राहत इंदौरी: एक ऐसा शायर जिसे मंच पर सुनना, देखना ही अपने आप में 'शायरी' है
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राहत इंदौरी: एक ऐसा शायर जिसे मंच पर सुनना, देखना ही अपने आप में 'शायरी' है

इंसान को गहरी से गहरी बात भी बेहद आसान शब्दों में समझाने वाला शायर- राहत इंदौरी

राहत इंदौरी: एक ऐसा शायर जिसे मंच पर सुनना, देखना ही अपने आप में 'शायरी' है

नई दिल्ली: मौजूदा वक्त में अगर किसी ऐसे शायर की बात की जाए जो एक आम इंसान को गहरी से गहरी बात भी बेहद आसान शब्दों में समझाने का दम रखता है, तो वह नाम है- राहत इंदौरी. मान लीजिये अगर गजल इशारों की कला है तो राहत इंदौरी वह कलाकार है जो अपने अंदाज, और शब्दों के जरिए कोई भी रंग बिखेरने में माहिर हैं. जीवन के अनसुलझे सवालों को सरल भाव में प्रकट करने वाले शायर राहत इंदौरी उर्दू-हिंदी भाषा के विश्व प्रसिद्ध शायर और हिंदी फिल्मों के जाने-माने गीतकार है. 

राहत इंदौरी अपनी लोकप्रियता के लिये कोई ऐसा सरल रास्ता नहीं चुनते जो शायरी की प्रतिष्ठा को कम करे. शायद यही गुण राहत इंदौरी को महान शायर के साथ- साथ एक बेहतर इंसान बनाती है. राहत इंदौरी की शायरी में जिंदगी के हर अनसुलझे सवालों के जवाब है, जिससे आम इंसान रूबरू होता है. उनका लिखा हुआ उनसे ज़्यादा उनके सुनने वालों को याद रहता है.

इंदौरी को मंच पर सुनना, देखना ही अपने आप में एक शायरी है
इंदौरी को मंच पर सुनना, देखना ही अपने आप में एक शायरी है. उनकी बातें लोगों के जेहन में गहरे से उतरती है. इंदौरी जब मंच पर पढ़ रहे होते है तो उनके अंदर एक अलग ही इंदौरी होता है. जिसे सुनने वाला खुद को उनसे एक अलग तरीके से जोड़ पाता है. वे मुशायरों के ऐसे खिलाड़ी है. जिन्हें आप कभी भी किसी समय बाजी मार ही लेते हैं. उनका मंच पर होना जिंदगी का होना होता है. उनके शब्द और आवाज़ का जोड़ अपने आप में अनूठा है.

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उनका मंच पर होना एक जिंदगी का होना होता है. इंदौरी का तेवर जिनता कड़ा भाषा उतनी ही सहज और सरल होती है. बात जितनी गंभीर उसको कहने का अंदाज उतना ही खास होता है. जिन्दगी की हर सच्चाई उनकी शायरी में देखी जा सकती है. मुशायरे की दुनियां उनके बिना अधूरी है. राहत इंदौरी को आम आदमी का शायर कहा जाता है. 

इंदौर में पैदा हुए 
राहत का जन्म इंदौर में 1 जनवरी 1950 में कपड़ा मिल के कर्मचारी रफ्तुल्लाह कुरैशी और मकबूल उन निशा बेगम के यहाँ हुआ. इंदौरी अपने मां-बाप के चौथी संतान थे. उनकी प्रारंभिक शिक्षा नूतन स्कूल इंदौर में हुई. उन्होंने इस्लामिया करीमिया कॉलेज इंदौर से 1973 में अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी की. 

पीएचडी उपाधि ली 
1975 में बरकतउल्लाह विश्वविद्यालय, भोपाल से उर्दू साहित्य में एमए किया. 1985 में मध्य प्रदेश के मध्य प्रदेश भोज मुक्त विश्वविद्यालय से उर्दू साहित्य में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की.

विश्व भर में पाठ किया 
राहत इंदौरी लगातार मुशायरा, कवि सम्मेलन में भाग ले रहे है. उन्होंने पूरे विश्व भर के कवि सम्मेलनों में भाग लिया है. कविता पढ़ने के लिए उन्होंने व्यापक रूप से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यात्रा की है उन्होंने भारत के लगभग सभी जिले में काव्यात्मक संगोष्ठी में भाग लिया है और कई बार अमरीका, ब्रिटेन, कनाडा, सिंगापुर, मॉरीशस, केएसए, कुवैत, बहरीन, ओमान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल आदि यात्रा की है. राहत इंदौरी को बहुत सारे सम्मान मिल प्राप्त हो चुका है. 

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बचपन से चित्रकारी में लगन 
परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने की वजह से राहत को बचपन में काफी मश्किलों का सामना करना पड़ा. राहत अपने स्कूली दिनों में सड़कों पर साइन बोर्ड लिखने का काम करते थे. चित्रकारी में उनका बचपन से मन लगता था. उनकी सुंदर लिखावट किसी का भी दिल जीत लेती थी. वह कुछ ही समय में इंदौर के सबसे बड़े साइनबोर्ड चित्रकार बन गए थे. राहत इंदौरी के साइनबोर्ड्स आज भी इंदौर में देखे जा सकते हैं. 

राहत के शायर बनने की कहानी
राहत इंदौरी के शायर बनने की कहानी बेहद दिलचस्प है. अचानक एक दिन जां निसार अख्तर से राहत इंदौरी की मुलाकात हुई. राहत इंदौरी जां निसार अख्तर का ऑटोग्राफ लेना चाहते थे. कहा जाता है ऑटोग्राफ लेते समय उन्होंने अपने शायर बनने की चाहत बताई थी. अख्तर साहब ने कहा कि पहले 5 हजार शेर जुबानी याद कर लें फिर अपनी शायरी खुद ब खुद लिखने लगोगे. राहत ने तपाक से जबाव दिया कि 5 हजार शेर तो मुझे याद है. अख्तर साहब ने जवाब दिया- तो फिर देर किस बात की है. बस फिर क्या था. राहत साहब इंदौर के आस पास के इलाकों की महफिलों में अपनी शायरी का जलवा बिखेरने लगे और धीरे-धीरे एक ऐसे शायर बन गए जो अपनी बात अपने शेरों के जरिए इस कदर रखते हैं कि उन्हें नजरअंदाज करना नामुमकिन हो जाता है.

इंदौरी के शायरी में उनके शब्द से कही अधिक उनके आवाजों के भाव को ध्यान रखे जाते हैं. लोगों को पता है, अगर भाव नहीं समझ पाए तो शायरी का मजा किरकिरा हो जाएगा. इंदौरी के तल्ख टिप्पणियां किसी को भी सोचने को मजबूर कर देती है- 

सभी का खून है शामिल यहां की मिट्टी में
किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है

दिलों में आग लबों पर गुलाब रखते हैं 
सब अपने चेहरों पे दोहरी नक़ाब रखते हैं 

आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो

दोस्ती जब किसी से की जाए
दुश्मनों की भी राय ली जाए

फूँक डालूँगा किसी रोज़ मैं दिल की दुनिया 
ये तिरा ख़त तो नहीं है कि जिला भी न सकूँ 

बस इसी सोच में हूँ डूबा हुआ 
ये नदी कैसे पार की जाए 

यहाँ इक मदरसा होता था पहले 
मगर अब कार-ख़ाना चल रहा है 

न हार अपनी न अपनी जीत होगी 
मगर सिक्का उछाला जा रहा है 

हमी बुनियाद का पत्थर हैं लेकिन 
हमें घर से निकाला जा रहा है 

चेहरों की धूप आँखों की गहराई ले गया 
आईना सारे शहर की बीनाई ले गया 

मैं आज अपने घर से निकलने न पाऊँगा 
बस इक क़मीस थी जो मिरा भाई ले गया 

राहत साहब की शायरी में जीवन के हर पहलू पर उनकी कलम का जादू देखने को मिलता है. बात चाहे दोस्ती की हो या प्रेम की या फिर रिश्तों की, राहत साहब की कलम जमकर चलती है. राहत इंदौरी की शायरी बहुत दिलकश और पानीदार भी है. राहत इंदौरी हमेशा बेबाकी से अपनी बात कहते आए हैं. उनकी शायरी देखिये - 

मेरी ख़्वाहिश है कि आँगन में न दीवार उठे 
मेरे भाई, मेरे हिस्से की ज़मीं तू रख ले 

राहत इंदौरह की शायरी में रूमानियत के सारे रंग तो दिखते ही हैं साथ ही उनकी गजल में बागी तेवर के रंग भी देखने को मिलते हैं. 

जुगनुओं को साथ लेकर रात रोशन कीजिये
रास्ता सूरज का देखा तो सहर हो जाएगी 

राहत इंदौरी ने लगभर दो दर्जन फिल्मों में गीत लिखे. उनकी लोकप्रिय हिंदी फिल्म गीत कुछ इस तरह हैं.- 

दिल को हज़ार बार रोका (फ़िल्म- मर्डर)
एम बोले तो मैं मास्टर (फ़िल्म- मुन्नाभाई एमबीबीएस)
धुंआ धुंआ (फ़िल्म- मिशन कश्मीर)
ये रिश्ता क्या कहलाता है (फ़िल्म- मीनाक्षी)
चोरी-चोरी जब नज़रें मिलीं (फ़िल्म- करीब)
आज हमने दिल का हर किस्सा (फ़िल्म- सर)
तुमसा कोई प्यारा कोई मासूम नहीं है (फ़िल्म- खुद्दार)
खत लिखना हमें खत लिखना (फ़िल्म- खुद्दार)
रात क्या मांगे एक सितारा (फ़िल्म- खुद्दार)
देखो-देखो जानम हम दिल (फ़िल्म- इश्क़)
नींद चुरायी मेरी (फ़िल्म- इश्क़)
मुर्शिदा (फ़िल्म - बेगम जान)

राहत इंदौरी कुछ रचनाएं (साभार- रेख़्ता)  

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