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रिलीज से 4 दिन पहले इमरान-यामी की फिल्म 'हक' पर रोक की मांग, हाई कोर्ट पहुंचा केस; जानिए क्या है पूरा मामला

MP News:  इमरान हाशमी और यामी गौतम की फिल्म 'हक़' पर रिलीज़ से पहले ही संकट मंडरा रहा है. फिल्म पर पूरी तरह से रोक लगाने की मांग की गई है. आज इंदौर हाई कोर्ट में सुनवाई के बाद तय होगा कि मूवी 'हक़' बड़े पर्दे पर रिलीज़ होगी या नहीं.

 

haq movie in indore hc
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Legal notice against movie Haq in Indore High Court: 7 नवंबर को सिनेमाघरों में रिलीज़ होने वाली मूवी 'हक़' पर इस वक़्त संकट मंडरा रहा है. फिल्म जहाँ बड़े पर्दे पर रिलीज़ होने को तैयार है, उससे पहले ही इसे कोर्ट के पचड़ों में फँसना पड़ रहा है. इमरान हाशमी और यामी गौतम स्टारर फिल्म 'हक़' की कहानी शाहबानो केस पर आधारित है. हालाँकि रिलीज़ से पहले ही शाहबानो की बेटी ने इंदौर हाई कोर्ट में फिल्म पर रोक लगाने और इसे रिलीज़ न करने की मांग की है.

'हक़' पर रोक की मांग
दरअसल, इमरान हाशमी और यामी गौतम की फिल्म 'हक़' का टीज़र जब से रिलीज़ हुआ है, दर्शकों के दिलों पर राज कर रहा है. लोग इस मूवी के रिलीज़ होने का इंतज़ार कर रहे हैं. हालाँकि फिल्म रिलीज़ से पहले ही मूवी पर कानूनी संकट मंडराता दिखाई दे रहा है, जो इसकी रिलीज़ डेट पर तमाम तरह के प्रश्न खड़ा कर रहा है.

बिना परमिशन बनी मूवी
फिल्म पर रोक लगाने की मांग करने वाली कोई और नहीं, बल्कि खुद शाहबानो की कानूनी वारिस सिद्दिका बेगम खान हैं. उन्होंने फिल्म के रिलीज़, प्रदर्शन और प्रमोशन पर पूरी तरह से रोक लगाने की मांग की है. इसके लिए उन्होंने फिल्म के डायरेक्टर सुपर्ण एस. वर्मा, जंगली पिक्चर्स, बावेजा स्टूडियोज़ और सी.बी.एफ.सी. के चेयरपर्सन को कानूनी नोटिस भेजा है. सिद्दिका बेगम का कहना है कि फिल्म बिना परमिशन के बनाई गई है, साथ ही मूवी में शरिया कानून को नेगेटिव तरीके से दिखाया गया है. फिल्म में कई ऐसे तथ्यों को दिखाया गया है जो वास्तविकता से परे हैं, ऐसे में यह फिल्म मुस्लिम समुदाय की भावनाओं को आहत करती है.

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मेकर्स ने दिया अपना बयान
वहीं इस लीगल नोटिस के बाद फिल्म 'हक़' के मेकर्स ने अपना बयान देते हुए कहा कि मूवी के स्टार्टिंग में ही फिल्म को किसी का बायोपिक नहीं, बल्कि काल्पनिक कहा गया है. फिल्म अगर काल्पनिक है तो किसी की अनुमति नहीं लेनी पड़ती है.

क्या है शाहबानो केस?
मूवी 'हक़' शाहबानो केस के इर्द-गिर्द घूमती है. कहानी 1978 की है जब इंदौर की एक महिला शाहबानो ने पति मोहम्मद अहमद खान द्वारा तलाक दिए जाने पर गुज़ारा भत्ता पाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था. शाहबानो ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर मेंटेनेंस की मांग की थी. सुप्रीम कोर्ट ने भी शाहबानो के हक में फैसला सुनाया था, हालाँकि मुस्लिम संगठनों ने इसे शरिया के खिलाफ बताया जिस पर बहस छिड़ गई. मुस्लिम संगठनों में आक्रोश के बाद राजीव गाँधी की सरकार ने मुस्लिम महिलाओं को मिलने वाले भरण-पोषण को केवल इद्दत अवधि तक सीमित कर दिया.

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