नई दिल्लीः Gandhi Jayanti 2021: आज राष्ट्रपिता महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi Birth Anniversary) की 152वीं जयंती है. इस अवसर पर हम आपको बता रहें हैं गांधीजी के कुछ अनसुने किस्सों के बारे में. जिनके बारे में आपने कम ही सुना या पढ़ा होगा. तो आइए जानते हैं वरिष्ठ पत्रकार विवेक शुक्ला की किताब 'Gandhi's Delhi' से साभार गांधी जी के कुछ अनसुने किस्सों के बारे में. 


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1915 में पहली बार पहुंचे थे दिल्ली
'Gandhi's Delhi' किताब के अनुसार महात्मा गांधी 12 अप्रैल 1915 को पहली बार दिल्ली आए थे. इसके बाद 9 सितंबर 1947 को दिल्ली के शाहदरा रेलवे स्टेशन पहुंचे और फिर वह कभी दिल्ली से वापस नहीं गए. गृह मंत्री सरदार पटेल और स्वास्थ्य मंत्री राजकुमारी अमृत कौर उन्हें स्टेशन पर लेने आए. आजादी के बीच बंटे देश की राजधानी दिल्ली में दंगों ने प्रभावी रूप ले रखा था. पहाड़गंज, करोलबाग, दरियागंज, महरौली जैसे इलाके दंगों की आग में जल रहे थे. 


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'देश में मुसलमानों को रहने का हक'
पटेल ने बापू को बताया कि वाल्मीकि बस्ती में रहना सुरक्षित नहीं, वहां पाकिस्तानी शरणार्थी ठहरे हुए हैं. नेहरू भी उन्हें सुरक्षित स्थान पर रखना चाहते हैं. बापू बिड़ला हाउस ठहरने के लिए तैयार हो गए, रेलवे स्टेशन से बिड़ला हाउस तक पहुंचते हुए उन्होंने दिल्ली को जलते देखा. वह समझ गए कि स्थिति बेहद संवेदनशील है. 14 सितंबर को वह ईदगाह और मोतियाखान पहुंचे, दोनों ही स्थान दंगों की आग में झुलस रहे थे. पाकिस्तान से अपना सब कुछ खोकर आए हिंदू ओर सिख शरणार्थी उस वक्त हैरान रह गए, जब गांधीजी ने कहा था कि भारत में मुसलमानों को रहने का हक है. 



गांधी ने किया अंतिम उपवास!
लगातार कोशिशों के बावजूद दंगे नहीं थमे, 12 जनवरी को उन्हें पता चला कि महरौली में कुतुबउद्दीन बख्तियार काकी की दरगाह के बाहरी हिस्से को दंगाइयों ने नुकसान पहुंचाया. इतना सुनते ही 13 जनवरी 1948 को उन्होंने अनिश्चितकाल के लिए उपवास शुरू कर दिया. यह उनके जीवन का अंतिम उपवास साबित हुआ. माना जाता आया है कि गांधी ने अपना यह उपवास भारत सरकार पर दबाव बनाने के लिए किया था ताकि वो पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये अदा कर दे. 


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जब दिखने लगा उपवास का असर
किताब के अनुसार यह उपवास दंगाइयों पर नैतिक दबाव डालने के लिए किया गया था. उपवास शुरू होते ही नेहरू और पटेल ने बिड़ला हाउस में डेरा जमा लिया. वायसराय माउंटबेटन भी उनसे मिलने आ रहे थे, सैकड़ों की संख्या में हिंदू, मुसलमान और सिख भी आकर उनसे उपवास तोड़ने के लिए पहुंच रहे थे. आकाशवाणी उनकी सेहत का प्रसार कर रहा था. तभी उनके उपवास का असर दिखने लगा और दिल्ली शांत हुई. तब जाकर 18 जनवरी को उन्होंने उपवास तोड़ा, नेहरू और मौलाना आजाद ने ताजे फलों का रस पिलाया और इस तरह 78 साल के बापू ने हिंसा को अपने उपवास से मात दी. 



जब बापू पहुंचे थे फकीर की दरगाह!
अपने अंतिम उपवास के बाद 27 जनवरी की सुबह बापू काकी की दरगाह पहुंचे, उनके साथ मौलाना आजाद भी थे. उन्होंने मुसलमानों को भरोसा दिलाया कि उन्हें भारत में ही रहना है, कइयों ने पाकिस्तान जाने की जिद भी की. लेकिन बापू ने उन्हें कसकर डांट लगाई. बिड़ला हाउस पहुंचते ही बापू ने पंडित नेहरू को निर्देश देकर दरगाह के क्षतिग्रस्त हिस्से को ठीक भी करवाया. वो बात अलग है कि आज दरगाह से जुड़े किसी भी शख्स को बापू के इस योगदान और इस रिश्ते की जानकारी नहीं है. 


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लुई फिशर से यहां मिलते थे बापू
बापू की सबसे महानतम जीवनी 'दि लाइफ ऑफ महात्मा गांधी' मानी जाने वाली किताब के लेखक लुई फिशर बापू से वाल्मीकि मंदिर में मिला करते थे. 25 जून 1946 को दिल्ली पहुंचते ही वह बापू से मिलने गए, उनकी ही किताब के आधार पर फिल्म 'गांधी' का निर्माण हुआ. 


वाल्मीकि बस्ती में रहे डॉ ओपी शुक्ला के पिता को भी बापू ने पढ़ाया. वे बताते हैं कि वाल्मीकि समाज को जिस तरह बापू ने गले से लगाया, वे उसे कभी नहीं भूल सकते. वाल्मीकि मंदिर के पुजारी ने बताया कि उन्होंने बापू के कमरे में जरा सा भी बदलाव नहीं किया. उनका बिस्तर और लिखने की टेबल आज भी ठीक वैसी ही है. दोनों जगहों पर रोज फूल चढ़ाए जाते हैं.


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