नई दिल्ली: मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे द्वारका प्रसाद मिश्र (Dwarka Prasad Mishra) कांग्रेस के कद्दावर नेताओं में से थे. उन्हें  इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) के सलाहकार की तरह तो याद किया ही जाता है, लेकिन उससे ज्यादा उनके नाम के साथ एक ऐसा किस्सा जुड़ा है, जो आज की राजनीति (Politics) में कल्पना से बाहर है. आज जब चुनाव (Elections) पर खर्च किए पैसों का कोई हिसाब नहीं होता, एक दौर वो भी था जब चुनाव में खर्च किए पैसे में से 250 रूपए का बिल नहीं मिलने पर इंदिरा गांधी के सलाहकार रहे द्वारका प्रसाद मिश्र मुख्यमंत्री की कुर्सी से हाथ धो बैठे थे.


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250 रुपये ने बदल दिया रुख
आज सर से पांव तक भष्टाचार में डूबे नेताओं को देखकर किसी के लिए कल्पना करना आसान नहीं होगा कि भारतीय राजनीति में एक समय और एक नेता ऐसे भी थे, जिन्हें सिर्फ 250 रुपये के लिए मुख्यमंत्री (Chief Minister) पद नहीं मिला. सिर्फ 249 रुपये और 72 पैसे के कारण मुख्यमंत्री पद खो देने के इस किस्से का जिक्र लेखक रामप्यारा पारकर, अगासदिया और डॉ परदेशीराम वर्मा ने अपनी एक किताब में किया है. 


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उपचुनाव हुआ था रद्द
इस कहानी की शुरूआत तब हुई थी जब मुख्यमंत्री नरेशचंद्र सिंह ने इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद राजनीतिक गलियारों में चर्चा शुरू हो गई कि द्वारका प्रसाद मिश्र प्रदेश का सीएम बनना तय है. उस समय प्रदेश ही नहीं केंद्र में भी उनका दबदबा चल रहा था, इसलिए उनका सीएम की कुर्सी पर बैठन तय था. लेकिन नियति में कुछ और लिखा था किसी को अंदाजा भी नहीं था कुछ ऐसा हुआ और सारे समीकरण बदल गए. हुआ ये कि कमलनारायण शर्मा ने एक याचिका लगाई थी, जिसका फैसला आया और उसमें पाया गया कि डीपी मिश्रा ने कसडोल के उपचुनाव में दिखाए गए आंकड़े से ज्यादा पैसे खर्च किए हैं, जिसके चलते कसडोल उपचुनाव को अवैध घोषित कर दिया गया. उस समय डीपी मिश्र के चुनाव एजेंट थे श्यामाचरण शुक्ल. उस समय डीपी मिश्र चुनाव तो जीत गए लेकिन चुनाव पर किए जाने वाले खर्चों के बिल कहीं खो गए. 


सारे समीकरण बदलना शुरू हो गए
इसके बाद कमलनारायण शर्मा ने इस जीत के खिलाफ याचिका दायर की. बड़ी मशक्कत के बाद द्वारका प्रसाद मिश्र को 6300 रुपये के बिल मिल गए, जिस पर उनके चुनाव एजेंट श्यामाचरण शुक्ल के हस्ताक्षर थे. इसके बाद सारे समीकरण बदलना शुरू हो गए. अफवाह फैली कि श्यामाचरण शुक्ल ने डीपी मिश्र को धोखा दिया और कुछ दस्तावेज कमलनारायण शर्मा को दे दिए, जो द्वारका प्रसाद के खिलाफ काम में आए और मई 1963 में कसडोल उपचुनाव को निरस्त कर दिया गया. आरोप तय हुआ कि डीपी मिश्र ने चुनाव के लिए बताई गई रकम से 249 रुपये और 72 पैसे ज्यादा खर्च किए थे. मामला कोर्ट में गया और जबलपुर हाई कोर्ट के फैसले ने मिश्र के राजनीतिक सफर का रुख ही बदल दिया. डीपी मिश्र को 6 साल के लिए चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित किया गया. 


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