Chhattisgarh Tribal Tradition: हिंदू धर्म में जल वायु और अग्नि का बहुत महत्व होता है. किसी भी शुभ कार्य को इन तीनों तत्वों को साक्षी मान कर ही शुरू किया जाता है. बात चाहे शादी की हो या फिर घर प्रवेश की. शदियों में भी अग्नि को साक्षी मान कर सात फेरे लेने का रिवाज है जिससे माना जाता है कि वैवाहिक जीवन आनंदमय बितता है. लेकिन छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में रहने वाले धुरवा आदिवासी समाज की शादी को लेकर ये परंपरा थोड़ी अलग है. यहां अग्नि नहीं बल्कि पानी को साक्षी मान कर वर-वधू अपनी नई जिंदगी की शुरूआत करतें हैं.
छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में रहने वाले धुरवा आदिवासी समाज की शादी की ये परंपरा भारत में सबसे अनोखी मानी जाती है. जहां आमतौर पर लोग अग्नि को साक्षी मानकर सात फेरे लेते हैं वहीं धुरवा आदिवासी समाज के लोग जल को साक्षी मान कर अपना विवाह संपन्न करते हैं.
सदियों से चली आ रही इस परंपरा को निभाने के पीछे एक खास वजह बचाई जाती है. कहा जाता है कि धुरवा समाज के लोगों के लिए जल का खास महत्व है. वे जल को जीवन का स्रोत मानते हैं और इसे देवता का दर्जा देते हैं. इस वजह से शादी के पवित्र रस्मों में जल का उपयोग किया जाता है.
धुरवा समाज के लोग बताते हैं कि वे शादी के दौरान, बस्तर में बहने वाली कांकेरी नदी के पवित्र जल का इस्तेमाल करते हैं, इसके पीछे काी वजह ये है कि कांकेरी नदी को धुरवा समाज में बेहद पवित्र माना जाता है और उनके लिए कोई भी शुभ कार्य इस नदी के जल के बिना अधूरा माना जाता है.
इस समाज के लोग आगे बताते हैं कि जल के इस्तेमाल से ना सिर्फ उनका प्रकृति के साथ गहरा नाता जुड़ता है बल्कि प्रकृति की गोद में एक नया जीवन शुरू करने का आशीर्वाद भी मिलता है.
धुरवा आदिवासी समाज की सिर्फ ये परंपरा ही अनोखी नहीं है. यहां दूल्हा-दूल्हन के अलावा पूरी पंचायत या गांव वाले भी दूल्हा-दुल्हन के साथ फेरे लेते हैं. यानी की शादी में सिर्फ दूल्हा-दुल्हन ही शामिल नहीं होते, बल्कि पूरा गांव भी इस पवित्र बंधन में शामिल होता है.
अपनी अनोखे परंपरा की वजह से जाना जाने वाला धुरवा आदिवासी समाज, सामज में एक उदाहरण भी पेश करता है. ना सिर्फ शादी में निभाई जाने वाली इनकी रस्में अनोखी है बल्कि ये समाज, दहेज लेने-देने जैसे कुप्रथा पर भी विश्वास नहीं करता है. दहेज को यहां पूरी तरह से बैन किया गया है.
अगर कोई व्यक्ति दहेज लेने-देने की कोशिश भी करता है तो गांव के बुजुर्ग और पंचायत मिलकर उस व्यक्ति पर भारी जुर्माना लगा देते हैं. भले ही हमें इनकी रस्में थोड़ी अटपटी लगे लेकिन धुरवा आदिवासी समाज के लोग आज भी अपनी संस्कृति को निभाने से कतराते नहीं हैं. प्रकृति के महत्व को समझते हुए ये लोग आज आधुनिक युग की धूंध में गायब लोगें के लिए मिसाल पेश करते हैं.
डिस्क्लेमर: यहां बताई गई सभी बातें मीडिया रिपोर्ट्स और धार्मिक मान्यताओं पर आधारित हैं. इसकी विषय सामग्री और काल्पनिक चित्रण का ZEEMPCG हूबहू समान होने का दावा या पुष्टि नहीं करता
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