इंदौरः जहां बनाया गया 'अभयारण्य', वहां खरमोर को सबसे ज्यादा खतरा
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इंदौरः जहां बनाया गया 'अभयारण्य', वहां खरमोर को सबसे ज्यादा खतरा

संकटग्रस्त प्रजाति के प्रवासी पक्षी के संरक्षण के मद्देनजर वन विभाग ने सरदारपुर क्षेत्र में 34,812 हेक्टेयर में फैले खरमोर अभयारण्य और इसके आस-पास के इलाकों में निगरानी बढ़ा दी है.

(फोटो साभार/twitter:@Flickr)

नई दिल्ली/इंदौरः भारतीय वन्य जीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) ने एक अहम सर्वेक्षण के आधार पर मध्यप्रदेश के धार जिले के सरदारपुर क्षेत्र को खरमोर (लेसर फ्लोरिकन) की उन प्राकृतिक बसाहटों में शामिल किया है, जहां इस मेहमान परिंदे के वजूद पर सबसे बड़ा खतरा मंडरा रहा है. नतीजतन वन विभाग ने इस बार सरदारपुर क्षेत्र में खरमोर की हिफाजत के इंतजाम बढ़ा दिये हैं. धार जिले में वन मंडलाधिकारी (डीएफओ) के एसके सागर ने न्यूज एजेंसी "पीटीआई-भाषा" को बताया, "हमें सरदारपुर क्षेत्र में खरमोर के कुछ जोड़े देखे जाने की सूचना मिली है. हम इसकी तसदीक कर रहे हैं." उन्होंने बताया कि संकटग्रस्त प्रजाति के प्रवासी पक्षी के संरक्षण के मद्देनजर वन विभाग ने सरदारपुर क्षेत्र में 34,812 हेक्टेयर में फैले खरमोर अभयारण्य और इसके आस-पास के इलाकों में निगरानी बढ़ा दी है. इसके साथ ही, महकमे के कर्मचारी विशेष वाहन से इन क्षेत्रों में लगातार गश्त कर रहे हैं.

खरमोरों की पारंपरिक पनाहगाह रहा है सरदारपुर
डीएफओ ने हालांकि स्पष्ट नहीं किया कि खरमोर सरदारपुर अभयारण्य में देखे गये हैं या इस संरक्षित क्षेत्र के बाहर. उन्होंने फिलहाल खरमोरों की संख्या का खुलासा करने से भी यह कह कर इंकार कर दिया कि इस सिलसिले में विस्तृत सर्वेक्षण किया जा रहा है. बहरहाल, वन विभाग के जानकार सूत्रों की मानें तो सरदारपुर क्षेत्र में खरमोरों के कम से कम दो जोड़ों के मौजूद होने का अनुमान है. वैसे यह क्षेत्र खरमोरों की पारंपरिक पनाहगाह रहा है. मशहूर पक्षी विज्ञानी सालिम अली के वर्ष 1981 में किये गये दौरे के बाद इस इलाके में खरमोर के संरक्षण के सरकारी प्रयास शुरू किये गये थे. (इनपुटः भाषा से भी)

सरदारपुर क्षेत्र में खरमोरों की संख्या में तेजी से गिरावट आयी है
खरमोर को आकर्षित करने के लिए वन विभाग ने अनोखे प्रयोग के तहत सरदारपुर अभ्यारण्य क्षेत्र में करीब 20 हेक्टेयर क्षेत्र में मूंग और उड़द की फसलें बोई हैं. इन फसलों पर लगने वाले कीड़े और इल्लियां खरमोर का पसंदीदा भोजन हैं. लिहाजा इनपर कीटनाशकों का छिड़काव नहीं किया जा रहा है. हालांकि, जैसा कि पक्षी विशेषज्ञ अजय गड़ीकर बताते हैं कि गुजरे एक दशक में सरदारपुर क्षेत्र में खरमोरों की संख्या में तेजी से गिरावट आयी है. खरमोरों के संरक्षण के लिये वन विभाग के साथ मिलकर काम कर रहे शख्स ने कहा, "इस बार सरदारपुर क्षेत्र में खरमोरों के देखे जाने की सूचना हमारे लिये बड़ी खुशखबरी है." बहरहाल, सरदारपुर क्षेत्र में खरमोरों को बचाना वन विभाग के लिये बड़ी चुनौती है.

खरमोरों के प्राकृतिक बसेरे नष्ट हो रहे हैं
जानकारों ने बताया कि जलवायु परिवर्तन और मॉनसूनी बारिश में कमी के कारण धार जिले के इस इलाके में जहां खरमोरों के प्राकृतिक बसेरे नष्ट हो रहे हैं, वहीं संकटग्रस्त प्रजाति के पक्षी के संरक्षण अभियान को स्थानीय आबादी का भारी विरोध भी झेलना पड़ रहा है. सरदारपुर में विकसित खरमोर अभयारण्य क्षेत्र में पड़ने वाले 14 गांवों के निवासी सरकार से लम्बे समय से मांग कर रहे हैं कि इस संरक्षित इलाके को गैर अधिसूचित कर दिया जाये. इन लोगों का कहना है कि अभयारण्य से जुड़े सख्त नियम-कायदों के कारण उन्हें अपनी जमीनों की खरीद-फरोख्त में कानूनी दिक्कतों और अन्य मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. प्रदेश सरकार को भी इस क्षेत्र में विकास कार्यों के लिये वन और पर्यावरण संबंधी कई मंजूरियां लेनी पड़ती हैं.

खरमोरों पर विलुप्ति का गंभीर संकट मंडरा रहा है
डब्ल्यूआईआई की अगुवाई में किये गये वर्ष 2017 के राष्ट्रीय स्थिति सर्वेक्षण की रिपोर्ट बताती है कि खरमोरों पर विलुप्ति का गंभीर संकट मंडरा रहा है. रिपोर्ट के मुताबिक- "खरमोरों की अनुमानित आबादी कम से कम 264 पक्षियों के स्तर पर पायी गयी है. इससे संकेत मिलता है कि वर्ष 2000 के अनुमानित आंकड़ों के मुकाबले, इन प्रवासी परिंदों की संख्या लगभग 80 प्रतिशत घट गयी है." 

मध्य प्रदेश में चार महीनों तक रहता है खरमोर का डेरा
कुछ ही दिन पहले जारी रिपोर्ट में रेखांकित किया गया है कि मध्यप्रदेश का रतलाम-सरदारपुर क्षेत्र, राजस्थान का शोकलिया-केकरी क्षेत्र और महाराष्ट्र का अकोला-वाशिम क्षेत्र उन प्राकृतिक बसाहटों में शुमार हैं जहां खरमोर को सबसे ज्यादा खतरा है. खरमोर अपने वार्षिक "हनीमून" के तहत मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और गुजरात में हर साल जुलाई में पहुंचते हैं और तीन-चार महीनों के लिये डेरा डालते हैं. प्रजनन के बाद ये मेहमान परिंदे अनजान ठिकानों की ओर रवाना हो जाते हैं.

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