मंत्री मोहन यादव बोले- जनजातीय राजा शंकरशाह के नाम से जानी जाएगी छिंदवाड़ा यूनिवर्सिटी
राजा शंकर शाह गोंडवाना साम्राज्य के राजा थे. 1857 के विद्रोह की ज्वाला पूरे भारत में धधक रही थी. राजा शंकर शाह ने अपनी मातृभूमि को अंग्रेजों से स्वतंत्रत कराने के लिए युद्ध लड़ा था. इस संग्राम में कुंवर रघुनाथ ने अपने पिता राजा शंकर शाह का बढ़-चढकर साथ दिया था.
राहुल सिंह राठौड़/उज्जैन: छिंदवाड़ा विश्वविद्यालय (Chhindada University) को जनजातीय राजा शंकर शाह (Tribal Raja Shankarshah ) के नाम पर किया गया है. उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. मोहन यादव (Dr. Mohan Yadav) ने वीडियो संदेश जारी कर जानकारी दी है. मंत्री ने कहा शीघ्र ही नामकरण के लिए एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन होगा. इससे पहले हबीबगंज स्टेशन का नाम भील रानी कमलापति के नाम किया जा चुका है. इतना ही नहीं इंदौर के भंवरकुआं चौराहे का नाम आदिवासी नायक टंट्या भील के नाम किया जा चुका है. 25 दिसंबर को सीएम इसका उद्घाटन करेंगे.
क्या कहा मंत्री यादव ने?
उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा कि छिंदवाड़ा विश्वविद्यालय (Chhindwada University) अब से राजा शंकर शाह के नाम से जाना जाएगा. ये हमारा सौभाग्य है कि हमारी अपनी विधानसभा में ये प्रस्ताव पारित हुआ है. आजादी की लड़ाई में राजा शंकर शाह का अप्रतिम योगदान रहा है, ये हमारी अपनी परंपरा है कि हम अपने स्वतंत्रता सेनानियों को याद करें. 4 जिलों का ये विश्वविद्यालय राजा शंकर शाह के नाम से जाना जाएगा. मेरी ओर से शुभकामनाएं. बधाई. हम आगे हर तरह के कार्य को भी मजबूती देते रहेंगे. कैबिनेट ने छिंदवाड़ा विश्वविद्यालय का नाम राजा शंकर शाह विश्वविद्यालय किए जाने के प्रस्तावित संशोधन विधेयक के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी.
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कहां-कहां बदले नाम?
इन दिनों राज्य की सियासत में आदिवासी मुद्दा हावी है. प्रदेश सरकार जनजातीय वर्ग के जननायकों के नाम पर अनेक स्थानों के नामकरण कर रही है. इसी क्रम में छिंदवाड़ा विश्वविद्यालय का नामकरण किया गया है. इससे पहले भोपाल के हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम रानी कमलापति के पर नाम किया गया. बिरसा मुंडा के जन्म दिन को गौरव दिवस के रूप में मनाया गया. इसके अलावा इंदौर में टंट्या भील की याद में भव्य कार्यक्रम हुआ था और इंदौर के भंवरकुआं चौराहे का नाम टंट्या भील के नाम पर किया गया था.
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कौन थे राजा शंकर शाह?
राजा शंकर शाह गोंडवाना साम्राज्य के राजा थे. 1857 के विद्रोह की ज्वाला पूरे भारत में धधक रही थी. राजा शंकर शाह ने अपनी मातृभूमि को अंग्रेजों से स्वतंत्रत कराने के लिए युद्ध लड़ा था. इस संग्राम में कुंवर रघुनाथ ने अपने पिता राजा शंकर शाह का बढ़-चढकर साथ दिया था. बताया जाता है कि 1857 में जबलपुर में तैनात अंग्रेजों की 52वीं रेजीमेंट का कमांडर क्लार्क के सामने राजा शंकर शाह और उनके बेटे कुंवर रघुनाथ शाह ने झुकने से मना कर दिया था. उन्होंने आसपास के राजाओं को अंग्रेजों के खिलाफ एकत्र करना शुरू किया. कमांडर क्लार्क को अपने गुप्तचरों से यह बात पता चल गई, जिस पर क्लार्क ने राज्य पर हमला बोल दिया. अंग्रेज कमांडर ने धोखे से पिता-पुत्र को बंदी बना लिया. 18 सितंबर को दोनों को तोप के मुंह से बांधकर उड़ा दिया गया था. दोनों की याद में हर 18 सितंबर को बलिदान दिवस मनाया जाता है.
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