महासमुंद: कभी भी गिर सकती हैं स्कूल की दीवारें, जोखिम के बीच पढ़ाई को मजबूर मासूम
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महासमुंद: कभी भी गिर सकती हैं स्कूल की दीवारें, जोखिम के बीच पढ़ाई को मजबूर मासूम

 महासमुंद जिले में 1280 प्राथमिक स्कूल और 480 मिडिल स्कूल संचालित है. जिनमें 1760 शासकीय स्कूलों में 1 लाख 35 हजार छात्र-छात्रायें पढ़ने आते हैं.

फाइल फोटो

नई दिल्लीः महासमुंद जिले के हजारों मासूम बच्चे जर्जर स्कूल भवन में जान जोखिम में डालकर पढ़ने को मजबूर है. स्कूलों की हालत देखकर कभी भी हादसे का डर बना रहता है, बावजूद इसके बच्चों को इसी स्कूल में पढ़ाई करना है. वहीं जिले की स्कूलों की हालत जानने के बाद भी स्कूल बिल्डिंग का निर्माण कार्य अभी तक शुरू नहीं किया गया है. बता दें महासमुंद की करीब 51 स्कूलों की हालत बेहद गंभीर है. ऐसे में हर समय हादसे की आशंका बनी रहती है, लेकिन जिला प्रशासन का इस ओर कोई ध्यान नहीं है. स्कूली छात्रों मे हमेशा ही भवन की छत या दीवार गिरने का डर बना रहता है. जिसके चलते छात्र सही से पढ़ाई पर भी ध्यान नहीं दे पाते हैं. बावजूद इसके शासकीय स्कूलों में बच्चों को पढ़ाना पालकों के लिए मजबूरी बन गया है और जिला शिक्षा विभाग वही पुराना रटा-रटाया राग अलाप रहा है. 

करोड़ों मिलने के बाद भी नहीं सुधरी स्कूलों की हालत
वहीं शिक्षा विभाग सरकारी स्कूलों की दशा सुधारने और बेहतर शिक्षा का दावा करते हुए हर साल करोड़ों रूपये सरकारी स्कूलों में खर्च करने का दिलासा तो देती है, लेकिन इसकी जमीनी हकीकत इन तमाम दावों की पोल खोल देती है. सरकारी स्कूलों का जिर्णोद्धार तो दूर इन स्कूलों में बच्चे अपनी जान जोखिम में डालकर पढ़ने को मजबूर है.

महासमुंद में 1280 प्राथमिक स्कूल और 480 मिडिल स्कूल संचालित है
महासमुंद जिले में 1280 प्राथमिक स्कूल और 480 मिडिल स्कूल संचालित है. जिनमें 1760 शासकीय स्कूलों में 1 लाख 35 हजार छात्र-छात्रायें पढ़ने आते हैं. इन्ही स्कूलों में से 51 प्राथमिक और मिडिल स्कूल ऐसे हैं, जो या तो जर्जर है या फिर स्कूल का भवन गिर चुका है और बच्चे अपनी जान जोखिम में डालकर यहां पढ़ने आते हैं.

 शिक्षक के मुताबिक ऐसे हालत में बच्चों  को नहीं पढ़ाया जा सकता है
शिक्षा विभाग के आंकड़ों में भी इन स्कूलों को जर्जर घोषित किया जा चुका  है. इन्हीं स्कूलों में से महासमुंद विकास खंण्ड के ग्राम भुरका मिडिल स्कूल और बागबाहरा विकास खंड के प्राथमिक शाला तेलीबांधा की है. जो बाकी स्कूलों की तरह पूरी तरह जर्जर हो चूका है.
- स्कूल भवन की हालत देखकर यहां सिर्फ बच्चे ही मजबूरी में नहीं पढ़ रहे बल्कि यहां के शिक्षक भी मान रहे है कि ऐसे हालत में बच्चों को यहां पढ़ाना मजबूरी है. जहां कभी भी कोई भी दुर्घटना घट सकती है. गर्मी के दिनों में जैसे-तैसे काम चल जाता है लेकिन बरसात के दिनों में मजबूरी और बढ़ जाती है.

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