समाज ने दी बहिष्कार की धमकी, लेकिन बहू ने बंद करा दी कुप्रथा
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समाज ने दी बहिष्कार की धमकी, लेकिन बहू ने बंद करा दी कुप्रथा

परंपराओं के नाम पर कुरीतियों और कुप्रथाओं से जकड़े समाज में कई कुप्रथाएं आज भी चलन में है.

मड़ियादो गांव के एक युवक विवेक तंतुवाय की शादी श्रद्धा से हुई.

दमोह: परंपराओं के नाम पर कुरीतियों और कुप्रथाओं से जकड़े समाज में कई कुप्रथाएं आज भी चलन में है. समाज में आज भी बलि प्रथा जैसी कुप्रथा बदस्तूर जारी है. वहीं समाज ऐसी कुप्रथाओं से छेड़छाड़ करने में डरता है. समाज द्वारा बलि चढ़ाने के लिए कई तरह के तर्क भी दिए जाते हैं. इसी के बीच कई बार समाज को उसकी गलती का अहसास कराने के लिए कोई न कोई सामने आ ही जाता है. ऐसा ही एक मामला दमोह जिले में सामने आया है. यहां एक नई-नवेली दुल्हन की जिद ने एक कुप्रथा को ना सिर्फ खत्म कराया, बल्कि समाज को जागरुक करने के साथ ही एक नजीर भी पेश की है.

  1. समाज में बलि प्रथा जैसी कुप्रथा बदस्तूर जारी

    नई-नवेली दुल्हन ने उठाई कुप्रथा के खिलाफ आवाज

    समाज ने दी थी परिवार को बहिष्कृत करने की धमकी

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दमोह जिले के मड़ियादो गांव में दशकों से शादी की शहनाइयों के बीच बलि की प्रथा चलन में है. यहां मान्यता है कि बलि के बिना शादी पूरी नहीं होती. साथ ही जो ऐसा नहीं करता, देवता उसके और उसके परिवार का अहित करते हैं. शादी में बलि की ये रस्म इलाके के तंतुवाय यानि कोरी समाज में होती है. इस रस्म में दुल्हन के घर आने के दो दिन बाद पास के मंदिर में समाज के लोग जुड़ते है और फिर पशु बलि दी जाती है. मड़ियादो गांव के एक युवक विवेक तंतुवाय की शादी श्रद्धा से हुई. वहीं दुल्हन श्रद्धा को जैसे ही इस रस्म अदायगी का पता चला, उसने इसका विरोध किया. दुल्हन के विरोध दर्ज कराने से परिवार और समाज दोनों हिल गए. दुल्हन श्रद्धा ने अपने पति को इस बात के लिए समझाया. श्रद्धा ने ने कहा कि मैंने पहले विवेक को समझाया, फिर विवेक ने ही पूरे परिवार को राजी किया.

श्रद्धा ने बताया कि उनके इस फैसले पर समाज के लोग भी नाराज हो गए. समाज ने पशु बलि नहीं देने पर विवेक के परिवार को समाज से बहिष्कृत कर देने की घोषणा कर दी. उन्होंने बताया कि दूल्हे विवेक ने उनका साथ दिया और समाज के बड़े-बुजुर्गों को इस कुप्रथा के बारे में जागरूक किया. गौरतलब है कि दूल्हा विवेक इंदौर में अहिल्या बाई विश्वविद्यालय में अतिथि व्याख्याता है. साथ ही श्रद्धा ने भी अपनी पढ़ाई कानपुर विश्वविद्यालय से की है. गांव के अन्य पढ़े-लिखे लोगों ने भी इस दंपती का साथ दिया. दुल्हन ने समाज के आगे हार नहीं मानी और इस कुप्रथा का अंत करवा कर ही मानी. विवेक ने समाज की मान्यताओं से अलग पत्नी की अच्छी पहल का साथ दिया. पशु बलि की जगह नारियल तोड़कर इस रस्म को पूरा किया गया. समाज ने भी उनके इस सुझाव को माना और बलि जैसी कुप्रथा को छोड़ने का संकल्प लिया.

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