MP: सहवाग ने सीहोर की इस महिला को बताया 'सुपर वूमन'
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MP: सहवाग ने सीहोर की इस महिला को बताया 'सुपर वूमन'

जीवन के अंतिम पड़ाव वृद्धावस्था में निराशा, एकाकीपन, गिरता स्वास्थ्य जैसे कारणों से लोग इसे अभिशाप मानने लगे है.

मध्य प्रदेश के सीहोर में रहने वाली 72 वर्षीय लक्ष्मीबाई किसी मिसाल से कम नही हैं.

नई दिल्ली/सीहोर: जीवन के अंतिम पड़ाव वृद्धावस्था में निराशा, एकाकीपन, गिरता स्वास्थ्य जैसे कारणों से लोग इसे अभिशाप मानने लगे है. जीवन के इस भाग में आधुनिकता से कदमताल मिलाने में असमर्थ वृद्धों का हौसला टूटने लगता है. वहीं इन बुजुर्गों के लिए मध्य प्रदेश के सीहोर में रहने वाली 72 वर्षीय लक्ष्मीबाई किसी मिसाल से कम नही हैं. लक्ष्मीबाई 72 वर्ष की उम्र में भी सीहोर के कलेक्ट्रेट दफ्तर के बाहर टाइपिस्ट का कार्य करती हैं. लक्ष्मीबाई की टाइपिंग स्पीड देखकर हर कोई चकित रह जाता है. इनकी इस तेजी को देखकर कोई भी दांतों तले उंगली दबाने को मजबूर हो जाएगा. गौरतलब है कि भारतीय क्रिकेट के विस्फोटक बल्लेबाजों में शुमार वीरेंद्र सहवाग ने मंगलवार को लक्ष्मीबाई का एक वीडियो ट्वीट कर उन्हें 'सुपर वूमन' का दर्जा दिया था. 

 

 

परिस्थितियों से हार मानना नहीं है विकल्प
'परिस्थितियों से हार मान जाना कोई विकल्प नहीं है' ये कहना है सीहोर जिले की 72 वर्षीय लक्ष्मी बाई का. 72 साल की उम्र में जब लोगों को किसी दूसरे के सहारे की जरूरत होती है, लक्ष्मीबाई धड़ाधड़ टाइपिंग करती हैं. लक्ष्मीबाई ने कहा कि संघर्ष हमेशा से ही उनकी जिंदगी का हिस्सा रहा है. उन्होंने बताया कि करीब पांच दशक पहले वैवाहिक जीवन में दरार आने के बाद उन्होंने अपने पैरों पर खड़ा होने की ठानी. उन्होंने बताया कि अपंग बेटी के कारण वैवाहिक जीवन में तनाव बढ़ गया था. पति ने मुझे और अपंग बेटी को छोड़ दिया था. इसके बाद मैंने इंदौर के सहकारी बाजार में पैकिंग का शुरू कर दिया. उस काम से किसी तरह परिवार का गुजारा चल रहा था. लक्ष्मीबाई ने बताया कि इंदौर में पैकिंग का काम करने के साथ ही मुझे मेरे परिवार ने टाइपिंग सीखने की बात कही. मैंने पैकिंग के काम के साथ ही टाइपिंग सीख ली. उन्होंने बताया कि कुछ समय बाद सहकारी बाजार बंद हो गया, तो उनके सामने जीविका का संकट पैदा हो गया. 

पैकिंग के काम से टाइपिंग तक 
लक्ष्मीबाई ने बताया कि जीविका के नए अवसर की तलाश में वे अपने रिश्तेदारो के पास सीहोर चली आईं. उन्होंने बताया कि छोटे-मोटे काम कर जैसे-तैसे परिवार का खर्च कुछ दिनों तक चल गया. फिर उन्होंने एक टाइपराइटर खरीद कर अपने छोटे से हुनर को ही जीविकोपार्जन का रूप दे दिया. उन्होंने बताया कि तात्कालीन कलेक्टर राघवेंद्र सिंह ने उनकी टाइपिंग स्पीड को देखते हुए उन्हें कलेक्टर दफ्तर में बैठने की जगह उपलब्ध कराई थी. लक्ष्मीबाई ने बताया कि प्रशासन की ओर से उन्हें काफी मदद मिली. उन्होंने कहा कि वर्तमान एसडीएम भावना बिलम्बे भी उन्हें कलेक्टर दफ्तर में बैठने की जगह स्थायी रूप से देने के प्रयास कर रही हैं. लक्ष्मीबाई ने बता या कि वे 2008 से सीहोर कलेक्ट्रेट में पहुंचने वाले लोगों के आवेदन, शिकायत और दस्तावेज टाइप कर रही हैं. 

बेटी की दिव्यांगता ने दी प्रेरणा
वीरेंद्र सहवाग ने लक्ष्मीबाई को लेकर किए गए ट्वाट में लिखा था कि ये मेरे लिए एक सुपर वूमन हैं. ये मध्य प्रदेश के सीहोर में रहती है और युवाओं को उनसे सीखना चाहिए. इनके पास जज्बे से भरी स्पीड तो है ही, साथ में लोगों के लिए एक सबक भी है कि कोई काम छोटा नहीं होता और कोई भी उम्र काम करने और सीखने के लिए रोड़ा नही बन सकती है. वीरेंद्र सहवाग के ट्वीट के बारे में पूछने पर लक्ष्मीबाई ने कहा कि हमारे देश में अच्छे लोगों की कमी नहीं है और सहवाग एक अच्छे इंसान हैं. उन्होंने कहा कि अगर किसी में जुनून और जज्बा हो, तो उसे जीवन में आई कोई भी रुकावट आसान लगने लगती है. उन्होंने कहा कि अपनी दिव्यांग बेटी को देखकर मैंने कभी हार नहीं मानी. आपको बस एक वजह चाहिए होती है और मेरे पास मेरी बेटी के रूप में वो वजह है.

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