विशेष स्थापना पुलिस, लोकायुक्त संगठन हो या फिर आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (ईओडब्ल्यू) किसी भी लोक सेवक (अधिकारी-कर्मचारी or Public Servent) के खिलाफ सीधे प्रकरण दर्ज नहीं कर सकेंगे. पूछताछ भी अनुमति मिलने के बाद ही होगी.
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भोपाल: शिवराज सरकार के एक निर्णय ने प्रदेश की जांच एजेंसियों के हाथ बांध दिए हैं. राज्य में अब किसी भी अधिकारी-कर्मचारी के खिलाफ जांच एजेंसियां सीधे प्रकरण दर्ज नहीं कर सकेंगी, पूछताछ भी नहीं कर सकेंगी. इसके लिए उन्हें अब पहले सामान्य प्रशासन विभाग से अनुमति लेनी होगी. भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में नई धारा जोड़कर इस व्यवस्था को लागू कर दिया गया है.
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विशेष स्थापना पुलिस, लोकायुक्त संगठन हो या फिर आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (ईओडब्ल्यू) किसी भी लोक सेवक (अधिकारी-कर्मचारी or Public Servent) के खिलाफ सीधे प्रकरण दर्ज नहीं कर सकेंगे. पूछताछ भी अनुमति मिलने के बाद ही होगी. अब अधिकारियों.कर्मचारियों की शिकायत को जांच एजेंसियां सबंधित विभाग को भेजेंगी. विभाग शिकायत की समीक्षा कर अपनी अनुशंसा समन्वय समिति को भेजेगा. समन्वय समिति तय करेगी की जांच होनी चाहिए या नही.
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अधिकारियों-कर्मचारियों से किसी मामले में पूछताछ के लिए भी जांच एजेंसियों को यही प्रोसेस फॉलो करना होगा. कर्तव्यों में लापरवाही पर जांच एजेंसियों के प्रमुख ''भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988'' में धारा 17-ए के तहत सभी संबंधित अभिलेख सहित प्रतिवेदन संबंधित विभाग को भेजेंगे. इसके बाद संबंधित विभाग जांच करके मामला दर्ज करने या न करने की सूचना देगा. पिछले कुछ समय से ऐसे मामले सामने आए हैं, जिसमें संबंधित विभाग अभियोजन को लेकर असहमति जता चुके हैं.
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विधि विभाग की राय संबंधित विभागों से अलग है. अब इसका निराकरण मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली समिति में होना है. इस स्थिति से बचने के लिए सामान्य प्रशासन विभाग ने सभी विभाग और जिला अधिकारियों से कहा है कि वे अधिकारियों-कर्मचारियों के खिलाफ जांच या पूछताछ करने के लिए पूर्व अनुमति जारी करने की प्रक्रिया का कड़ाई से पालन करें.
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