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CG में यहां 200 सालों से नहीं खेली गई होली, रहता है डर का माहौल, घरों में बंद रहते हैं लोग

Chhattishgarh Ajab Holi 2025: आज यानी 14 मार्च 2025 को जहां पूरे देश में धूमधाम के साथ होली का त्योहार मनाया जा रहा, वहीं छत्तीसगढ़ में एक ऐसा भी गांव है जहां पिछले 200 सालों से होली नहीं मनाई गई है. होली वाले दिन गांव के लोग अपने घरों में ही बैठे रहते है. पूरे गांव में मातम और सन्नाटा छाया रहता है. एक भी आदमी बाहर घूमता हुआ नहीं दिखाई देता. गांव के इस विचित्र हाल के पीछे का कारण रंग या गुलाल नहीं बल्कि अनहोनी, भूत- प्रेत और दैविय शक्ति का प्रकोप है जिसकी वजह से गांव के लोग अपने घरों में कैद रहने को मजबूर रहते हैं. अब ये अंधविश्वास है या आस्था ये आपको तय करना है.

 

होली 2025 Date

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होली 2025 Date

14 मार्च 2025 को जहां हर किसी के मुंह से बुरा न मानो होली है सुनाई दे रहा है, जहां लोग अलग-अलग पकवानों का स्वाद ले रहे हैं, रंग अबीर और गुलाल लगा कर होली मना रहे हैं. वहीं दूसरी ओर छत्तीसगढ़ के एक गांव में मातम पसरा हुआ है. 

 

छत्तीसगढ़ का वीरान गांव

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छत्तीसगढ़ का वीरान गांव

मातम किसी एक घर या गली में नहीं बल्कि पूरा गांव त्योहार के दिन वीरान दिखाई देगा. ना इस गांव में पकवानों की खुशबू आएगी और न ही बच्चे पिचकारी लिए एक दूसरे पर रंग लगाते दिखेंगे. 

 

कोरबा जिले का अजीब गांव

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कोरबा जिले का अजीब गांव

हम जिस गांव की बात कर रहें वो छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में स्थित है. गांव खरहरी और धमनागुड़ी के नाम से जाना जाता है. बताया जाता है कि यहां बड़े तो क्या बच्चों ने भी 200 साल से होली नहीं खेली है. पिछले 200 सालों से गांव होली वाले दिन वीरान पड़ी रहती है. 

 

दैविय प्रकोप

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दैविय प्रकोप

गांव वालो का मानना है कि होली जलाने और रंग गुलाल खेलने से गांव पर दैविय प्रकोप आ सकता है या गांव में कोई अनहोनी भी हो सकती है. ये धारणा उनके दिल- दिमाग पर बैठ गया है जिसकी वजह से कई सालों से गांव में होली वाले दिन मातम पसरा रहता है. 

 

अंधविश्वास या आस्था

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अंधविश्वास या आस्था

अब उनकी इस धारणा को अंधविश्वास कहे या आस्था, लेकिन आपको बता दें कि इस गांव की अधिकतर जनसंख्या पढ़ी लिखी है. तीन हजार आबादी वाले इस गांव की बड़ी जनसंख्या हाई स्कूल पास है. पढ़े लिखे होने के बावजूद ऐसी प्रथा का पालन करना हैरत में डालता है. 

 

शिक्षित गांव

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शिक्षित गांव

गांव के बुजुर्ग इस बात की पुष्टि करते हैं कि गांव को बच्चे बूढ़ों के शिक्षित होने के बाद भी किसी ने इस नियम का उल्लंघन नहीं किया है. पीढ़ी दर पीढ़ी गांव में होली न खेलने की प्रथा चलती आ रही है. 

 

जीवन का हिस्सा

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जीवन का हिस्सा

गांव के लोग कहते है कि होली का त्योहार न मनाना हमारे जीवन का हिस्सा बन गया है. देशभर में लोग जहां गुलाल और अबीर उड़ाते है हमलोग वहीं अपने घरों में बंद रहते है.

 

Disclaimer: यहां बताई गई सभी बातें मीडिया रिपोर्ट्स और धार्मिक मान्यताओं पर आधारित हैं.  इसकी विषय सामग्री और काल्पनिक चित्रण का ZEEMPCG हूबहू समान होने का दावा या पुष्टि नहीं करता.