नई दिल्ली: बीते दिनों विपक्ष के हाथ एक ऐसा मुद्दा लगा है, जिसने सत्तारूढ़ बीजेपी की बेचैनी बढ़ा दी है. इस मुद्दे पर बीजेपी की तरफ से कोई ठोस जवाब न आता देख, विपक्षी दलों ने अपना रुख बेहद आक्रामक कर दिया है. विपक्ष अब इस मुद्दे को हर मंच पर सरकार के खिलाफ भुनाने की कोशिश में लगा हुआ है. विपक्ष की शायद ही कोई ऐसी जनसभा, बैठक या मीडिया ब्रीफिंग हो, जिसमें इस मुद्दे को पूरी ताकत के साथ न उठाया जाता हो. वहीं मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में करीब आते विधानसभा चुनावों को देख सत्तारूढ़ बीजेपी सरकारों को यह चिंता सताने लगी है कि कहीं यह मुद्दा आगामी चुनावों में उनके लिए नुकसान की बड़ी वजह न बन जाए. लंबी जद्दोजहद के बाद बीजेपी को इस मुद्दे का तोड़ मिल गया है. अब वह अपने इस तोड़ के साथ अप्रत्यक्ष माध्यमों के जरिए जनता के बीच जा रही है.
रोजगार पर सत्तारूढ़ बीजेपी की खामोशी से आक्रामक हुआ विपक्ष
जी हां, हम बात कर रहे हैं रोजगार के मुद्दे की. दरअसल, 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले बीजेपी ने हर साल दो करोड़ नौकरियां देने का वादा अपनी चुनावी रैलियों के दौरान किया था. 2014 में केंद्र की सरकार बनाने के बाद बीजेपी कितनी प्रत्यक्ष और संतोषजनक नौकरियां देने में कामयाब रही, यह सवाल विपक्ष का हर नेता जनता के बीच से पूछ रहा है. शुरूआत में रोजगार के मुद्दे को लेकर बीजेपी की खामोशी ने विपक्ष के मनोबल को बढ़ा दिया. फिर क्या था, संसद से लेकर नुक्कड़ सभाओं तक इस सवाल का जिक्र होने लगा. जो मतदाता इस मुद्दे को भूल चुके थे, विपक्ष ने उन्हें याद दिलाना शुरू कर दिया. विपक्ष की इसी सक्रियता ने सत्तारूढ़ बीजेपी के माथे पर पसीना लाना शुरू कर दिए. देखते ही देखते मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के चुनाव करीब आने लगे. विधानसभा चुनावो को नजर में रखकर विपक्ष ने इस मुद्दे को धार देना शुरू कर दिया. अब तक सत्तारूढ़ बीजेपी को भी समझ में आ गया था कि अब इस सलाव का जवाब सीधे जनता के बीच जाकर देना होगा.
सरकारी नौकरियों में भर्ती को अप्रत्यक्ष तरीके से प्रचारित करेगी बीजेपी
सूत्रों के अनुसार, उन्होंने लंबी जद्दोजहद के बाद इस मुद्दे का एक तोड़ निकाल लिया है. इस तोड़ के तहत बीजेपी ने मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ सहित केंद्र और समीपवर्ती राज्यों में अब तक निकाली गई बंपर भर्तियों का एक आंकड़ा तैयार किया है. जिसमें भारतीय रेलवे की 90000, केंद्रीय सुरक्षा बलों की 55000, उत्तर प्रदेश में शिक्षकों की करीब 42000, दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में नर्सिंग की करीब 1000, मध्य प्रदेश में जेल प्रहरी की करीब 500, मध्य प्रदेश में पुलिस की 15000, राजस्थान में पुलिस की 600 भर्तियों को शामिल किया गया है. इसके अलावा, आकंड़ों में केंद्रीय विश्वविद्यालय की 5600, उत्तर प्रदेश में अधीनस्थ कृषि सेवा की 2059, केंद्रीय विद्यालयों में शिक्षकों की 8339, इंस्टीट्यूट ऑफ बैंकिंग पर्सलन रिेलेशन ऑफिसर की 4102, उत्तर प्रदेश में शिक्षकों की 41556, उत्तर प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत 1704, एलआईसी में एसोसिएट की 300 और उत्तर प्रदेश के अर्धसरकारी स्कूलों में 3000 शिक्षकों की भर्ती को शामिल किया गया है. इसके अलावा, कई अन्य भर्तियां भी हैं, जिन्हें बीजेपी ने अपनी लिस्ट में शामिल किया है.
मतदाताओं के सामने भावनात्मक तौर पर खुद को मजबूत करना चाहती है बीजेपी
सूत्रों के अनुसार, इस तरह बीजेपी ने बीते कुछ महीनों के भीतर निकाली गई करीब तीन लाख से अधिक नौकरियों का जिक्र अपनी इस नई सूची में किया है. सूत्रों की माने तो बीजेपी रोजगार से जुड़ी इस सूची को प्रत्यक्ष रूप से जनता के बीच न ले जाकर अप्रत्यक्ष तरीके से जनता के बीच ले जाना चाहती है. अप्रत्यक्ष तरीके से जनता के बीच जाने के पीछे बीजेपी के दो मकसद हैं. पहला मकसद बीते कुछ महीनों में उपलब्ध कराए गई सरकारी नौकरी के अवसरों के बाबत वह अपने मतदाताओं को अवगत कराना चाहती है. वहीं दूसरी वजह, विपक्ष से इस मुद्दे पर सीधा टकराव लेकर रोजगार के विषय पर वाद विवाद से बचना चाहती है. सूत्रों का मानना है कि इस कोशिश के जरिए बीजेपी मतदाताओं के सामने भावनात्मक तरीके से खुद को मजबूत करना चाहती है. यदि ऐसा हुआ तो विपक्ष का यह मुद्दा खुद ब खुद मतदाताओं के दिलो-दिमाग में कमजोर होने लगेगा. इसी कवायद के तहत बीजेपी ने मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीगढ़ में अपना अप्रत्यक्ष अभियान शुरू कर दिया है.