BPCL GAIL CBG Project: छत्तीसगढ़ सरकार ने प्रदेश के 8 नगर निकायों में बायो-सीएनजी प्लांट लगाने की योजना बनाई है, इन स्थानों पर बीपीसीएल और गेल 800 करोड़ का प्लांट लगाएंगे. इन प्लांटों के लिए 10 एकड़ जमीन सस्ती लीज पर दी जाएगी और यह 25 साल तक के लिए होगी.
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BIO-CNG Plants Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ में सभी नगर निकायों में नई सुविधा लागू करने की योजना बनाई जा रही है. दरअसल, रायपुर, भिलाई समेत 8 निकायों में बायो-सीएनजी प्लांट लगाए जाएंगे. इसके लिए जमीन को भी चिन्हित किया जा चुका है. इन स्थानों पर बीपीसीएल और गेल 800 करोड़ का प्लांट लगाएंगे. आपको बता दें कि कैबिनेट की मंजूरी के बाद इन दोनों कंपनियों को एक रुपए वर्गमीटर के हिसाब से 10 एकड़ जमीन को 25 साल की लीज पर दी जाएगी. इसके लिए नगरीय प्रशासन विभाग की तरफ से प्रदेश के सभी जिला कलेक्टरों को आदेश भी दिए जा चुके हैं.
पिछले महीने अप्रैल में हुई विष्णु देव साय की कैबिनेट बैठक में तय किया गया था कि प्रदेश के हर शहर और कस्बे में जैविक कचरे और खेतों के अपशिष्ट से बायो-सीएनजी बनाने वाले प्लांट लगाए जाएंगे. इसके लिए सरकार सस्ती लीज पर जमीन देगी और नगर निगमों को इसकी जिम्मेदारी सौंपी गई है.
मिली जानकारी के मुताबिक, भारत में अभी जो सीएनजी इस्तेमाल हो रही है, उसमें करीब 46 फीसदी विदेशों से मंगानी पड़ती है. सरकार चाहती है कि देश में ही बायो-सीएनजी बनाकर इस बाहर की निर्भरता को कम किया जाए. बायो-सीएनजी, यानी बायो कंप्रेस्ड नेचुरल गैस, का इस्तेमाल गाड़ियों में ईंधन की तरह, घरों में खाना बनाने और गर्मी देने, बिजली बनाने और कुछ उद्योगों में भी हीटिंग व अन्य कामों के लिए किया जा सकता है. केंद्रीय नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के मुताबिक, भारत में करीब 70 मिलियन मीट्रिक टन बायो-सीएनजी बनाने की क्षमता है. बाजार में इसकी अच्छी मांग है, इसलिए इसका उत्पादन करना आर्थिक रूप से भी फायदेमंद साबित हो रहा है.
2050 तक 3 गुना बढ़ेगी खपत
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, 2050 तक देश में तेल और गैस की खपत तीन गुना बढ़ने की संभावना है. ऐसे में बायो-सीएनजी को एक बेहतर विकल्प के रूप में बढ़ावा दिया जा रहा है. इससे न सिर्फ कचरे से ऊर्जा मिलेगी, बल्कि लैंडफिल में डाले जाने वाले गीले-सूखे कचरे की समस्या भी काफी हद तक कम हो जाएगी.
क्या होती है बायो-सीएनजी ?
बायो-सीएनजी बनाने के लिए गोबर, बासा खाना, फैक्ट्री की कीचड़ जैसे जैविक कचरे को एक बंद टैंक में सड़ाया जाता है, जिसे एनारोबिक डाइजेस्टर कहा जाता है. इस प्रक्रिया में बायोगैस बनती है, जिसे साफ करके करीब 95 फीसदी शुद्ध मीथेन गैस यानी बायो-सीएनजी तैयार की जाती है. साथ ही इससे एक बढ़िया किस्म का तरल खाद भी निकलता है, जो खेती में काम आता है.
इसका दूसरा नाम है बायोमीथेन
बायो-सीएनजी को बायोमीथेन के नाम से भी जाना जाता है. इसे बनाने के लिए जैविक कचरे, जैसे खाद्य अपशिष्ट, गोबर या फसलों के बचे हिस्सों को बायोगैस में बदला जाता है और फिर उस गैस को शुद्ध किया जाता है. जब बायोगैस को साफ कर उसमें से अशुद्धियां हटा दी जाती हैं, तो इसमें लगभग 95 फीसदी तक मीथेन रह जाती है, जिसे बायो-सीएनजी कहा जाता है. इसकी संरचना और गुण प्राकृतिक गैस की तरह होते हैं, इसलिए इसका इस्तेमाल जैसे गाड़ियों को चलाने में, घरों में खाना पकाने में भी उसी तरह से किया जा सकता है.
एक महीने में होगी टेंडर प्रक्रिया
प्रदेश में सरकार ने बायो-सीएनजी प्लांट लगाने के लिए तेजी से कदम उठाने शुरू कर दिए हैं. अभी तक आठ स्थानों पर जमीन की पहचान कर ली गई है और अब अगले एक महीने के भीतर टेंडर की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी. टेंडर फाइनल होने के बाद तुरंत निर्माण का काम शुरू किया जाएगा. इस योजना से एक तरफ जहां कचरे की समस्या कम होगी, वहीं दूसरी तरफ गांवों और शहरों में रोजगार के नए अवसर भी खुलेंगे और प्रदेश की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में भी मदद मिलेगी.
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