इनके नाम में है 'कांटे' लेकिन काम की खुशबू है फूल जैसी
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इनके नाम में है 'कांटे' लेकिन काम की खुशबू है फूल जैसी

कुछ कर गुज़रने का जज़्बा और किसी ज़रूरतमंद की मदद करने का बीड़ा अगर इंसान एक बार उठा ले तो परिस्थितयां उसके अनुरूप ही हो जाती है। ऐसा ही कुछ करने का संकल्प लिया है ग्वालियर नगर निगम में पदस्थ श्रीकांत कांटे ने।

इनके नाम में है 'कांटे' लेकिन काम की खुशबू है फूल जैसी

ग्वालियर: कुछ कर गुज़रने का जज़्बा और किसी ज़रूरतमंद की मदद करने का बीड़ा अगर इंसान एक बार उठा ले तो परिस्थितयां उसके अनुरूप ही हो जाती है। ऐसा ही कुछ करने का संकल्प लिया है ग्वालियर नगर निगम में पदस्थ श्रीकांत कांटे ने।

इनका एक अलग ही जुनून है। ये गरीब बच्चों को पढ़ाई के लिए किताबें मुहैया कराते हैं और वो भी मुफ़्त में। और इसी मंशा के साथ श्रीकांत कांटे ने शुरू किया है 'बुक बैंक' । क्या है इस बुक बैंक की कहानी पढ़िए, इस स्पेशल रिपोर्ट में।

श्रीकांत कांटे यूं तो शासकीय कर्मचारी है पर इन्होंने अपना जीवन मानवता को समर्पित कर दिया है। दरअसल 8 साल पहले श्रीकांत कांटे के घर में काम करने वाली बाई ने अपनी बेटी की किताबों की व्यवस्था करवाने के लिए श्रीकांत कांटे से कहा क्योंकि किताबें बहुत महंगी थी और उसको खरीदना उस महिला के बस में नहीं था।

श्रीकांत कांटे ने जब बाई की बेटी के लिए किताबों की व्यवस्था करायी तभी उनके मन में ख़्याल आया कि कई ऐसे गरीब बच्चे होते है जिनके पास पढाई के लिए किताबें नहीं है उन्हें किताबे मुहैया कराकर शिक्षित किया जा सकता है।

कांटे के पास इस समय लगभग 5,000 किताबें हैं जो वो गरीब बच्चों को पढाई ले लिए प्रदान कर रहे है। इनकी बुक बैंक की जानकारी ज़्याद से ज़्यादा लोगों तक पहुंचे इसके लिए इनके द्वारा हाल ही में एक मोबाइल एप भी शुरू किया गया है।

इस एप को केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावडेकर ने लॉन्च किया है। इस एप के माध्यम से लोग ऑन लाइन बुक डोनेट और लेने की रिक्वेस्ट कर सकते है। 

सबसे पहले कांटे से किताबें लेकर पढ़ने वाली सुशीला अब बी.कॉम मे आ गई है। वह कहती है अगर उन्हें समय पर किताबें न मिलती तो शायद वह पढ़ नहीं पाती ।

श्रीकांत कांटे द्वारा तैयार किया गया मोबाइल एप भी धीरे-धीरे ज़रूरतमंदों के लिए मददगार साबित हो रहा है और इसकी मदद से भी कई निर्धन छात्र यहां से अपने कोर्स के हिसाब से किताबें ले जा रहे है।

कांटे का ये भी मानना है कि पुरानी किताबों का इस्तेमाल ज़्यादा होने से नयी किताबों की ज़रुरत कम पड़ेगी जिससे कम किताबें बनेगी और इससे पेड़ों की कटाई रुकेगी ।

एक स्कूली बच्चे की किताबों का लगभग तीन किलो वजन होता है,साथ ही एक ज़िले मे औसतन एक हज़ार स्कूल संचालित होते है और इनमे पढ़ने वाले बच्चो के लिए बनने वाली किताबों के लिए लगभग 3800 पेड़ों की बलि देनी पड़ती है।

इन पेड़ो को बलि से बचाने के लिए श्रीकांत कांटे ने NGT में भी याचिका लगायी और NGT ने संज्ञान लेते हुए कहा कि पूरे प्रदेश में बुक बैंक बनायीं जाए।

NGT के आदेश के बाद बुक बैंक योजना को फिलहाल मध्य प्रदेश के 3 ज़िलों में प्रोजेक्ट मॉडल के तौर पर शुरू किया गया है।

 

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