बचपन में राहुल को रुई में रखना पड़ता था और जरा सा भी हाथ लगने पर उसके शरीर की हड्डियां टूट जाती थीं
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रायसेन (विजय सिंह राठौर): कहते हैं जिनके हौसलों में उड़ान हो, जिनको कुछ कर गुजरने का जुनून, वही लोग जिंदगी में कुछ कर दिखाने का जज्बा रखते हैं. ऐसा कुछ कर दिखाया है मात्र एक फीट की हाइट वाले एक इंसान ने. आपको बता दें कि जिंदगी में उसकी 300 बार हड्डियां टूटीं लेकिन हौसले कभी नहीं टूटे. वह तमाम परेशानियों के बावजूद अपने जीवन के लक्ष्य को पाने का संघर्ष करता रहा. और आखिरकार उसने अपने ही दम पर वह कर दिखाया जो एक साधारण व्यक्ति के बस की बात नहीं है. रायसेन में पदस्थ जिला शिक्षा समन्वयक अधिकारी विजय नेमा के पुत्र राहुल ने बैंकिंग की परीक्षा पास कर सेंट्रल ग्रामीण बैंक में स्केल वन अधिकारी बनकर दिखाया है. जिसे देख कर लोग अब उसके हौसले को सलाम करते हैं.
दिव्यांगों के लिए प्रेरणा है राहुल की जिंदगी
जानकारी के मुताबिक रायसेन जिले के (डीपीसी) जिला शिक्षा समन्वयक अधिकारी विजय नेमा के पुत्र राहुल की लंबाई सिर्फ और सिर्फ 1 फीट की है. राहुल अपने तीन भाई-बहनों में सबसे बड़ा है. यह युवक पूरे परिवार के साथ-साथ हर उस दिव्यांग के लिए भी प्रेरणा का संदेश देता है जो अपने दिव्यांगता को अपनी मजबूरी मान कर घर बैठे हुए हैं.
डॉक्टर ने बताया था कुछ घंटों का मेहमान
आपको बता दें कि राहुल का जन्म मध्यप्रदेश के सिवनी में हुआ था और जन्म के महज कुछ घंटों के बाद ही डॉक्टर ने उसे नागपुर रेफर कर दिया था. नागपुर के डॉक्टरों ने राहुल के माता-पिता को बताया कि राहुल को "ऑस्ट्रो जेनेटिक इनपरफेक्टा" नाम की बीमारी है. जिससे शरीर की हड्डियां पल-पल में टूटती हैं और यह बच्चा सिर्फ कुछ घंटों का ही मेहमान है. ऐसा कहने वाले डॉक्टरों के लिए राहुल का जीवन करारा जवाब साबित हुआ. आज राहुल के माता-पिता के द्वारा राहुल के ऊपर की गई मेहनत का नतीजा सबके सामने है. राहुल का चयन स्केल वन बैंक के अधिकारी के पद पर हुआ है.
जरा सा हाथ लगने भर से टूट जाती थीं हड्डियां
आज राहुल के माता-पिता उस पर गर्व महसूस करते हैं. राहुल के पिता विजय नेमा ने बताया कि राहुल को रुई में रखना पड़ता था और जरा सा भी हाथ लगने पर उसके शरीर की हड्डियां टूट जाती थीं. जिस वजह से राहुल के पालन-पोषण में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा और करीब 300 बार उसके शरीर की हड्डियां टूटी हैं. एक समय तो यह भी आया कि किसी भी कंपाउंडर ने घर पर आकर राहुल की पट्टी करने का मना कर दिया था. तब उसके माता-पिता ने राहुल की टूटी हुई हड्डियों को जोड़ने का बीड़ा उठाया और उनकी मेहनत धीरे-धीरे रंग लाती गई.
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यहां से बदली राहुल की जिंदगी
राहुल ने अपनी पढ़ाई कक्षा तीसरी से शुरू की थी. शुरू के समय में राहुल सिर्फ पेपर देने ही जाता था. बाकी पूरी पढ़ाई राहुल घर पर ही करता था. उसके हौसलों को नई उड़ान कक्षा 5वीं की परीक्षा देने के बाद मिली. जब उसने जिले में प्रथम स्थान प्राप्त किया. इस उपलब्धि के लिए उसे एचआरडी मंत्रालय दिल्ली से भी सम्मानित कर पुरस्कृत किया गया. इसके बाद राहुल ने मुड़कर कभी नहीं देखा. और अपनी पढ़ाई को निरंतर जारी रखते हुए हर क्षेत्र में अपना नाम कमाया. आज उसके माता-पिता और खुद राहुल अपने आपको बहुत भाग्यशाली समझते हैं.