Guru Nanak Jayanti 2022: राहुल सिंह राठौड़/उज्जैन। सिख धर्म के संस्थापक श्री गुरु नानकदेव जी महाराज की जयंती कार्तिक पूर्णिमा को मनाई जाती है, जिसे प्रकाश पर्व या गुरु पर्व भी कहा जाता है. गुरुनानक देव जी की जयंती दुनियाभर में मनाई जाती है. इस साल गुरु नानक जयंती 08, नवंबर यानि आज मनाई जा रही है. जहां सुबह से ही गुरुद्वारों में भक्तों की भारी भीड़ जुट रही है. उज्जैन में भी 48 घंटे पहले से ही गुरुद्वारों में गुरु ग्रंथ सा​हिब का अखंड पाठ किया जा रहा है. खास बात यह है कि बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन से भी गुरुनानक देवजी का बड़ा नाता रहा है. 


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15वीं शताब्दी में उज्जैन आए थे गुरुनानक देव साहब 
बताया जाता है कि गुरुनानक देव 15वीं शताब्दी में उज्जैन क्षिप्रा तट पर आए थे, जहां उन्होंने राजा भर्तृहरि के साथ एक विशाल वृक्ष के नीचे बैठ सत्संग किया और उन्हें तीन शब्द भी सुनाए थे, जिसका स्पष्ठ उल्लेख गुरुग्रंथ साहिब की पवित्र किताब में भी किया गया था. दरअसल, प्रत्येक वर्ष मनाए जाने वाले इस पर्व पर सिक्ख समुदाय विशाल नगर कीर्तन निकालता है जिसकी अगुवाई पंच (पांच) प्यारे करते है, गुरु नानक साहब को फूलों से सजाई सुंदर पालकी में शुशोभित कर विभिन्न जगहों से कीर्तन करते हुए निकाला जाता है, जिसमें भारी संख्या में संगते शामिल होते है. प्रभात फेरी के दौरान जत्थे कीर्तन कर संगत को निहाल करते है. गुरुद्वारों में सजावट के साथ लंगर की व्यवस्था की जाती है. 


गुरुनानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल 1469 ई. को तलवंडी राय नामक स्थान पर आज ही के दिन हुआ था, वर्तमान में इस जगह को ननकाना साहिब के नाम से जाना जाता है जो पाकिस्तान में है. यह स्थली सिख धर्म से जुड़े लोगों के लिए बेहद पवित्र है. गुरुनानक देवजी के पिता का नाम मेहता कालू और माता का नाम तृप्ता देवी और पत्नी का नाम माता सुलखानी था. गुरुनानक देव जी के जीवन को तीन चरणों में बांटे तो उनके जन्मस्थान ननकानासहिब (पाकिस्तान), सुल्तानपुर लोधी (भारत) और करतारपुर शहरों का खास महत्व है.


उज्जैन से गुरुनानक देवजी का संबंध 
गिरनार पर्वत जूनागढ़ से गुरु नानक देव जी और भाई मर्दाना पहले उत्तर फिर पूर्व से सफर करते हुए अहमदाबाद होते हुए मध्य प्रदेश के उज्जैन पहुंचे, पहले के समय में पश्चिमी समुद्री तट से व्यापारी अहमदाबाद और उज्जैन आम तौर पर आते रहते थे, क्योकि ये दोनों नगर व्यापार के बड़े केंद्र माने जाते थे, 1235 ईसवी में सुल्तान अल्तुतिमस द्वारा शहर को लूटना व मंदिरों को तोड़ने का कार्य किया गया. जिसके चलते 15वीं सदी में उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के शासन में सुरक्षा की दृष्टि एक बड़ी दीवार बनाई गई और उसी दौरान गुरुनानक साहब का उज्जैन आगमन हुआ, उस वक्त जब उज्जैन को अवंतीपुरा के नाम से जाना जाता था. तब यहां गुरुनानक देव जी लंबे समय तक रुके थे. 


भर्तृहरि को कहे थे तीन शब्द 
सब मोह माया त्याग कर एक जोगी बने हुए थे और भर्तृहरि गुफा जो आज भी प्रसिद्ध है, वहां भर्तृहरि ध्यान करते रहते थे गुफा के पास मुस्लिम समाज द्वारा एक मस्जिद बनाई गई थी, जिसके में इमली का विशाल वृक्ष था और गुरु नानक देव जब पहली बार उज्जैन आए तो इसी पेड़ के नीचे बैठ गए थे. जिसके बाद उनकी भर्तृहरि से मुलाकात हुई थी. उज्जैन पहुंचने के बाद नानक साहब और भाई मर्दाना ने कीर्तन शुरू कर दिया. दोनों को कीर्तन करते देख 


राजा भर्तृहरि से रहा नहीं गया और वो नानक साहब के पास पहुंच गए और नानक साहब से प्रश्न करने लगे कि यहां आने वाले कितने जोगी मोक्ष को प्राप्त होंगे, जिसके जवाब में नानक साहब ने भर्तृहरि को 3 शब्दे सुनाए जो गुरु ग्रंथ साहब की किताब के अंग क्रंमाक 223 पर प्रिंट है, जिसे सुन भर्तृहरि बहुत प्रसन्न हुए और उन्हें कई सारे सवाल कर नानक साहब से अपनी मन की शंकाओं को दूर किया और यह सिलसिला सीआ भाव के साथ कुछ दिनों तक चलता रहा था. क्योंकि नानक साहब लंबे समय तक उज्जैन में रुके थे. 


वृक्ष के पास बनाया गया गुरुद्वारा 
बाद में इमली के वृक्ष के पास एक गुरुद्वारा बनाया गया, जहां हर वक्त भक्तों की भारी भीड़ लगी रहती है. आज भी विशाल वृक्ष खड़ा हुआ है, जिसका नाम नानक घाट रखा गया और यहां हर प्रकाश पर्व पर समाज जन आते है. 


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