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छत्तीसगढ़ की अनोखी परंपरा, यहां कटघरे में खड़े होते हैं भगवान, क्या है मामला

Chhattisgarh Tribal Tradition: यूं तो इंसानों की गलती की सजा भगवान देते हैं. कहते हैं कि अगर इंसान कोई पाप करता है तो उसे अपने कर्मों का फल इसी जन्म में भुगतना पड़ता है. लेकिन क्या कभी आपने सुना है कि जिस भगवान को हम सर्वोपरी मानते हैं उन्हें भी उनकी गलतियों की सजा सुनाई जाती है. सुनने में थोड़ा अजीब जरूर लगेगा, लेकिन ये बात सत्य है कि जिस भगवान से हम अपने कष्टों का समाधान मांगते है उन्हें भी उनकी गलती की सजा सुनाई जाती है. बता दें कि छत्तीसगढ़ के बस्तर में भंगाराव माई की अदालत में देवी देवताओं को उनकी गलती की सजा मिलती है.

 

भगवान को सजा

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भगवान को सजा

दरअसल, ऐसी अनोखी परंपरा छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले के आदिवासी समाज में देखने को मिलती है. बताया जाता कि यहां सैकड़ों सालों से भगवान को सजा देने की रीत निभाई जाती है.

भंगाराव देवी

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भंगाराव देवी

भंगाराव देवी को मानने वाले लोग बताते हैं कि इस परंपरा के अनुसार कुलदेवी-देवताओं को, भी अपने आप को दोषमुक्त साबित करना होता है. जहां भंगाराव माई के दरबार में देवताओं को अपने लिए लड़ना होता है. सुनवाई के बाद यहां अपराधी को दंड और निर्दोष को इंसाफ मिलता है.

महिलाओं का आना वर्जित होता है

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महिलाओं का आना वर्जित होता है

बता दें कि इस पूरे क्रिया की शुरूआत भादो महीने से शुरू होती है जहां धमतरी जिले के कुर्सीघाट बोराई में आदिवासी देवी देवताओं के न्यायधीश भंगा राव माई की यात्रा होती है. गौर करने वाली बात तो ये है कि भंगाराव माई के इस विशेष न्यायालय स्थल पर महिलाओं का आना वर्जित माना जाता है.

सजा देने की प्रक्रिया

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सजा देने की प्रक्रिया

देवी देवताओं को सजा देने की प्रक्रिया कुछ इस प्रकार है कि सुनवाई के दौरान देवी देवता को एक कटघरे में खड़ा किया जाता है जहां भंगाराव माई न्यायाधीश के रूप में विराजमान होते हैं. गांव में हुए किसी तरह की विपदा, कष्ट,परेशानी किसी की मन्नतन पूरी न कर पाने पर देवी देवताओं को देषी माना जाता है. सुनवाई में दोषी पाए जाने पर उन्हें दंड देने की परंपरा है.

भगवान को दी जाती है सजा

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भगवान को दी जाती है सजा

सुनवाई के दौरान आरोपी पक्ष की ओर से दलील पेश करने के लिए गांव के सिरहा, पुजारी, गायता, माझी, पटेल उपस्थित होते हैं.दोनों पक्षों की गंभीरता से सुनवाई होती है जिसके बाद आरोप सिद्ध होने पर फैसला सुनाया जाता है. यदि भगवान दोषी पाए जाते हैं तो उन्हें सजा दी जाती है.

आदिवासियों की आस्था

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आदिवासियों की आस्था

धमतरी के कुर्सीघाट में आदिवासियों की ये परंपरा ना जाने कब से यूं ही चली आ रही है जो ना केवल सुनने में विचित्र है बल्कि लोगों के सोच से भी परे है. लेकिन सैकड़ों साल से निभाई जा रही इस परंपरा से शायद कहीं न कहीं आदिवासियों की आस्था जुड़ी हो तभी तो वे इस दुनियां के रखवाले को भी कटघरे में ला कर खड़ा करते हैं. 

डिस्क्लेमर: यहां बताई गई सभी बातें मीडिया रिपोर्ट्स और धार्मिक मान्यताओं पर आधारित हैं.  इसकी विषय सामग्री और काल्पनिक चित्रण का ZEEMPCG हूबहू समान होने का दावा या पुष्टि नहीं करता.

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