Sepsis Detection Tool: एम्स भोपाल के वैज्ञानिकों ने सेप्सिस जैसी जानलेवा बीमारी की पहचान के लिए एक नई तकनीक विकसित की है. इस तकनीक की मदद से अब केवल 15 से 20 मिनट में शरीर में मौजूद गंभीर संक्रमण का पता लगाया जा सकेगा.
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Bhopal AIIMS: जब किसी इंसान के शरीर में संक्रमण बहुत ज्यादा फैल जाता है, तो उसका इम्यून सिस्टम कमजोर पड़ने लगता है और धीरे-धीरे सारे अंगों पर असर होने लगता है. अगर वक्त रहते इलाज न मिले, तो मरीज की जान भी जा सकती है. इस खतरनाक स्थिति को सेप्सिस कहा जाता है. अब तक डॉक्टरों के पास ऐसा कोई तरीका नहीं था जिससे सेप्सिस का कुछ ही मिनटों में पता चल सके, इसलिए कई बार इलाज में देर हो जाती थी और मरीज की मौत हो जाती थी.
पहले जब किसी मरीज की संक्रमण से मौत हो जाती थी, तो पोस्टमार्टम के बाद संक्रमण की पुष्टि के लिए कल्चर रिपोर्ट का इंतजार करना पड़ता था, जिसमें 3 से 4 दिन लग जाते थे. लेकिन अब एम्स भोपाल के डॉक्टरों ने एक नई तकनीक विकसित की है, जिसमें प्रोकैल्सिटोनिन टेस्ट (PCT) के जरिए 15 से 20 मिनट में ही संक्रमण का स्तर पता लगाया जा सकता है. यह खोज अमेरिका के बाल्टीमोर शहर में हुए 77वें अमेरिकन एकेडमी ऑफ फॉरेंसिक साइंसेज सम्मेलन में पेश की गई.
प्वाइंट ऑफ केयर टूल
एम्स भोपाल के पारिस्थितिक मेडिसिन और टॉक्सिकोलॉजी विभाग की प्रमुख डॉ. अरनीत अरोरा से मिली जानकारी के मुताबिक, यह नया 'प्वाइंट ऑफ केयर टूल' इलाज की दिशा में बड़ा बदलाव ला सकता है. यह तकनीक पोस्टमार्टम के दौरान मृतक के शरीर से सिर्फ एक बूंद खून और अंग का छोटा सा नमूना लेकर टेस्ट करती है. इसके जरिए 10 से 15 मिनट में संक्रमण की ग्रेडिंग मिल जाती है, जिससे पता चलता है कि संक्रमण कितना गंभीर था.
इतनी देर में लगेगा पता
इस ग्रेडिंग स्केल में अगर नतीजे 10 से ऊपर आते हैं, तो यह संकेत है कि शरीर में बहुत तेज संक्रमण फैला था. यह टेस्ट अब जिंदा मरीजों के लिए भी काम आ सकता है, जैसे कि अस्पतालों में भर्ती मरीज जिनमें सेप्सिस का खतरा हो. पहले डॉक्टर सिर्फ कल्चर रिपोर्ट पर निर्भर रहते थे, जो एक दिन बाद आती थी, लेकिन अब 15 से 30 मिनट में ही स्थिति स्पष्ट हो सकती है.
अन्य देशों में तकनीक
यह रिसर्च अभी सिर्फ एम्स भोपाल में ही की गई है और देश में अभी यह तकनीक व्यापक रूप से उपलब्ध नहीं है. पहले जो टेस्ट 3 घंटे में होते थे, वह ऑटोप्सी के लिए उपयुक्त नहीं थे. विदेशों में भी सिर्फ जर्मनी और फ्रांस जैसे कुछ ही देशों में ये तकनीक इस्तेमाल में है. एम्स की टीम इसे भारत में इलाज के स्तर को सुधारने की दिशा में बड़ा कदम मान रही है.
जान बचाने में अहम
एम्स भोपाल के डायरेक्टर प्रो. अजय सिंह का कहना है कि पहले डॉक्टरों को मरीज की हालत की गंभीरता का अंदाजा लगाने में समय लगता था. लेकिन अब इस टेस्ट से नंबर के आधार पर संक्रमण का स्तर तुरंत पता चल जाता है. इस पर अब तक 100 मरीजों पर टेस्ट किया जा चुका है और 300 और केस के नतीजों के बाद इसे और मजबूत किया जाएगा. इसकी लागत 1000 से 1300 रुपये के बीच होगी, जो मरीज की जान बचाने में अहम साबित हो सकती है.
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