2018 की गलती नहीं दोहराना चाहती BJP, आदिवासी वोटबैंक पर है पूरा फोकस! जानिए क्यों?
Advertisement

2018 की गलती नहीं दोहराना चाहती BJP, आदिवासी वोटबैंक पर है पूरा फोकस! जानिए क्यों?

अमित शाह का 7 माह में यह दूसरा एमपी दौरा है. इससे पहले वह सितंबर 2021 में जबलपुर आए थे. जहां वह गोंडवाना साम्राज्य के अमर शहीद राजा शंकर शाह और उनके पुत्र कुंवर रघुनाथ शाह के बलिदान दिवस पर कार्यक्रम में शामिल हुए थे.

2018 की गलती नहीं दोहराना चाहती BJP, आदिवासी वोटबैंक पर है पूरा फोकस! जानिए क्यों?

प्रमोद शर्मा/भोपालः केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह आज भोपाल के दौरे पर हैं. यहां वह जहां वन समितियों के सम्मेलन में शिरकत कर रहे हैं, वहीं भाजपा पदाधिकारियों के साथ बैठक भी करेंगे. जंबूरी मैदान में हो रहे सम्मेलन के जरिए जहां आदिवासी वोटबैंक पर सत्ताधारी पार्टी का फोकस है, वहीं पदाधिकारियों के साथ बैठक में संगठन को चमकाने की कवायद भी चल रही है. इसे 2023 चुनाव के नजरिए से बेहद अहम माना जा रहा है. 

आदिवासियों पर फोकस
भोपाल में आयोजित कार्यक्रम के जरिए बीजेपी का फोकस राज्य की करीब 2 करोड़ की आदिवासी जनसंख्या पर है. साल 2018 में आदिवासी वोटबैंक बीजेपी के पास से खिसकककर कांग्रेस के पाले में चला गया था, जिसका असर चुनाव के नतीजों पर पड़ा और राज्य में कांग्रेस की सरकार की वापसी हुई. हालांकि कमलनाथ सरकार 15 माह भी नहीं चल पाई और फिर से बीजेपी सत्ता पर काबिज हो गई.

7 माह में दूसरा दौरा
अमित शाह का 7 माह में यह दूसरा एमपी दौरा है. इससे पहले वह सितंबर 2021 में जबलपुर आए थे. जहां वह गोंडवाना साम्राज्य के अमर शहीद राजा शंकर शाह और उनके पुत्र कुंवर रघुनाथ शाह के बलिदान दिवस पर कार्यक्रम में शामिल हुए थे. अमित शाह के दौरे के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी बीते साल नवंबर में भोपाल आए थे. खास बात ये रही कि दोनों नेताओं के दौरों का मुख्य फोकस आदिवासी मतदाताओं पर ही था. अब आज के कार्यक्रम का फोकस भी आदिवासियों पर ही है. 

हिंदू संगम ने छीनी थी कांग्रेस से सत्ता
साल 2000 के आसपास आरएसएस ने राज्य में आदिवासियों और वनवासियों को जोड़ने की शुरुआत की. इसके बाद साल 2002 में झाबुआ में हिंदू संगम कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इस कार्यक्रम में दो से ढाई लाख आदिवासी जुटे और पूरा खेल बदल गया. नतीजा ये हुआ कि 10 साल से एमपी की सत्ता पर काबिज दिग्विजय सिंह की सरकार की विदाई हो गई और भाजपा सत्ता में आ गई. 

इसके बाद 2008-2013 के विधानसभा चुनाव में आदिवासी मतदाता भाजपा के साथ जुड़ा रहा लेकिन 2018 में फिर से यह वोटबैंक बीजेपी से छिटका और नतीजे में भाजपा को सत्ता गंवानी पड़ी.  

ये है आदिवासी वोटों का गणित
मध्य प्रदेश के विभाजन के बाद आदिवासी बहुल सीटों की संख्या 41 थी. 2003 के चुनाव में भाजपा ने इन 41 सीटों में से 37 पर जीत दर्ज की. इस जीत ने शहरी वोटर तक प्रभाव रखने वाली बीजेपी की पकड़ गांव-जंगल में भी बना ली. वहीं कांग्रेस की जड़ें हिल गईं. 2008 के चुनाव में भी भाजपा ने परिसीमन के बाद आदिवासी बहुल 47 सीटों में से 31 पर जीत दर्ज की थी. 2013 में भी यही कहानी रही और भाजपा 47 सीटों में से 31 जीतने में सफल रही. 

साल 2018 में हालात बदल गए और आदिवासी बहुल 47 सीटों में से बीजेपी के खाते में सिर्फ 16 गईं. एक उपचुनाव में जीत दर्ज करने के बाद यह आंकड़ा 17 हो गया है लेकिन बीजेपी अपने इस छिटके वोटबैंक को वापस पाना चाहती है और 2023 के विधानसभा चुनाव में जीत के लिए आदिवासी वोटबैंक को अपने साथ जोड़ना बेहद जरूरी है. 

आदिवासी वर्ग को साधने को लिए कई फैसले
बीजेपी ने एमपी में आदिवासी वर्ग से आने वाले मंगूभाई पटेल को राज्यपाल बनाया है. इसके जरिए भाजपा आदिवासी वर्ग को संदेश देने की कोशिश कर रही है. साथ ही अमर शहीद रघुनाथ शाह और शंकर शाह के बलिदान दिवस पर बीजेपी ने कई घोषणाएं भी की. राज्य में पेसा एक्ट लागू किया जा रहा है. सामुदायिक वन प्रबंधन का अधिकार दिया जा रहा है. छिंदवाड़ा विश्वविद्यालय का नाम राजा शंकर शाह के नाम पर होगा. जनजातीय इलाकों में सरकार ने राशन आपके द्वार योजना शुरू की है. 

इतिहास में गुमनाम रह गए नायकों को खोजकर सरकार एक संग्रहालय का निर्माण करा रही है. प्रदेश में जनजातीय नायकों को समर्पित भव्य स्मारकों का निर्माण किया जा रहा है. भगवान बिरसा मुंडा की जयंती को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया गया है.

Trending news