कोर्ट में बेटे ने पिता को पहचानने से किया इनकार, कारण जान रह जाएंगे हैरान
गोपाल हर महीने अपने पिता को 3 हजार रुपये का मासिक भत्ता देता था, लेकिन कुछ समय बाद उसने पिता को आर्थिक तंगी का हवाला देते हुए मासिक भत्ता देने से मना कर दिया.
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धारः मध्य प्रदेश के धार जिले में गुजारा भत्ते से बचने के लिए एक बेटे ने अपने ही पिता को पहचानने से इनकार कर दिया. दरअसल, धार के रहने वाले बाबूलाल काफी समय से धार के ही एक वृद्धाश्रम में रहकर जीवन यापन कर रहे थे. ऐसे में कुछ समय तक तो बाबूलाल के बेटे गोपाल ने पहले तो कुछ सालों तक अपने पिता को गुजारा भत्ता दिया, लेकिन बाद में इससे बचने के लिए अपने ही पिता को पहचानने से इनकार कर दिया. बता दें गोपाल हर महीने अपने पिता को 3 हजार रुपये का मासिक भत्ता देता था, लेकिन कुछ समय बाद उसने पिता को आर्थिक तंगी का हवाला देते हुए मासिक भत्ता देने से मना कर दिया. जब पिता ने इस पर आपत्ति जाहिर की तो बेटे ने पिता को पहचानने से ही मना कर दिया.
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उम्र के इस पड़ाव में धार के वृ़द्धाश्रम में जीवन यापन करने को मजबूर बाबूलाल के वैसे तो तीन बच्चे हैं, लेकिन पत्नी से अलग होने के बाद दो बच्चे पत्नी तो एक बाबूलाल के साथ रहने लगा. बाबूलाल ने भी अपने बेटे को पढ़ाने लिखाने और उसका भविष्य संवारने में कोई कमी नहीं छोड़ी और अपना सब कुछ अपने बेटे के नाम कर दिया, लेकिन जैसे ही पिता की जिम्मेदारी बेटे के कंधे पर आई उसने पल्ला झाड़ लिया और पिता को वृद्धाश्रम भेज दिया. वृद्धाश्रम में पिता को रखते हुए वह हर महीने उन्हें तीन हजार रुपये भेजने लगा, लेकिन कुछ समय बाद उसने वो भी देने से मना कर दिया.
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ऐसे में परेशान बाबूलाल ने कोर्ट की शरण ली. जहां उन्हें इंसाफ मिला और बेटे को पिता को 3 हजार रूपये प्रति माह गुजारा भत्ता दिए जाने का आदेश दिया गया. धार जिले की प्रधान न्यायाधीश कुटुम्ब न्यायालय उषा गेडाम ने प्रकरण की सुनवाई करने के बाद बेटे गोपाल को पिता बाबूलाल को हर माल 3 हजार रुपये गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया है. बता दें बाबूलाल की उम्र 75 साल की है, जिन्होंने बेटे पर घर से भगाने और भरण-पोषण से बचने का आरोप लगाया था. जिसके बाद साक्ष्यों के आधार पर कोर्ट ने गोपाल को उसके दायित्व बताते हुए पिता को गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया.