MP चुनाव: शिवराज का 'किला' ढहाने के लिए कांग्रेस ने चला तुरुप का पत्ता, ढाल बने पत्नी और बेटा
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MP चुनाव: शिवराज का 'किला' ढहाने के लिए कांग्रेस ने चला तुरुप का पत्ता, ढाल बने पत्नी और बेटा

मध्य प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अरुण यादव के लिए यह सीट नई जरूर है, लेकिन शिवराज की राह में वह एक बड़ा रोड़ा साबित हो सकते हैं.

सीएम चौहान और अरुण यादव दोनों ओबीसी वर्ग से आते हैं.

भोपाल: मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए 28 नवंबर को मतदान होगा. इस विधानसभा चुनाव में एक ओर बीजेपी के ऊपर चौथी बार सत्ता हासिल करने का दबाव है, वहीं दूसरी ओर सत्ताविरोधी लहर के बीच बीते 15 सालों से सत्ता का वनवास झेल रही कांग्रेस वापसी करने के लिए प्रयासरत है. इन सबके बीच मध्य प्रदेश के तीन बार से मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान की परंपरागत सीट बुधनी की चर्चा करना लाजिमी है. यह चर्चा इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि शिवराज ने इस विधानसभा को बीजेपी के अजेय गढ़ में बदल दिया है.

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बुधनी विधानसभा सीट
1957 में अस्तित्व में आई इस सीट पर अब तक हुए 13 विधानसभा चुनाव और 2 विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस को केवल पांच बार जीत मिली है. इस सीट पर आखिरी बार 1998 में कांग्रेस के देव कुमार पटेल ने जीत दर्ज की थी. इसके बाद 2003 में बीजेपी के राजेंद्र सिंह इस सीट पर विजयी हुए. 2006 में हुए उपचुनाव में सीएम शिवराज सिंह ने यहां से जीत हासिल की थी. चौहान ने वर्ष 2008 में बुधनी सीट पर फिर से बीजेपी का परचम लहराया. 2013 के विधानसभा चुनाव में बुधनी सीट पर चौहान ने 84,805 मतों के अंतर से जीत हासिल की थी. 

 

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शिवराज की प्रतिष्ठा दांव पर
इस सीट पर बीजेपी की ओर से एक बार फिर से सीएम शिवराज सिंह चौहान चुनावी मैदान में हैं. शिवराज ने 1990 में पहली बार इसी बुधनी विधानसभा सीट से जीत का स्वाद चखा था. वहीं, इस जीत के बाद शिवराज को 1991 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की लोकसभा सीट विदिशा से सांसद बनने का मौका मिला था. चौहान इस सीट से पांच बार सांसद रहे. वहीं, 2003 में राघोगढ़ विधानसभा सीट पर पूर्व सीएम और कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह के सामने हार के बावजूद उन्हें नवंबर, 2005 में सीएम पद पर बैठाया गया था. 2006 में बुधनी सीट पर हुए उपचुनाव में चौहान ने जीत हासिल की थी. 

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फोटो साभार : फेसबुक

शिवराज की पत्नी और बेटा कर रहे हैं चुनाव प्रचार
2006 के बाद से चौहान लगातार इस सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. यह सीट पर ओबीसी मतदाता बाहुल्य है. इस सीट पर किरार मतदाताओं की संख्या प्रभावशाली है. यह वही वर्ग है जिससे सीएम शिवराज सिंह चौहान आते हैं. कहा जाता है कि उनके इस सीट से जीतने का सबसे बड़ा कारण यही है. बता दें कि इस बार सीएम शिवराज केवल नामांकन करने ही बुधनी विधानसभा सीट पर गए थे. उन्होंने नामांकन के बाद कहा था कि इस क्षेत्र की जनता एक बार फिर उन्हें जिताएगी, क्योंकि मेरे ऊपर पूरे प्रदेश की जिम्मेदारी है, इसलिए अब यहां नहीं आ पाऊंगा. शिवराज का यह बयान बुधनी विधानसभा सीट को लेकर उनका आत्मविश्वास दर्शाता है. हालांकि, शिवराज की गैरमौजूदगी में उनकी पत्नी साधना सिंह और बेटे कार्तिकेय ने यहा चुनाव प्रचार की कमान संभाल रखी है. 

 

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कांग्रेस ने अरुण यादव के रूप में खड़ी कर दी है बड़ी चुनौती
वहीं, कांग्रेस ने शिवराज को चुनौती देने के लिए बुधनी विधानसभा सीट पर पूर्व केंद्रीय मंत्री और मध्य प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अरुण यादव पर भरोसा जताया है. अरुण यादव के लिए यह सीट नई जरूर है, लेकिन शिवराज की राह में वह एक बड़ा रोड़ा साबित हो सकते हैं. इसका सबसे बड़ा कारण अरुण का ओबीसी वर्ग से होना है. इस सीट पर यादव मतदाताओं की संख्या किरार मतदाताओं से कहीं अधिक है. माना जा रहा है कि कांग्रेस ने इसी जातिगत समीकरण के चलते यादव पर अपना दांव लगाया है. वहीं, अरुण लगातार बुधनी में चुनाव प्रचार के दौरान क्षेत्र में व्याप्त समस्याओं के लिए सीधे चौहान को ही दोषी ठहरा रहे हैं. मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2018 को लोकसभा चुनाव 2019 का सेमीफाइनल माना जा रहा है. 

मतदाता
चुनाव आयोग के अनुसार, बुधनी विधानसभा में कुल 2,44,755 मतदाता हैं. इनमें से 1,27,847 पुरुष और 1,16,724 महिला मतदाता हैं. इसके साथ ही 9 थर्ड जेंडर के मतदाता और 175 सर्विस इलेक्टर्स हैं. 

जातिगत समीकरण
बुधनी विधानसभा यादव मतदाताओं की बहुलता वाली सीट है. वहीं, इस सीट पर किरार मतदाता भी खासा प्रभाव रखते हैं. यादव और किरार मतदाता ओबीसी वर्ग में आते हैं. कांग्रेस का मानना है कि पूर्व में ये सभी वोट चौहान को मिलते थे, इसलिए कांग्रेस ने अरुण यादव पर दांव खेला है. इसके अलावा इस सीट पर सामान्य और एससी-एसटी वर्ग के मतदाता भी काफी संख्या में हैं. बता दें कि सीएम चौहान और अरुण यादव दोनों ओबीसी वर्ग से आते हैं. 

भौगोलिक स्थिति
बुधनी की भौगोलिक स्थिति को लेकर लोगों को अक्सर ही धोखा हो जाता है. दरअसल, होशंगाबाद से बुधनी की दूरी केवल सात किलोमीटर है जिसके चलते कई लोग इसे होशंगाबाद जिले के अंतर्गत मानते हैं. जबकि यह सीहोर जिले के अंतर्गत आता है. नर्मदा के एक किनारे पर बुधनी है, तो दूसरी ओर होशंगाबाद. 

सीएम शिवराज के अलावा किसलिए प्रसिद्ध है बुधनी
बुधनी में बनने वाले लाख के खिलौने देशभर में प्रसिद्ध हैं. इसके साथ ही लाख से बनाई गई चूड़ियां की भी मांग कम नहीं है.  
 
प्रसिद्ध धार्मिक स्थल 
देवी धाम सलकनपुर बुधनी के सिद्ध धामों में शुमार है. देवी धाम सलकनपुर में देवी दर्शनों के लिए हर साल हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं. यह मंदिर 1000 फीट ऊंची पहाड़ी पर स्थित है. वहीं, इस मंदिर में करीब 1,400 सीढ़ियां हैं.

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