जानिए एक मात्र छत्तीसगढ़ी गाना जो लता मंगेशकर ने गाया, यहां स्वर कोकिला ने खाई थीं अपनी पसंदीदा कढ़ी!
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जानिए एक मात्र छत्तीसगढ़ी गाना जो लता मंगेशकर ने गाया, यहां स्वर कोकिला ने खाई थीं अपनी पसंदीदा कढ़ी!

प्रशंसकों में दीदी और ताई के नाम से मशहूर भारत रत्न, स्वर कोकिला लता मंगेशकर का रविवार को 92 वर्ष की उम्र में निधन हो गया. उनका छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़ी से भी नाता जुड़ा था. 36 भाषाओं में 50 हजार गाने गाने वाली लता ताई ने छत्तीसगढ़ी में एकमात्र गाना भकला फिल्म के लिए 'छूट जाही अंगना दुवारी' 17 साल पहले गाया था.

गाने का दृश्य और लता दी के साथ मदन जी

रायपुरप्रशंसकों में दीदी और ताई के नाम से मशहूर भारत रत्न, स्वर कोकिला लता मंगेशकर का रविवार को 92 वर्ष की उम्र में निधन हो गया. उनका छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़ी से भी नाता जुड़ा था. 36 भाषाओं में 50 हजार गाने गाने वाली लता ताई ने छत्तीसगढ़ी में एकमात्र गाना भकला फिल्म के लिए 'छूट जाही अंगना दुवारी' 17 साल पहले गाया था. जो आज भी लोग  शादी विवाह के दौरान विदाई में गुनगुनाया करते हैं.

दरअसल 16 साल पहले यानी 22 फरवरी 2005 को मुंबई के स्टूडियो में लता दीदी ने छत्तीसगढ़ी गीत छूट जाही अंगना अटारी.... छूटही बाबू के पिठइया की रिकॉर्डिंग की थी. शादी के बाद बेटी की विदाई पर गाए जाने वाले इस गीत को मदन शर्मा लिखा था और संगीत कल्याण सेन ने दिया था. ये एकमात्र ऐसा छत्तीसगढ़ी गीत है जिसे लता मंगेशकर ने गाया हैं.

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उपवास तक रखना पड़ा
बताया जाता है कि लता जी ने लोगों को मिठाई खिलाने के लिए गीतकार मदन को 50 हजार रुपए दिए थे. एक इंटरव्यू के दौरान छत्तीसगढ़ के मशहूर गीतकार मदन शर्मा ने बताया था कि लता दीदी को गाने के लिए राजी करना उनकी जिंदगी का अब तक का सबसे कठिन काम रहा. लता जी से छत्तीसगढ़ी में गाना गंवाने के लिए गीतकार मदन ने उपवास तक रखा था, कई बार उन्होंने मुंबई के चक्कर काटे. जब लता जी ने इस गाने की रिकार्डिंग की तब जाकर मदन शर्मा ने उपवास तोड़ा था.

इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय से गहरा नाता
भारतरत्न दिवंगत लता मंगेशकर का छत्तीसगढ़ के खैरागढ़ स्थित इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय से पुराना और गहरा नाता रहा है. वह इस विश्वविद्यालय को कला और संगीत के लिए गुरुकुल की दृष्टि से देखती थीं. खैरागढ प्रवास के दौरान उन्हें मानद डी लिट् की उपाधि से सम्मानित किया जा चुका है. वर्तमान में विश्वविद्यालय की कुलपति ममता चंद्राकर उस वक्त खैरागढ में छात्रा थी.

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कढ़ी  का स्वाद चखा था
लता मंगेशकर 2 फरवरी 1980 को खैरागढ आयीं थीं. उन्हें इस विश्वविद्यालय से डी.लिट्ट की मानद उपाधि से विभूषित किया गया था. वर्तमान में इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय की कुलपति, प्रख्यात लोक गायिका पद्मश्री ममता चंद्राकर उन दिनों इस विश्वविद्यालय में शास्त्रीय संगीत (गायन) विषय से एमए की छात्रा थीं. उस प्रवास के दौरान अतिथियों को छात्र-छात्राओं ने भोजन परोसा था. भोजन परोसने वालों में ममता चंद्राकर भी शामिल थीं. ममता चंद्राकर ने लता जी को कढ़ी परोसा था. स्वर कोकिला ने चाव के साथ कढ़ी का आनंद लिया था. विश्वविद्यालय की कुलपति पद्मश्री ममता चंद्राकर ने शोक व्यक्त करते हुए कहा है कि -''भारतरत्न लता जी हमेशा मेरी आदर्श रहीं. उनका इस दुनिया से जाना मेरे लिए व्यक्तिगत और अपूरणीय क्षति है. इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय इस दुख के क्षण में दिवंगत आत्मा की शांति के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते हुए उनके प्रति विनम्र श्रद्धांजलि व्यक्त करता है.

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