Holi 2025: मध्य प्रदेश में भी होली की धूम देखी गई, होली के दिन आदिवासी बहुल झाबुआ जिले में एक बार फिर अजब-गजब नजारा देखने को मिला.
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MP Holi Celebration: होली का त्यौहार देशभर में धूमधाम से मनाया गया. लेकिन रंगों के इस मौके पर कुछ अनोखी परंपराएं भी देखने को मिलती हैं, एमपी के एक जिले में होली के दिन लोग धधकते अंगारों पर चलते नजर आए. आदिवासी अंचलों में लगने वाले 'गल चूल मेले' में यह नजारा दिखा. जहां लोग धधकते अंगारों पर चले क्योंकि इनका मानना है कि ऐसा करने से देवता खुश होते हैं और उनकी मन्नत पूरी होती है.
एमपी के आदिवासी अंचलों में दिखती यह परंपरा
होली के दिन मध्य प्रदेश के आदिवासी अंचलों में 'गल बाबा'की मन्नत को पूरा करने का दिन होता है, इस दिन आदिवासी परिवार अपनी मन्नत के पूरा होने का धन्यवाद अनोखे ढंग करते हैं, जहां महिलाएं धधकते अंगारों पर नंगे पैर चलती हैं, जबकि पुरूष कई फीट ऊपर कमर में रस्सी बांधकर हवा में झूलते हैं, मन्नत उतारने की इस परंपरा को 'गल चूल' कहा जाता है और देवता को 'गल बाबा' कहा गया है. इस बार भी यह परंपरा हर तरफ देखने को मिली. परंपरा के अनुसार मन्नत पूरी होने के बाद मन्नत धारी युवक धुलेंडी के सात दिन पहले ही शरीर पर हल्दी का लेप लगाते हैं और धोती पहनते हैं, कमीज के स्थान पर यह युवक शरीर पर लाल रंग का कांच किया कपड़ा बांधते हैं और सिर पर पगड़ी होती है, हाथ में नारियल के साथ कांच रखते हैं और आंखों में काजल लगाने के साथ गाल पर क्रॉस का चिन्ह बनाते हैं.
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गल ग्रामों में बाहरी स्थान पर लकड़ी की 20-30 फीट ऊंची मचान बनाई जाती है, उस पर सीढ़ी पर से चढ़ा जाता है. गल मचान पर एक 15-20 फीट आड़ी मोटी लकड़ी बनी होती है, जिस पर गल घूमने वाले मन्नतधारी व्यक्ति को औघा लटकाकर बांधा जाता है और नीचे से फिर रस्सी द्वारा एक व्यक्ति उसे मचान के चारों ओर तेजी से घुमाता है, इस प्रकार मन्नत के अनुसार तीन से पांच तक चक्कर लगाए जाते हैं. उसके पश्चात गल देवरा घूमने वाले व्यक्ति के परिजन गल देवता के नीचे बकरे की बलि देते हैं. इस प्रकार की मन्नत पुरूष आदिवासी लेते हैं. उनका मानना है कि इस मन्नत के पूरा होने से उनके घरों की सभी तकलीफे दूर होती हैं.
धूमधाम से मनाई गई होली
गल चूल उत्सव दोनों ही इस संस्कृति के मुख्य आधार हैं जो हर रीति रिवाज एवं परम्पराओं में परिलक्षित होते हैं, आदिवासी समुदाय को देखकर यह महसूस किया जा सकता है कि संस्कृति के होने से ज्यादा महत्वपूर्ण है, उसका निर्वहन करना. इस बार भी होली के मौके पर यह अनोखी परंपरा पूरे आदिवासी अंचल में देखने को मिली.
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