इनसाइड स्टोरी: गोविंद सिंह के नेता प्रतिपक्ष बनने के मायने, क्या कांग्रेस ने साध लिए एक तीर से कई निशाने
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इनसाइड स्टोरी: गोविंद सिंह के नेता प्रतिपक्ष बनने के मायने, क्या कांग्रेस ने साध लिए एक तीर से कई निशाने

गोविंद सिंह को नेता प्रतिपक्ष बनाने की एक बड़ी वजह उनका सीनियर होना भी है, क्योंकि उनके नेता प्रतिपक्ष बनने से कमलनाथ, अरुण यादव सहित पार्टी के दूसरे दिग्गज नेताओं को कोई ऐतराज नहीं होगा. सभी नेता उनका समर्थन करेंगे.

इनसाइड स्टोरी: गोविंद सिंह के नेता प्रतिपक्ष बनने के मायने, क्या कांग्रेस ने साध लिए एक तीर से कई निशाने

अर्पित पांडे/ग्वालियर। आखिरकार मध्य प्रदेश कांग्रेस में बड़ा बदलाव हो गया. अब तक कांग्रेस की तरफ से दोनों अहम पद संभाल रहे पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अब नेता प्रतिपक्ष का पद छोड़ दिया है. उनकी जगह ग्वालियर-चंबल से आने वाले कांग्रेस के कद्दावर नेता डॉ. गोविंद सिंह को सौंपा गया है. लेकिन राजनीतिक जानकारों का मानना है कि डॉ. गोविंद सिंह को नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी दिए जाने के कई सियासी मायने हैं. ऐसे में इसके पीछे की इनसाइड स्टोरी हम आपको बताने जा रहे हैं. 

गोविंद सिंह को नेता प्रतिपक्ष बनाने के सियासी मायने 
ग्वालियर-चंबल में सिंधिया का विकल्प 
डॉ. गोविंद सिंह को नेता प्रतिपक्ष बनाए जाने पर मध्य प्रदेश सहित ग्वालियर-चंबल की राजनीति पर बारीक नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक जानकार देवश्री माली कहते हैं कि '' गोविंद सिंह के बहाने कांग्रेस ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं, ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस में ग्वालियर-चंबल के सबसे बड़े नेता थे, लेकिन उनके जाने के बाद पार्टी को एक ऐसे नेता की जरुरत थी, जो 2023 के विधानसभा चुनाव के लिहाज से बीजेपी से दो-दो हाथ कर सके, गोविंद सिंह उस काम में माहिर है.''

आक्रामक और तेज तर्रार छवि 
राजनीतिक जानकार कहते हैं कि ''2023 के चुनाव में ग्वालियर चंबल सबसे अहम है, 2018 में कांग्रेस की सरकार बनी भी इसी अंचल की वजह से थी और यह सरकार गिरी भी इसी अंचल की वजह से थी. लिहाजा इस क्षेत्र की 34 सीटें इस बार भी निर्णायक होने वाला है. देवश्री माली कहते हैं कि बीजेपी और सिंधिया से मुकाबले के लिए कांग्रेस को एक ऐसे आक्रामक नेता की जरुरत थी, जो सिंधिया से बिना दबे और डरे मुकाबला कर सके, वे कहते हैं कि गोविंद सिंह के राजनीतिक जीवन को देखा जाए तो वह हमेशा से सिंधिया परिवार के मुखर विरोधी रहे हैं, सिंधिया जब कांग्रेस में थे तब भी अगर उनके खिलाफ कोई बात होती थी तो गोविंद सिंह खुलकर उस पर बोलते थे. ऐसे में उनको डराने, झुकाने जैसी स्थिति नहीं बनेगी. वह खुलकर बीजेपी से मोर्चा लेंगे.''

पार्टी के सर्वमान्य नेता 
कमलनाथ गुट की तरफ से यह लगातार कहा जा रहा था कि किसी युवा विधायक को नेता प्रतिपक्ष बनाया जाना चाहिए, जिस पर देवश्री माली कहते हैं ''यह बात सही है कि कमलनाथ गुट किसी युवा नेता को यह जिम्मेदारी देने की मांग कर रहा था, लेकिन गोविंद सिंह को नेता प्रतिपक्ष बनाने की एक बड़ी वजह उनका सीनियर होना भी है, क्योंकि उनके नेता प्रतिपक्ष बनने से कमलनाथ, अरुण यादव सहित पार्टी के दूसरे दिग्गज नेताओं को कोई ऐतराज नहीं होगा. सभी नेता उनका समर्थन करेंगे. ऐसे में कांग्रेस पार्टी ने बीच का रास्ता निकालते हुए गोविंद सिंह को यह जिम्मेदारी सौंपी है.''

गोविंद सिंह का अपना राजनीतिक रसूख 
सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा चल रही है गोविंद सिंह को यह जिम्मेदारी दिग्विजय सिंह के गुट में होने की वजह से मिली है, इस बात से देवश्री माली इत्तेफाक नहीं रखते, उनका कहना है कि ''गोविंद सिंह सातवीं बार के विधायक है, दिग्विजय सिंह और कमलनाथ सरकार दोनों में मंत्री रहे हैं, इसके अलावा कांग्रेस संगठन में भी कई अहम जिम्मेदारियां निभा चुके हैं, सदन में भी कई पदों पर रहे हैं. पूरे मध्य प्रदेश में अब उनकी पहचान कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता के तौर पर होती है, दिल्ली में वह सोनिया गांधी से सीधे मुलाकात कर सकते हैं, हां वह भले ही दिग्विजय सिंह के करीबी रहे हो लेकिन केवल यह कह देना कि उन्हें यह पद दिग्विजय सिंह की वजह से मिला है यह एक दम सही नहीं होगा क्योंकि गोविंद सिंह का अपना खुद का राजनीतिक रसूख है.''

जातिगत समीकरण में भी फिट 
देवश्री माली कहते हैं कि ''ग्वालियर चंबल में जातिगत समीकरण सबसे ज्यादा मायने रखते हैं, ग्वालियर चंबल अंचल ठाकुर बाहुल्य क्षेत्र है. यहां की सीटों पर यह वर्ग निर्णायक होता है, ठाकुर वर्ग से आने वाले बीजेपी के कद्दावर नेता नरेंद्र सिंह तोमर है, सिंधिया के बीजेपी में जाने के बाद थोड़ा असहज लगते हैं. ऐसे में ठाकुर वर्ग के बीच थोड़ी दुविधा का माहौल है, कांग्रेस ने गोविंद सिंह को नेता प्रतिपक्ष बनाकर इस वर्ग को अपने पक्ष में करने की कोशिश की है. खास बात यह भी है कि गोविंद सिंह का मैनेंजमेंट भी अच्छा है 28 सीटों पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस को कई सीटें जिताने में उनकी अहम भूमिका रही थी. जबकि समय-समय पर भी अपनी उपयोगिता साबित करते हैं. ऐसे में यह सब बातें उनके नेता प्रतिपक्ष बनने की बड़ी वजहें है.''

सदन में दूसरे सबसे सीनियर नेता गोविंद सिंह 
डॉ. गोविंद सिंह विधानसभा में दूसरे नंबर के सीनियर लीडर है, उनसे सीनियर केवल शिवराज सरकार में मंत्री गोपाल भार्गव हैं, जो लगातार आठवीं बार विधायक बने हैं, इसके बाद डॉ. गोविंद सिंह का नंबर आता है, वह भिंड जिले की लहार सीट से सातवीं बार विधानसभा चुनाव जीते हैं. जो वर्तमान में कांग्रेस की तरफ से पार्टी के सबसे वरिष्ठ विधायक हैं. ऐसे में पार्टी ने उनके अनुभव को देखते हुए उन्हें नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी सौंपी है. 

सरकार की नाकामी उजागर करूंगाः गोविंद सिंह 
खास बात यह भी है कि भले ही अब तक नेता प्रतिपक्ष कि जिम्मेदारी कमलनाथ के पास थी, लेकिन सदन के अंदर शिवराज सरकार को घेरने का काम गोविंद सिंह ही करते थे. पिछले सत्र के दौरान जब बीजेपी की तरफ से कहा गया कि नेता प्रतिपक्ष सदन में नहीं होते तब गोविंद सिंह ने कहा था कि कमलनाथ नहीं है तो क्या वह तो मौजूद है. आज भी जब वह नेता प्रतिपक्ष कमलनाथ से मिलने पहुंचे तब उन्होंने कहा कि कमलनाथ ने इस्तीफा नहीं दिया है, बल्कि अपनी जिम्मेदारी बांटी है. मैं विपक्ष की भूमिका निभाता था, निभाता रहूंगा और सरकार की सरकार नाकामी उजागर करूंगा. 

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