Chhattisgarh Unique Tradition: आज हम आपको भारत के एक ऐसे गांव के बारे में बताने जा रहे हैं. जहां की अनोखी परंपरा जानकर शायद आप भी हैरान हो जाए. ये गांव छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले में मौजूद है, जहां महिलाओं के लिए बेहद ही अजीब नियम बनाए गए हैं. गरियाबंद जिले के कोसमी गांव में शादी होते ही एक महिला विधवा का जीवन जीने लगती है. ना माथे पर सिंदूर ना ही कोई सोल्ह श्रृंगार बस जीवन भर सफेद साड़ी के सहारे अपना जीवन व्यतीत करती है.
हमारे भारत देश में शादी के बाद एक महिला सजी धजी सोलह श्रृंगार किए दिखाई देती है. चेहरे पर अलग सा नूर, हाथों में चूड़ियां, मांग में सिंदूर और गले में पहनी हुई मंगलसूत्र महिला के सुहगिन होने की निशानी बन जाती है.
शादी के दौरान भी दुल्हन के लिए लाल जोड़े की मांग की जाती है क्योंकि इसके बिना दुल्हन की परिभाषा पूरी नहीं होती है. लेकिन शादी को लेकर इन भारतीय रिवाजों के बीच एक ऐसी भी परम्परा चलती आ रही है जहां विवाह होते ही विवाहित महिला नई नवेली बहू की जगह विधवा जैसी जिंदगी जीती है.
ये रिवाज छत्तीसगढ़ के गरियाबंध जिले के कोसामी गांव में बहुत प्रचलित है. यहां के एक परिवार की नई नवेली बहू को सजने की बजाए बेरंग जीवन जीने को कहा जाता है. हैरानी की बात तो ये है कि परिवार की किसी भी बहू को इस बात से कोई आपत्ति नहीं है और वे खुशी-खुशी अपने पति के प्यार का त्याग कर देती हैं.
इस परिवार की महिलाएं बताती है कि उनकी ये परंपरा करीब 10 पीढ़ियो से चली आ रही है. घर में को ई भी फंक्शन हो या फिर पार्टी घर की शादीशुदा महिला ना ही मेकअप करती है और ना ही रंग बिरंगे साड़ियों से खुद को सजाती है.
हलांकि परिवार की अविवाहित बेटियों को इस परंपरा से दूर रखा जाता है. ये परंपरा सिर्फ घर की बहुओं पर ही लागू होता है. घर की बेटी अपने मन अनुसार साज सज्जा सब कुछ कर सकती है.
परिवार के बहुओं के लिए बनी इस परंपरा के पीछे बड़ी ही रोचक कहानी छिपी है. परिवार के मुखिया बताते हैं कि 'पुजारी परिवार' पर मां देवी का बरसो पुराना श्राप है. श्राप के अनुसार घर की कोई भी बहू रंगीन कपड़े और श्रृंगार नहीं कर सकती है. ऐसा करने पर उस महिला के शरीर में तरह-तरह के दिक्कतें आने लगती है. जिसकी वजह से घर की महिलाएं मजबूरन ही अपने आप को विधवा रखती है.
पुजारी परिवार के इस अजब-गजब रिवाज के बाद भी लोग इस खानदान में अपनी बेटियों की शादी करना सौभाग्य मानते हैं. वहीं इस आधुनिक दौर में बेटियों को भी इस तरह की परंपरा के पालन करने से कोई शिकायत नहीं है.
Disclaimer: यहां दी गई जानकारी इंटरनेट पर मौजूद जानकारी पर आधारित है. जो स्थानीय किवदंतियों और प्रचलित मान्यताओं पर आधारित है. वर्तमान में यह प्रथा लागू है या नहीं ZEE NEWS इसके सत्यता की पुष्टि नहीं करता है.
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