भोपाल मध्य सीट से पूर्व बीजेपी विधायक रहे सुरेंद्र नाथ सिंह ने भोपाल में एक आंदोलन छेड़ रखा है.
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भोपाल: ये महज़ इत्तेफाक भी हो सकता है और सोची-समझी रणनीति का एक हिस्सा भी कि पूर्व बीजेपी विधायक के जिस आंदोलन से बीजेपी ने ही किनारा कर रखा था, उस आंदोलन को कांग्रेस सरकार महत्व दे रही है. उस आंदोलन के लिए पूर्व बीजेपी विधायक को माफी भी दे रही है. जबकि ये आंदोलन कांग्रेस सरकार के खिलाफ था. बीजेपी की इजाज़त के बगैर शुरू हुए इस आंदोलन को अनुशासनहीनता के दायरे में भी रखा जा सकता है. लेकिन अपनी ही सरकार के खिलाफ इस आंदोलन छेड़ने वाले पूर्व विधायक सुरेंद्र नाथ सिंह पर 23 लाख 76 हजार रुपए का हर्जाना भरने की बात आई तो, कांग्रेस ने ही माफी दे दी. अब कांग्रेस कह रही है कि आंदोलन करना तो सबका हक है.
दरअसल, भोपाल मध्य सीट से पूर्व बीजेपी विधायक रहे सुरेंद्र नाथ सिंह ने भोपाल में एक आंदोलन छेड़ रखा है. गुमटी वाले और छोटे कारोबारियों को सड़क से हटाने की नगर निगम की मुहिम के बाद से ये आंदोलन शुरू हुआ था. बाद में झुग्गीवासियों को साथ में मिलाकर महंगे बिजली बिल को भी इसमें जोड़ दिया गया. कमलनाथ सरकार पर आरोप लगाकर पहला आंदोलन विधानसभा सत्र के दौरान हुआ था. तब न्यू मार्केट, मंत्रालय समेत कई जगहों पर एक साथ आंदोलन हुआ. न्यू मार्केट से एक रैली निकालने की भी कोशिश हुई लेकिन पुलिस ने उन्हें रोक दिया. इसी दौरान सुरेंद्र नाथ सिंह ने कहा कि मांगे पूरी नहीं हुईं तो कमलनाथ का खून सड़कों पर बहा देंगे.
इस पर सुरेंद्रनाथ पर एफआईआर भी दर्ज की गई. इसके बाद मामला नहीं रुका. 20 अगस्त को फिर से आंदोलन का ऐलान हुआ. सीएम हाउस, मंत्रालय, राजभवन, कमिश्नर और कलेक्टर निवास पर घेराव की योजना बनाई गई थी. इस आंदोलन की वजह से कई जगह चक्काजाम के हालात बने और ट्रैफिक फंसा रहा. पुलिस ने किसी तरह मामले को संभाल लिया. शाम को फिर सुरेंद्रनाथ के ऊपर कानून व्यवस्था भंग करने का मामला दर्ज कर लिया गया. दरअसल, एमपी में किसी भी धरना प्रदर्शन या रैली से पहले कलेक्टर दफ्तर से मंजूरी लेने का प्रावधान है. सुरेंद्र नाथ सिंह ने इस औपचारिकता को पूरा नहीं किया था.
भोपाल आईजी योगेश देशमुख ने ऐसे आंदोलनों पर लगाम कसने के लिए जिला प्रशासन को प्रस्ताव भेजा कि यकायक पुलिस व्यवस्था लगाने पर पुलिस के कई ज़रूरी काम छूट जाते हैं. ऐसे में अतिरिक्त पुलिस व्यवस्था लगाने का खर्च आंदोलन करने वाले संगठन या नेता से वसूला जाए तो इत्तिला दिए बगैर जलसा-जुलूस निकालकर ट्रैफिक के लिए परेशानी खड़ी करने वाले नेताओं पर लगाम कसी जा सकती है. ये बात अलग है कि जिला प्रशासन ने इस प्रस्ताव को मानने से इनकार कर दिया है. कलेक्टर तरुण पिथौड़े ने कहा कि आईजी की तरफ से प्रस्ताव आया है, उस प्रस्ताव को नियमानुसार पालन किया जाएगा. लेकिन सुरेंद्र नाथ सिंह पर कोई हर्जाना नहीं लादा गया है और ना ही कोई नोटिस नहीं दिया गया है.
भोपाल के प्रभारी मंत्री गोविंद सिंह कहते हैं कि ये कांग्रेस की सरकार है और इसमें अभिव्यक्ति की पूरी आजादी है. जब बीजेपी नेता इस मामले में ज्ञापन देने कलेक्टर दफ्तर पहुंचे तो, उन्हें बता दिया गया कि कोई फाइन नहीं लगाया गया है. बीजेपी आंदोलन के साथ नहीं है और ये आंदोलन सुरेंद्र नाथ सिंह ने शुरू किया था. परंपरा है कि कोई भी नेता किसी भी आंदोलन या प्रदर्शन से पहले जिला भाजपा से मंजूरी लेता है. लेकिन सुरेंद्र नाथ सिंह ने इस मामले में कोई भी मंजूरी नहीं ली थी. सुरेंद्र नाथ सिंह भी इसे पीड़ितों के प्रति उनका समर्थन बता रहे थे. ये बात अलग है कि सुरेंद्र नाथ सिंह इस आंदोलन में बार-बार कहते नजर आ रहे थे कि बीजेपी अन्याय बर्दाश्त नहीं करेगी.
हालांकि भोपाल में पार्टी के चंद पदाधिकारियों को छोड़ दें तो सभी नेता इसमें शामिल हुए थे. पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह भी सुरेंद्र नाथ के आंदोलन के साथ तो नहीं थे, लेकिन उनकी मुहिम के साथ ज़रूर नजर आए थे. आमतौर पर पार्टी लाइन के खिलाफ काम करने वाले नेता अनुशासनहीनता के दायरे में आते हैं. पार्टी चाहे तो उनके खिलाफ कार्यवाही हो सकती है. वैसे, बीजेपी ने इस आंदोलन के खुलकर समर्थन में कभी कुछ नहीं कहा है.
बता दें कि सुरेंद्र नाथ सिंह पर 23 लाख 76 हजार रुपए के हर्जाने का प्रस्ताव था. भोपाल आईजी योगेश देशमुख ने जो प्रस्ताव भेजा था. उसमें राजभवन, सीएम हाउस, मंत्रालय, कलेक्टर और कमिश्नर निवास के आसपास पुलिस फोर्स तैनाती के एवज में 23 लाख 76 हजार रुपए हर्जाने की वसूली का प्रस्ताव भेजा था. सुरेंद्र नाथ सिंह ने कहा था कि नोटिस मिला भी तो वे जमा नहीं करेंगे. सरकार को जो करना है कर ले. उन्होंने ये भी कहा कि उनका आंदोलन जारी रहेगा.
बीजेपी सरकार में करती है आवाज़ दबाने की तानाशाही- शोभा ओझा
कांग्रेस मीडिया विभाग की चेयरपर्सन शोभा ओझा कहती हैं कि आवाज़ को दबाना बीजेपी की परंपरा है. बीजेपी ने बीते 15 साल में अभिव्यक्ति की आजादी को दबाकर रखा. सरकार के सामने आवाज उठाने वालों को बोलने से रोका गया. धरना-प्रदर्शन की अनुमति की प्रक्रिया कठिन की गई. कई दफा अनुमति नहीं दी जाती थी. ये तानाशाही प्रशासनिक मशीनरी में रच बस गई थी. इसी सिलसिले में भोपाल पुलिस ने हर्जाना भरने का आदेश निकाला था.
उन्होंने कहा कि कांग्रेस सरकार में सबको बोलने की आजादी है. आंदोलन करना सबका हक है और उसे दबाने की इजाजत किसी को नहीं है. शोभा ओझा ने ऐसा कहकर ये साबित करने की कोशिश की कि बीजेपी सरकार में धरना-प्रदर्शन प्रतिबंधित था. अब बीजेपी नेता भी कोई आंदोलन करके अपनी बात रखना चाहता है कि उसे भी इजाजत नहीं दी जाती है. लेकिन कांग्रेस सरकार उस आवाज को भी सुनने की पक्षधर है. भले ही ये आंदोलन कांग्रेस के ही खिलाफ क्यों ना हो.