जबलपुर में झंडा सत्याग्रह समारोह का आयोजन, यहीं से हुई थी शुरुआत, जानिए क्या है इतिहास?
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जबलपुर में झंडा सत्याग्रह समारोह का आयोजन, यहीं से हुई थी शुरुआत, जानिए क्या है इतिहास?

जबलपुर में झंडा सत्याग्रह समारोह का भव्य आयोजन किया गया.इस मौके पर केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल ने ध्वजारोहण कर झंडा सत्याग्रह की स्मृतियों को ताजा किया. इस अवसर पर सभी जन प्रतिनिधियों के साथ राष्ट्रीय सेवा योजना मुक्त इकाई के स्वयंसेवक भी मौजूद रहे.

जबलपुर में झंडा सत्याग्रह समारोह का आयोजन, यहीं से हुई थी शुरुआत, जानिए क्या है इतिहास?

कर्ण मिश्रा/जबलपुर: जबलपुर में झंडा सत्याग्रह समारोह का भव्य आयोजन किया गया.इस मौके पर केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल ने ध्वजारोहण कर झंडा सत्याग्रह की स्मृतियों को ताजा किया. इस अवसर पर सभी जन प्रतिनिधियों के साथ राष्ट्रीय सेवा योजना मुक्त इकाई के स्वयंसेवक भी मौजूद रहे.

कार्यक्रम की शुरुआत शहर के तुलाराम चौक से शुरू हुई पदयात्रा के साथ हुई. जहां पदयात्रा की अगुवाई मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल ने की. तुलाराम चौक से लेकर टाउन हॉल तक के मार्ग पर चारों ओर लहराते तिरंगों ने सारा माहौल देशभक्ति के रंग में रंग दिया. पदयात्रा में शामिल सभी सदस्यों ने हाथों में तिरंगा पकड़कर पद यात्रा में हिस्सा लिया.

वहीं देशभक्ति गीतों की धुन के साथ निकलती पदयात्रा ने हर दिल को देशप्रेम भी भावना से भर दिया.इस अवसर पर वीडियो और चित्रकला प्रतियोगिताओं के विजेताओं को पुरस्कृत किया गया. टाउन हॉल में प्राचीन चित्र, किताबों व नक्शों पर आधारित प्रदर्शनी का आयोजन किया गया.

केंद्रीय मंत्री पटेल ने इस मौके पर युवाओं को अमृत महाउत्सव से प्ररेणा लेने की बात कही. केंद्रीय मंत्री ने कहा कि क्रांतिकारियों के परिजनों का सम्मान कर गोरवान्वित महसूस कर रहे हैं. साथ ही उन्होंने कहा कि आने वाले सालों में अमृत महाउत्सव का संकल्प जरूर पूरा होगा. 

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ये है इतिहास
झंडा सत्याग्रह ध्वज सत्याग्रह भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के समय का एक शान्तिपूर्ण नागरिक अवज्ञा आन्दोलन था. जिसमें लोग राष्ट्रीय झंडा फहराने के अपने अधिकार के तहत जगह-जगह झंडे फहरा रहे थे. 

जबलपुर से ही झंडा सत्याग्रह की शुरुआत हुई थी. जहां 18 मार्च 1923 को देश में पहली बार झंडा फहराया गया था. वहीं 18 जून को झंडा दिवस मनाया जाता है.

वर्ष 1922 में कांग्रेस की एक समिति का गठन किया गया था. जिसका उद्देश्य था अब तक चलाए गए असहयोग आंदोलन की सफलता का आंकलन करके अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत करना था. इस समिति के अध्यक्ष हकीम अजमल खां थे. सदस्यों में मोतीलाल नेहरू, विटठ्लभाई पटेल, डॉ. अंसारी, चक्रवती राजगोपालाचारी और कस्तूरी रंगा आयंगर प्रमुख थे. यह समिति 1922 अक्टूबर में जबलपुर आई और गोविंद भवन में ठहरी थी. जनता की ओर से इन नेताओं को विक्टोरिया टाउन हॉल में आयोजित एक समारोह में अभिनंदन पत्र भेंट किया गया.

इस अवसर पर टाउन हॉल के ऊपर तिरंगा झंडा भी फहराया गया था. इस खबर से लंदन की पार्लियामेंट में तहलका मच गया। भारतीय मामलों के सचिव लार्ड विंटरटन को इस बात की सफाई देने में बड़ा समय लगा. उन्‍होंने आश्वासन दिया कि अब कभी ऐसा नहीं होगा. लेकिन ऐसा हो नहीं पाया. मार्च 1923 में कांग्रेसी कार्यकर्ताओं की दूसरी समिति आई. जिसमें बाबू राजेंद्र प्रसाद, राजगोपालाचारी, जमनालाल बजाज और देवदास गांधी प्रमुख थे. म्युनसिपल कमेटी ने मानपत्र देने का विचार बनाया. कंछेदीलाल जैन कमेटी के म्युनसिपालिटी के अध्यक्ष थे.उन्होंने टाउन हॉल पर झंडा फहराने की अनुमति डिप्टी कमिश्नर हेमिल्टन से मांगी.अनुमति न मिलने से आंदोलन शुरू हुआ जिसे झंडा सत्याग्रह का नाम दिया गया.

इस आंदोलन की शुरुआत के बाद वर्ष 1923 में पंडित सुंदरलाल नगर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बने.जिन्होंने जनता को आंदोलित किया गया कि टाउन हॉल पर झंडा अवश्य फहरेगा. 18 मार्च 1923 को पंडित सुंदरलाल ने अपने साब बालमुकुंद त्रिपाठी, बद्रीनाथ दुबे, सुभद्रा कुमारी चौहान, ताजुद्दीन अब्दलु रहीम व माखन लाल चतुर्वेदी को साथ लेकर टाउन हॉल पर झंडा फहरा दिया. इस मसय सीताराम यादव, परमानंद जैन, उस्ताद प्रेमचंद, खुशहाल चंद्र जैन साथ थे. जबलपुर की सफलता से आंदोलित होकर झंडा सत्याग्रह नागपुर पहुंचा. जिसका नेतृत्व सरदार वल्लभभाई पटेल ने किया. 18 जून 1923 को झंडा सत्याग्रह ने झंडा दिवस के रूप में देशव्यापी आंदोलन का रूप ले लिया.

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