कांग्रेस ने किसानों से सरकार बनने पर कर्जमाफी और धान का समर्थन मूल्य 2500 रुपये करने का वादा किया था, जिसके चलते कांग्रेस को किसान वर्ग का भारी समर्थन मिला.
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नई दिल्लीः छत्तीसगढ़ में करीब डेढ़ दशक से राज कर रहे डॉ रमन सिंह का जादू इस बार जनता पर नहीं चल पाया. 'चाउर वाले बाबा' के नाम से जनता के बीच लोकप्रिय रमन सिंह ने अपने कार्यकाल के दौरान काफी काम किए, गरीबों को मुफ्त मोबाइल देने से लेकर मुफ्त चावल और मेडिकल सुविधाएं देने तक सभी काम करने के बाद भी इस बार राज्य में उनका प्रभाव फीका पड़ गया. ऐसे में राज्य में मिली करारी शिकस्त के बाद बार-बार एक ही सवाल उठ रहा है कि आखिर वह क्या कारण हैं जो क्षेत्र में इतना प्रभाव होने के बाद भी भाजपा और मुख्यमंत्री रमन सिंह को इतनी बुरी हार का सामना करना पड़ा ?
बता दें राज्य में मिली हार की जिम्मेदारी रमन सिंह ने अपने कंधों पर लेते हुए अपना इस्तीफा राज्यपाल आनंदीबेन पटेल को सौंप दिया है. जिसे राज्यपाल ने स्वीकार भी कर लिया है. छत्तीसगढ़ में मिली करारी हार पर अपनी पहली प्रतिक्रिया देते हुए मुख्यमंत्री रमन सिंह ने कहा कि 'वह पार्टी की हार की नैतिक जिम्मेदारी स्वीकार करते हैं. कांग्रेस को जीत की बधाई देते हुए उन्होंने कहा कि मैं कांग्रेस को जीत के लिए बधाई देता हूं, उम्मीद है कि कांग्रेस राज्य की जनता से अपने वादे निभाएगी. वहीं उन्होंने यह मानने से इनकार कर दिया कि इन चुनावों का 2019 के लोकसभा चुनाव पर असर पड़ेगा.'
छत्तीसगढ़ में बीजेपी की हार, इस बार नहीं चल पाया ‘चाउर’ का जादू
बता दें एससी-एसटी एक्ट में संशोधन के चलते राज्य का सामान्य वर्ग भारतीय जनता पार्टी से काफी नाराज चल रहा है. वहीं किसान वर्ग ने भी भाजपा से दूरी बना ली थी. ऐसे में कांग्रेस का किसानों से कर्जमाफी और एमएसपी बढ़ाने का वादा कहीं ना कहीं कांग्रेस के काम आया. इसके अलावा पार्टी के बागियों के कारण भी भाजपा को भारी नुकसान हुआ, जिसके चलते पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा. बता दें कांग्रेस ने ग्रामीण इलाकों की 42 सीटों पर जीत दर्ज की तो वहीं शहरी इलाकों की 26 सीटों पर अपना कब्जा जमाया है, जिसके दम पर भारी बहुमत के साथ कांग्रेस ने जीत हासिल की.
बता दें भाजपा ने इस बार छत्तीसगढ़ में 65 सीटों पर जीत हासिल करने का टारगेट बनाया था, जिसे भाजपा ने 'मिशन 65 प्लस' नाम दिया था, लेकिन कांग्रेस ने बाजी पलटते हुए भाजपा के टारगेट पर सेंध लगा दी और 68 सीटों को अपने नाम कर लिया. वहीं भाजपा 15 सीटों पर ही सिमट कर रह गई. बता दें कांग्रेस ने किसानों से सरकार बनने पर कर्जमाफी और धान का समर्थन मूल्य 2500 रुपये करने का वादा किया था, जिसके चलते कांग्रेस को किसान वर्ग का भारी समर्थन मिला.
वहीं बात की जाए प्रत्याशियों की तो कांग्रेस ने साफ कर दिया था कि उसे जीतने वाला प्रत्याशी चाहिए और अपने टारगेट पर ध्यान देते हुए कांग्रेस ने ऐसे चेहरों को प्राथमिकता दी जो कांग्रेस की जीत सुनिश्चित कर सकें. इसके साथ ही जातिगत समीकरण पर वोट बैंक को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस ने ओबीसी प्रत्याशियों को प्राथमिकता दी और चुनाव परिणाम अपने नाम किए. बता दें इस विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के कुल 35 ओबीसी प्रत्याशियों ने जीत हासिल की है.
हार की नैतिक जिम्मेदारी लेता हूं, कांग्रेस को जीत की शुभकामनाएं : रमन सिंह
दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक 'वहीं एससी सीट की बात की जाए तो एससी आरक्षित 10 सीटों में से 9 पर कांग्रेस तो 1 पर भाजपा जीत दर्ज करा पाई. वहीं जिन सीटों पर महिला वोटर्स ज्यादा थीं वहां भी कांग्रेस को जीत हासिल हुई. बता दें राज्य में शराबंदी इस समय प्रमुख मुद्दा बना हुआ है, जिसके चलते कांग्रेस ने भी इस मुद्दे को प्रमुखता दी और नतीजों में कांग्रेस को इसका फायदा मिला. ऐसी 24 सीटें जहां महिला वोटर्स ज्यादा थीं, उनमें से 22 सीटों पर कांग्रेस तो 2 पर भाजपा को जीत हासिल हुई है.