1985, 1990, 1993 और 1998 के विधानसभा चुनाव में भोजपुर विधानसभा सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री स्व. सुंदरलाल पटवा ने जीत हासिल की थी.
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भोपालः मध्य प्रदेश के रायसेन जिले की भोजपुर विधानसभा सीट पर काफी समय से पटवा परिवार का राज है. भोपाल से सटी यह विधानसभा सीट राजा भोज के बनाए विशाल शिव मंदिर और शिवलिंग और अपनी प्राचीन धरोहर के लिए विश्वभर में जाना जाता है, जिसके चलते साल भर यहां सैलानियों का तांता लगा रहता है. 1967 में अस्तित्व में आई इस विधानसभा में कुल 2,18,196 मतदाता हैं. अंतिम सात विधानसभा चुनाव की बात की जाए तो 2003 को छोड़कर सभी चुनावों में भाजपा से नाता रखने वाला पटवा परिवार ही इस सीट पर अपना परचम लहराते आया है. 1985, 1990, 1993 और 1998 के विधानसभा चुनाव में भोजपुर में मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री स्व. सुंदरलाल पटवा का राज था, लेकिन 2003 में यह सीट कांग्रेस के खाते में चली गई. 2003 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी राजेश पटेल को जीत मिली थी.
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भोजपुर विधानसभा सीट
2008 में स्व. सुंदरलाल पटवा के भतीजे सुरेंद्र पटवा ने अपने परिवार की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए इस सीट पर जीत हासिल की. उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी राजेश पटेल को 13,666 वोटों के अंतर से पटखनी देते हुए कमल खिलाया था. 2008 में मिली हार से सबक लेते हुए कांग्रेस ने यहां दिग्गज नेता सुरेश पचौरी को टिकट दिया, लेकिन पटवा परिवार की लोकप्रियता के चलते उन्हें 20 हजार से भी अधिक वोटों के अंतर से हार का सामना करना पड़ा.
क्यों महत्वपूर्ण
रायसेन जिले के अंतर्गत आने वाले भोजपुर की बात की जाए तो यह सीट इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इस सीट से वर्तमान विधायक और संस्कृति व पर्यटन मंत्री सुरेंद्र पटवा का इस क्षेत्र में काफी वर्चस्व है. सुंदरलाल पटवा के परिवार से नाता होने के कारण पूरे पटवा परिवार का ही यहां पर खासा दबदबा है. ऐसे में कांग्रेस ने इस विधानसभा सीट पर 2013 के बाद एक बार फिर सुरेश पचौरी को टिकट दिया है, जो कि मध्य प्रदेश कांग्रेस के काफी कद्दावर नेता माने जाते हैं, जिसके चलते यह मुकाबला काफी दिलचस्प माना जा रहा है.
भोजपुर विधानसभा के लोगों की समस्याएं
बता दें सुंदरलाल पटवा ने मुख्यमंत्री से लेकर विदेश मंत्री का सफर भोजपुर विधानसभा क्षेत्र से ही तय किया है. बावजूद इसके इस क्षेत्र का विकास रुका हुआ है. औद्योगिक क्षेत्र होने के बावजूद यहां के युवाओं को रोजगार नहीं मिल रहा है. सड़कों से लेकर अस्पतालों में असुविधाओं का भंडार है. और तो और शिक्षा का भी हाल काफी बुरा है. ऐसे में चुनाव प्रचार के दौरान क्षेत्र में आने वाले प्रत्याशी भी लोगों की समस्याओं को सुलझाने की कोशिश करने के बजाय एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप में जुट जाते हैं. जिसके चलते क्षेत्र की जनता काफी परेशान चल रही है.
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चुनावी इतिहास
वहीं अगर बात करें भोजपुर के चुनावी इतिहास की तो 1967 में अस्तित्व में आई इस विधानसभा सीट पर पहली जीत का मजा कांग्रेस ने चखा था, लेकिन 1985 के विधानसभा चुनाव में जब से यह सीट भारतीय जनता पार्टी के हिस्से ही आई, तब से लेकर अब तक में सिर्फ 2003 के विधानसभा चुनाव में ही कांग्रेस जीत दर्ज करा पाई है. 2003 के विधानसभा चुनाव को छोड़ दिया जाए तो इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी ही काबिज रही है.