MP: सरकार बदलते ही जागा व्यापमं का भूत, फिर खुलेगी घोटाले की फाइल
'व्यापमं घोटाले में सिफारिशकर्ता के तौर पर 48 बार शिवराज सिंह चौहान का नाम आया था.'
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भोपालः मध्य प्रदेश में सत्ता के बदलाव के बाद एक बार फिर व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) घोटाले के जिन्न को बाहर लाने की तैयारी चल पड़ी है. प्रदेश के गृहमंत्री बाला बच्चन ने इस घोटाले से जुड़े लोगों को न बख्शे जाने की बात कही है. राज्य के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने लगभग 60 लोगों की जान ले चुके व्यापमं घोटाले को बड़ा मुद्दा बनाया था. व्यापमं का नाम बदलकर हालांकि 'प्रोफेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड' किया जा चुका है. सरकार बदलते ही एक बार फिर व्यापमं की जिरह तेज हो गई है. बाला बच्चन ने शुक्रवार को संवाददाताओं से चर्चा करते हुए कहा कि व्यापमं घोटाले में जो भी शामिल है, उन्हें बख्शा नहीं जाएगा. सरकार आवश्यक कार्रवाई करेगी.
बता दें मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने व्यापमं घोटाले को चुनावी मुद्दा बनाते हुए भाजपा सरकार पर जमकर निशाना साधा था. यही नहीं कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी चुनावी प्रचार के दौरान व्यापमं घोटाले को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को निशाने पर लिया था. वहीं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और वकील कपिल सिब्बल ने भी कहा था कि 'व्यापमं घोटाले में सिफारिशकर्ता के तौर पर 48 बार शिवराज सिंह चौहान का नाम आया था. वहीं सिंह के साथ ही कई अन्य भाजपा मंत्रियों के नाम के साथ ही पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती का नाम भी घोटाले में सामने आया था, लेकिन सीबीआई मामले की निश्पक्षता से जांच न करके भाजपा को बचा रही है.'
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उन्होंने आगे कहा कि 'सीबीआई तथ्यों की अनदेखी कर रही है और भाजपा मंत्रियों समेत पूर्व मुख्यमंत्री को बचाने की कोशिश में लगी है. इसीलिए शिवराज सिंह चौहान और अन्य भाजपा मंत्रियों के खिलाफ दिग्विजय सिंह ने कुल 27000 पन्नों के दस्तावेज पेश करते हुए मुकदमा दायर किया है.'
क्या है व्यापमं घोटाला मामला-
1970 में प्री-मेडिकल टेस्ट बोर्ड के नाम से प्रचलित व्यापमं का गठन मेडिकल परीक्षाओं के लिए किया गया था, जिसके बाद 1981 में गठिच प्री-इंजीनियरिंग बोर्ड को इसमें मिला दिया गया और इसका नाम बदलकर प्रोफेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड कर दिया गया. वहीं 2000-2012 के बीच करीब 55 ऐसे मामलों के सामने आने से खलबली मच गई जिसमें परीक्षार्थी की जगह किसी और ने परीक्षा दी. ऐसे में 7 जुलाई 2013 को पहली बार औपचारिक तौर पर इंदौर की क्राइम ब्रांच ने 20 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज करते हुए मामले की जांच शुरू कर दी.
7 जुलाई 2013 में मामला दर्ज होने के बाद 13 जुलाई 2013 को पुलिस ने मामले के मास्टरमाइंट माने जाने वाले जगदीश सागर को गिरफ्तार किया और अगस्त में घोटाले की जांच एसटीएफ को सौंप दी. जिसके बाद अक्टूबर ने ऐसे 345 छात्रों का रिजल्ट रद्द कर दिया जिन्होंने करीब 3 माह पहले ही व्यापमं की परीक्षी दी थी. वहीं 18 दिसंबर को पूर्व वरिष्ठ शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा पर केस दर्ज किया गया. जिसके बाद तत्कालीन बीजेपी उपाध्यक्ष उमा भारती ने मामले की सीबीआई जांच कराने की मांग की.
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ऐसे में 15 जनवरी 2014 को सीएम शिवराज सिंह चौहान ने विधानसभा में व्यापमं घोटाले पर कहा था कि 1.47 लाख भर्तियों में से 1,000 भर्तियां फर्जी पाई गई हैं. जिसके बाद उन्होंने आंकड़े सुधारते हुए केवल 200 भर्तियों को फर्जी बताया. व्यापमं घोटाले पर बढ़ती राजनीति और दबाव को देखते हुए पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि अगर वह मामले में किसी भी तरह से दोषी पाए जाते हैं तो वह न सिर्फ राजनीति छोड़ देंगे बल्कि दुनिया भी छोड़ देंगे. बता दें इस मामले में शिवराज सिंह चौहान के साथ ही उनकी पत्नी साधना सिंह पर भी घोटाले के आरोप लगे.
जिसके बाद मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने एसआईटी का गठन कर मामले की जांच एसआईटी को सौंप दी. वहीं विपक्ष ने एसटीएफ पर आरोप लगाते हुए कहा कि एसटीएफ मामले में शिवराज सिंह को बचाने की कोशिश कर रही है. 22 अप्रैल 2015 को एसटीएफ ने विसल ब्लोअर के आरोपों पर एक रिपोर्ट बनाकर मध्य प्रदेश हाई कोर्ट को सौंप दिया. जिसमें पाया गया कि विसल ब्लोअर द्वारा लगाए गए आरोप पूरी तरह से गलत हैं. इस दौरान व्यापमं घोटाले के 23 गवाहों की मौत हो गई, जिस पर बीजेपी ने दावा किया कि गवाहों की मौत से बीजेपी का कोई लेना देना नहीं है. जिसके बाद 9 जुलाई 2015 को व्यापमं घोटाले की जांच सीबीआई को सौंप दी गई.
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