विधानसभा चुनावों में महागठबंधन के लिए क्षत्रपों के साथ कांग्रेस की मुलाकातों का दौर जारी
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विधानसभा चुनावों में महागठबंधन के लिए क्षत्रपों के साथ कांग्रेस की मुलाकातों का दौर जारी

मध्य प्रदेश के दोनों मुख्य राजनीतिक दल बीजेपी और कांग्रेस ने इसी साल के अंत में विधानसभा चुनाव और 2019 के आम चुनाव के लिए कमर कस ली है.

अजय सिंह ने कहा कि महागठबंधन से 2019 के चुनावों पर व्यापक असर पड़ेगा.(फाइल फोटो)

नई दिल्ली/भोपाल: मध्य प्रदेश में चुनावी बिसात बिछ चुकी है. राज्य के दोनों मुख्य राजनीतिक दल बीजेपी और कांग्रेस ने इसी साल के अंत में विधानसभा चुनाव और 2019 के आम चुनाव के लिए कमर कस ली है. इन सबके बीच कांग्रेस की ओर से लगातार क्षेत्रीय पार्टियों (क्षत्रप) को साधने की कोशिश की जा रही है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने बुधवार को चुनावी गठबंधन को लेकर बड़ा बयान दिया है. अजय सिंह ने कहा कि 2019 के आम चुनाव के लिए महागठबंधन के मद्देनजर कांग्रेस आलाकमान की सपा-बसपा आदि से मुलाकातों का दौर जारी है. उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के आगामी विधानसभा चुनावों में अगर महागठबंधन होता है, तो ये एक अच्छी शुरुआत होगी. अजय सिंह ने कहा कि महागठबंधन से 2019 के चुनावों पर व्यापक असर पड़ेगा. आपको बता दें कि 15 सालों से सत्ता से वनवास भोग रही कांग्रेस इस बार विधानसभा चुनावों को जीतने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ना चाहती है. इसके चलते कांग्रेस तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव में ही महागठबंधन को आजमाना चाह रही है.

क्षत्रपों के वोट बैंक से हो सकता है फायदा
गौरतलब है कि पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 44.88 फीसदी और कांग्रेस को 36.38 फीसदी वोट मिले थे. वहीं, बहुजन समाज पार्टी के पास 6.29 फीसदी और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के पास एक फीसदी वोट था. पिछले विधानसभा चुनाव के नतीजों को गौर से देखें, तो बसपा, जीजीपी और अन्य ने 80 से अधिक सीटों पर 10,000 से ज्यादा वोट हासिल किए. इतने वोट हार-जीत तय करने के लिए बहुत होते हैं. इसीलिए इस चुनाव में कांग्रेस क्षत्रपों के साथ  महागठबंधन को लेकर उतावली नजर आ रही है. वहीं, महागठबंधन को लेकर क्षत्रपों ने अब तक चुप्पी साध रखी है. बसपा और जीजीपी का वोट बैंक देखने में भले ही छोटा हो, लेकिन यह पूरे प्रदेश में बिखरा न होकर, खास जिलों और इलाकों में केंद्रित है. ऐसे में उन इलाकों में ये पार्टियां हार-जीत का फैसला करने में सक्षम हैं.

62 सीटों पर बीएसपी ने पाए थे 10,000 से ज्यादा वोट
अगर मध्यप्रदेश विधानसभा के चुनावी नक्शे पर बीएसपी को गौर से देखें तो यह उत्तर प्रदेश से सटे जिलों में खासा असर रखती है. अगर जिलों के हिसाब से देखें तो मुरैना, भिंड, ग्वालियर, दतिया, शिवपुरी, अशोकनगर, सागर, टीकमगढ़, छतरपुर, पन्ना, सतना, रीवा, सीधी और सिंगरौली 14 जिलों में बीएसपी का खास असर है. यानी एक तिहाई मध्यप्रदेश में बीएसपी की पकड़ है. विधानसभा चुनाव 2013 में 62 विधानसभा सीटें ऐसी रहीं, जहां बीएसपी के प्रत्याशी ने 10,000 से ज्यादा वोट हासिल किए. इन 62 में से 17 सीटें ऐसी हैं जहां बीएसपी को 30,000 से ज्यादा वोट मिले हैं. बहुत सी सीटें ऐसी भी हैं जहां बीएसपी प्रत्याशी दूसरे नंबर पर रहे.

10 सीटों पर जीजीपी को 10,000 से अधिक वोट
वहीं, राज्य की गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का वैसे राज्य की राजनीति में खास असर नहीं है. लेकिन जब बात अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटें यानी आदिवासी बहुल सीटों की आती है, तो यहां जीजीपी ताकतवर दिखाई देती है. पिछले विधानसभा चुनाव में जीजीपी ने ब्योहारी, जयसिंहनगर, जैतपुर, पुष्पराजगढ़, शाहपुरा, डिंडोरी, बिछिया, निवास, केवलारी और लखनादौन सीटों पर 10,000 से ज्यादा वोट हासिल किए. पिछले विधानसभा चुनाव में मध्यप्रदेश के चंबल और बुंदेलखंड इलाके में बसपा के पुराने नेता फूल सिंह बरैया की पार्टी और आदिवासी इलाकों में अन्य छोटी आदिवासी पार्टियों और निर्दलीयों ने भी अपनी ताकत दिखाई थी.

गठबंधन कांग्रेस की मजबूरी
कांग्रेस की मजबूरी यह है कि बसपा का दलित वोटर और जीजीपी का आदिवासी वोटर पारंपरिक रूप से कांग्रेस के वोटर रहे हैं. ऐसे में अलग लड़कर ये पार्टियां जो वोट हासिल करती हैं, उसका बड़ा हिस्सा कांग्रेस की थैली से निकलता है. ऐसे में कांग्रेस चाहती है कि अगर गठबंधन हो जाए तो उसे 15 साल की सत्ताविरोधी लहर से थकी बीजेपी को हराना आसान हो सकता है. जाहिर है कि बीजेपी भी चाह रही होगी कि यह गठबंधन न हों. दोनों बड़े खिलाड़ियों की यही रस्साकशी तीसरे दलों को और ज्यादा मोलभाव करने की ताकत दे रही है.

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