क्यों उठ रही है 'विंध्य प्रदेश' की मांग? जिसको लेकर BJP प्रदेश अध्यक्ष VD शर्मा ने नारायण त्रिपाठी को किया तलब
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क्यों उठ रही है 'विंध्य प्रदेश' की मांग? जिसको लेकर BJP प्रदेश अध्यक्ष VD शर्मा ने नारायण त्रिपाठी को किया तलब

बीजेपी विधायक नारायण त्रिपाठी अपने बयानों से लगातार चर्चा में बने रहते हैं. त्रिपाठी लगातार अलग विंध्य प्रदेश बनाए जाने की मांग को लेकर मोर्चा खोले हुए हैं. जिसके बाद बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने उन्हें तलब किया है.

बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष VD शर्मा ने नारायण त्रिपाठी को किया तलब

भोपालः सतना जिले की मैहर विधानसभा सीट से बीजेपी विधायक नारायण त्रिपाठी को बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने तलब किया. प्रदेश अध्यक्ष ने करीब आधे घंटे तक नारायण त्रिपाठी से बातचीत. विंध्य अंचल से आने वाले नारायण त्रिपाठी लगातार अलग विंध्य प्रदेश बनाए जाने की मांग को लेकर मोर्चा खोले हुए हैं. उन्होंने हाल ही में अलग विंध्य प्रदेश बनाने की मांग को लेकर 15 जनवरी को नीलबड़ में बैठक भी की थी. जिसके बाद वीडी शर्मा ने नारायण को तलब किया.

विंध्य प्रदेश बनाने की मांग कर रहे हैं नारायण त्रिपाठी
बीजेपी विधायक विंध्य प्रदेश की मांग को लेकर अब स्थानीय नेताओं को लामबंद करने में जुटे हैं. 15 जनवरी को उन्होंने अपने निवास पर क्षेत्रीय नेताओं के साथ बैठक कर विंध्य प्रदेश के गठन के लिए रणनीति बनानी शुरू कर दी है. सूत्रों के अनुसार त्रिपाठी विंध्य प्रदेश के लिए बड़ा आंदोलन करने की तैयारी में हैं.  नारायण त्रिपाठी ने पार्टी से बिना अनुमति लिए विंध्य प्रदेश के लिए लामबंदी शुरू कर दी. लेकिन उनकी इस मांग से बीजेपी के कई वरिष्ठ नेता नाराज बताए जा रहे हैं. जिसके बाद वीडी शर्मा ने नारायण त्रिपाठी को बुलाकर उनसे बातचीत की.

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अटलजी ने किया था विंध्य प्रदेश का समर्थनः नारायण त्रिपाठी
नारायण त्रिपाठी कई बार यह बयान दे चुके हैं कि देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी देश में छोटे राज्य बनाए जाने का सर्मथन करते रहे हैं. त्रिपाठी ने कहा था कि अटलजी ने भी विंध्य प्रदेश का समर्थन किया था. क्योंकि वे राज्यों के विकास के लिए उन्हें छोटा करने के पक्षधर थे. नारायण त्रिपाठी लगातार प्रदेश में विंध्य अंचल की उपेक्षा का आरोप लगाकर विंध्य प्रदेश बनाने की मांग कर रहे हैं.

सुर्खियों में रहते हैं नारायण त्रिपाठी
बीजेपी विधायक नारायण त्रिपाठी अपने बयानों से लगातार चर्चा में बने रहते हैं. 2019 में नारायण त्रिपाठी ने विधानसभा सत्र के दौरान एक बिल पर हुई वोटिंग में कमलनाथ सरकार का समर्थन किया था. नारायण त्रिपाठी ने उस वक्त कहा था कि वे मैहर को अलग जिला बनाए जाने की मांग को लेकर सीएम कमलनाथ से मुलाकात कर रहे थे. खास बात यह है कमलनाथ सरकार ने भी उनकी मांग को मानते हुए मैहर को जिला बनाने की घोषणा की थी, लेकिन प्रदेश में बीजेपी सरकार आते ही यह प्रस्ताव खारिज हो गया. जैसे ही प्रदेश में कांग्रेस सरकार अस्थिर हुई तो नारायण त्रिपाठी ने भी यूटर्न ले लिया और उन्होंने कहा कि वे बीजेपी के साथ है. शिवराज सरकार की सत्ता में वापसी के बाद से ही नारायण त्रिपाठी अब लगातार अलग विंध्य प्रदेश बनाए जाने की मांग कर रहे हैं.

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कही विंध्य से शुरू तो नहीं हो रही दबाव की राजनीति
दरअसल, राजनीतिक जानकारों का मानना है कि 2018 के विधानसभा चुनाव बीजेपी ने विंध्य अंचल की 30 विधानसभा सीटों में से 25 सीटों पर जीत दर्ज की थी. लेकिन 2020 में बीजेपी की सरकार बनने के बाद शिवराज मंत्रिमंडल में विंध्य अंचल के कई वरिष्ठ विधायकों को जगह नहीं दी गयी. ऐसे में नारायण त्रिपाठी की विंध्य प्रदेश को अलग राज्य बनाए जाने की मांग सरकार पर दबाव की राजनीति का एक हिस्सा भी माना जा रहा है.

लंबे समय से चल रही है विंध्य प्रदेश की मांग
दरअसल, 1956 में मध्य प्रदेश के गठन के बाद से ही अलग विंध्य प्रदेश बनाए जाने की मांग चल रही है. मध्य प्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी भी अलग विंध्य प्रदेश बनाए जाने के पक्षधर थे. श्रीनिवास तिवारी ने विंध्य प्रदेश की मांग को लेकर विधानसभा में एक राजनीतिक प्रस्ताव भी रखा था. जिसमें उन्होंने कहा था कि मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के विंध्य और बुंदेलखंड क्षेत्र को मिलाकर अलग विंध्य प्रदेश बनाया जाए. हालांकि इस मुद्दे पर ज्यादा विचार नहीं हुआ. लेकिन विधानसभा में प्रस्ताव आने के बाद गाहे-बगाहे कई नेता अलग विंध्य प्रदेश बनाए जाने की मांग समय-समय पर उठाते रहते हैं. कई बार विंध्य प्रदेश को लेकर छोटे-मोटे आंदोलन भी हुए हैं.

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विंध्य प्रदेश की मांग पर केंद्र सरकार को भी भेजा गया था पत्र
खास बात यह है कि साल 2000 में केंद्र की एनडीए सरकार ने झारखंड , छत्तीसगढ़ और उत्तरांखड राज्यों के गठन को स्वीकृति थी. उस वक्त पूर्व कांग्रेस विधायक-सांसद रहे  श्रीनिवास तिवारी के पुत्र स्व. सुंदरलाल तिवारी ने विंध्य प्रदेश की मांग को लेकर साल 2000 में केंद्र की एनडीए सरकार को एक पत्र लिखकर विंध्य प्रदेश बनाए जाने की मांग की थी. इसके लिए मध्य प्रदेश की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने विधानसभा से एक संकल्प पारित कर केंद्र सरकार को भेजा था. लेकिन तब केंद्र सरकार ने इसे खारिज करते हुए मध्य प्रदेश से अलग केवल छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना को हरी झंडी दी थी.

कितना बड़ा है मध्य प्रदेश का विंध्य अंचल
रीवा, सतना, सीधी, सिंगरौली, अनूपपुर, उमरिया और शहडोल जिले विंध्य अंचल में आते हैं. जबकि कटनी जिले का कुछ हिस्सा भी विंध्य क्षेत्र का माना जाता है. इसके अलावा यूपी के कई जिले भी विंध्य क्षेत्र का हिस्सा माने जाते हैं. मध्यप्रदेश के गठन से पहले विंध्य अलग प्रदेश था, जिसकी राजधानी रीवा थी. आजादी के बाद सेंट्रल इंडिया एंजेसी ने पूर्वी भाग की रियासतों को मिलाकर 1948 में विंध्य राज्य का गठन किया था. विंध्य क्षेत्र पारंपरिक रूप से विंध्याचल पर्वत के आसपास का पठारी भाग माना जाता है.  एक ऐसा प्रदेश जो प्राकृतिक और ऐतिहासिक संपदाओं से परिपूर्ण था. इतना ही नहीं विंध्य प्रदेश में 1952 में पहली बार विधानसभा का गठन भी किया गया था. विंध्य प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री पंडित शंभुनाथ शुक्ला थे, जो शहडोल के रहने वाले थे. वर्तमान में जिस इमारत में रीवा नगर-निगम संचालित किया जाता है, वह इमारत उस वक्त विंध्य प्रदेश की विधानसभा थी. विंध्य प्रदेश करीब चार साल तक अस्तित्व में रहा लेकिन 1 नवंबर 1956 को मध्य प्रदेश के गठन के साथ ही विंध्य प्रदेश को भी मध्य प्रदेश में मिला दिया गया.

कौन हैं नारायण त्रिपाठी जो उठा रहे हैं विंध्य प्रदेश की मांग
बीजेपी विधायक नारायण त्रिपाठी विंध्य अंचल के मझे हुए राजनेता माने जाते हैं. त्रिपाठी अब तक तीन अलग-अलग पार्टियों से विधायक बन चुके हैं. वो 2018 के विधानसभा चुनाव में वे बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़े और जीत भी गए. उन्होंने कांग्रेस के श्रीकांत चतुर्वेदी को करीब 3800 वोट से हराया था. वे चौथी बार विधायक बने हैं. 2003 के विधानसभा चुनाव में नारायण त्रिपाठी पहली बार समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव जीतकर विधायक बने थे. बाद में वे कांग्रेस में शामिल हो गए और 2013 को विधानसभा चुनाव में दूसरी बार कांग्रेस के टिकट पर विधायक बने. 2016 में नारायण त्रिपाठी कांग्रेस विधायक पद से इस्तीफा देकर बीजेपी में शामिल हो गए और उपचुनाव में बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीतकर तीसरी बार विधायक बने थे.

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