- संतोष
नक्सियों के चंगुल से छूटे संतोष कट्टम को पत्रकारों ने पुलिस अफसरों के सुपुर्द किया. इस दौरान वह बार-बार नर्वस होता रहा. उसने कहा-छह दिन से आंखों पर जो पट्टी बंधी थी वह अब खुली है. बंधे हाथों और आंख पर पट्टी के साथ इस दौरान कितने पहाड़, नदी-नाले, जंगल, गांव पार किए पता ही नहीं. कभी किसी गांव में ठहरने का मौका नहीं मिला. उसने बताया कि उसे हमेशा जंगल में ही सोना पड़ रहा था. उसे खाने में चिड़िया का मांस और सूखी मछली दी जाती थी. उसने बताया कि जब नक्सली लीडर आकर पूछताछ करते तब भी आंख से पट्टी नहीं हटाई जाती थी. संतोष का कहना है कि उसे उम्मीद नहीं थी वह जिंदा बच पाएगा. हालांकि इस दौरान नक्सलियों ने ना तो उसके साथ मारपीट की और ना ही बुरा बर्ताव किया. संतोष का कहना है कि उसने अब पुलिस की नौकरी छोड़ खेतीबाड़ी कर जीवन यापन करने का फैसला लिया है.

सरकार इसे अपनी जीत न समझे - नक्सली नेता
संतोष को छोड़े जाने के बाद नक्सलियों के गंगालूर एरिया कमेटी के सचिव दिनेश मोड़ियाम ने संदेश भेजा. जिसमें कहा गया है कि मानवता के आधार पर जवान को रिहा किया गया है. सरकार इसे अपनी जीत न समझे. हम न सभी जवानों के दुश्मन हैं न उनकी हत्या करते हैं. जवान नौकरी छोड़कर गांव आ जाएं. सरकार की गुलामी करना और जनता पर अत्याचार करना बंद कर दें. लड़ना ही है तो बॉर्डर में जाकर उन विदेशी ताकतों से लड़ें जो देश पर हमला करने की कोशिश कर रहे है. नक्सली नेता ने अपने संदेश में कहा कि पुलिस की नौकरी कर सरकार की गुलामी से कोई मतलब नही है. अगर कोई जवान वापस आकर गांव में जीना चाहता है तो उसका उनका संगठन स्वागत करेगा.

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