सभी दलों के समर्थन से दलित और पिछड़े वर्ग के 2 अप्रैल को हुए और आगामी 9 अगस्त को होने वाले भारत बंद के दबाव में आकर यह निर्णय लिया गया है.
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भोपाल: लोकतांत्रिक जनता दल के नेता शरद यादव का कहना है कि असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन एनआरसी घोषित करने से पहले सरकार को इस मामले में सभी दलों के साथ विचार विमर्श कर कोई ‘सर्वसम्मत रास्ता’ निकालना था. यादव ने ‘पीटीआई-भाषा’ से एक मुलाकात में कहा, ‘‘असम की समस्या पर सर्वदलीय बैठक बुलाकर सरकार को इसके हल के लिये कोई सर्वसम्मत रास्ता तलाशना था. ये मैं मानता हूं कि असम का मामला है, लेकिन इसका लोकतंत्र पर असर हुआ है. उसका न्याय संगत तरीके से हल निकालना चाहिये. लेकिन लगता नहीं है कि इस सरकार के रहते इंसाफ होगा.’’
ये आबादियां इधर से उधर सबसे ज्यादा इस देश में ही हुई हैं
उन्होंने कहा कि भारतीय उपमहाद्वीप में कई लोग यहां आए और यहां से गए. यहां तिब्बत के लोग आये. जब देश बंटा तो कितने बांग्लादेशी यहां आये और कितने लोग यहां से बांग्लादेश गये. पाकिस्तान बना तो कितने लोग यहां से गये जो वहां मुहाजिर कहलाये और कितने सिख यहां आये. ये आबादियां इधर से उधर सबसे ज्यादा इस देश में ही हुई हैं. अफसोस है कि इस पर संसद में ठीक से बहस नहीं चल रही है. कौन तारिख को कौन यहां आया है, ये यदि हम ढूंढेंगे तो देश तबाह हो जायेगा.
भारत बंद के दबाव में आकर लिया गया निर्णय
शीर्ष अदालत द्वारा एसटी एससी एक्ट को कमजोर करने के निर्णय को रद्द करने के लिये केन्द्र सरकार द्वारा मंत्रिपरिषद में संशोधित विधेयक को स्वीकृति देने और संसद में लाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि सभी दलों के समर्थन से दलित और पिछड़े वर्ग के 2 अप्रैल को हुए और आगामी 9 अगस्त को होने वाले भारत बंद के दबाव में आकर यह निर्णय लिया गया है. अगले चुनाव में पार्टियों के प्रस्तावित महागठबंधन में यदि कांग्रेस सबसे बड़े दल के रूप में उभरती है तो क्या कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद के लिये समर्थन होगा ? इस सवाल पर यादव ने कहा, ‘‘कांग्रेस ने इस मामले में स्थिति साफ कर दी है इसलिये इस पर कहने का कोई मतलब नहीं है.’’
हमें लोकतंत्र को बचाना है, जैसे 1977 में बचाया था
कांग्रेस पहले ही कह चुकी है कि उसका पहला लक्ष्य वर्ष 2019 में होने वाले आम चुनाव में भाजपा को सत्ता में आने से रोकना है. यादव ने कहा, ‘‘इस समय देश का संविधान और लोकतंत्र बचाना, किसी भी अन्य मुद्दे से अधिक अहम है. आज हमें लोकतंत्र को बचाना है, जैसे 1977 में बचाया था. उस समय घोषित आपातकाल था, लेकिन इस समय देश में अघोषित आपातकाल है. इसमें किस कोने से किस जगह से गड़बड़ होगी, कह नहीं सकते. (इनपुटः भाषा)