MP: एक ऐसा गांव जहां महीने के 7 दिन 3 फीट के कमरे में गुजारती हैं औरतें, जानिए क्यों?
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MP: एक ऐसा गांव जहां महीने के 7 दिन 3 फीट के कमरे में गुजारती हैं औरतें, जानिए क्यों?

राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले पंडो जनजाति कि महिलाएं इस रिवाज की वजह से बदतर जिंदगी जीने को मजबूर हैं. यहां की एक महिला प्यारो बाई बताती हैं कि पुरानी परंपरा की वजह से ये औरतें ऐसा जीवन जीने को मजबूर हैं. ये महिलाएं मासिक धर्म के समय 7 दिनों तक गुफा नुमा घर में रहती हैं.

गुफा नुमा कमरा जिसकी लंबाई लगभग 3 फिट होती है

सूरजपुर: जहां एक तरफ पूरे देश में आज महिला दिवस मनाया जा रहा है और महिलाओं के सशक्तिकरण की बातें की जा रही हैं वहीं दूसरी तरफ महिलाओं के कुछ वर्ग ऐसे हैं जो समाज के ठेकेदारों के द्वारा बनाए गए रिवाजों की वजह से सामाजिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित हो रही हैं. सूरजपुर के पंडो नगर में आज भी एक भ्रांती के कारण औरतें मासिक धर्म के समय 7 दिनों तक गुफा नुमा घर में रहती हैं जिसकी लंबाई लगभग 3 फीट होती है जिसमें सही ढंग से चलना तो दूर बैठना भी बहुत मुश्किल है.

राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले पंडो जनजाति कि महिलाएं इस रिवाज की वजह से बदतर जिंदगी जीने को मजबूर हैं. यहां की एक महिला प्यारो बाई बताती हैं कि पुरानी परंपरा की वजह से ये औरतें ऐसा जीवन जीने को मजबूर हैं. जबकि यहां के स्थानीय लोगों के अनुसार घर में इनके देवी देवताओं का मंदिर होता है और इनका मानना है कि मासिक धर्म के समय वे अपवित्र होती हैं, ऐसे में यदि वह घर में रहेंगी तो उनके देवी देवता नाराज हो जाएंगे. यही वजह है कि इस गांव के सभी घर में 2 दरवाजे बने हुए हैं.

महिलाओं के मासिक धर्म के समय वह मुख्य द्वार से ना जाकर दूसरे दरवाजे से जाती हैं और वहीं 7 दिन बिताती हैं. इस दौरान घर के अन्य सदस्य उनके हाथ का खाना तो दूर पानी भी नहीं पीते. स्थानीय लोगों ने बताया कि यह परंपरा पिछले कई वर्षों से चली आ रही है और जो लोग इस परंपरा को नहीं मानते उन्हें विपत्तियों का सामना करना पड़ता है. 

इसे जागरूकता की कमी कहें या शिक्षा का अभाव. इस गांव की महिलाओं को इस रिवाज से कोई परहेज नहीं है. उनके अनुसार पिछले कई वर्षों वह इस परंपरा को निभा रही हैं और अब उन्हें महीने के उन 7 दिनों में इस समस्या को झेलने की आदत पड़ गई है.

पंडो जनजाति राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र माने जाते हैं. इनके उत्थान के लिए राज्य और केंद्र सरकार प्रत्येक वर्ष करोड़ों रुपए खर्च करती है. बावजूद इसके आज भी इस जनजाति की महिलाओं की स्थिति जस की तस है. ऐसे में जरूरत है कि सरकार के द्वारा इन लोगों को जागरूक किया जाए और ऐसी परंपरा से निजात दिलाई जाए.

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