चमत्कार! 12 सालों से नहीं हुआ मां काली की इस प्रतिमा का विसर्जन, 30 लोग मिलकर भी नहीं उठा पाए
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चमत्कार! 12 सालों से नहीं हुआ मां काली की इस प्रतिमा का विसर्जन, 30 लोग मिलकर भी नहीं उठा पाए

स्थानीय लोगों ने बताया कि 12 साल पहले नवरात्र के पर्व पर झिंझरी गांव के ग्रामीणों ने काली माता की प्रतिमा स्थापित की थी.

12 सालों से नहीं उठी मां काली की यह प्रतिमा

डिंडौरीः नवरात्रि का पर्व देश और प्रदेश में धूमधाम से मनाया जा रहा है. वैसे तो विजयादशमी के साथ ही दुर्गा पंडालों में स्थापित मां दुर्गा की प्रतिमाओं को विधि-विधान के साथ विसर्जन कर दिया जाता है. लेकिन मध्यप्रदेश के डिंडौरी जिले के झिंझरी गांव में काली जी की एक ऐसी प्रतिमा है जिसका पिछले 12 सालों से आज तक विसर्जन नहीं हो पाया है. जिससे काली माता की यह प्रतिमा नवरात्रि के पर्व में हर साल चर्चा का विषय बनी रहती है. 

12 साल पहले स्थापित की थी प्रतिमा 
दरअसल, स्थानीय लोगों ने बताया कि 12 साल पहले नवरात्र के पर्व पर झिंझरी गांव के ग्रामीणों ने काली माता की प्रतिमा स्थापित की थी. श्रद्धालुओं ने 9 दिनों तक पंडाल में मां काली की विधि विधान से पूजा अर्चना की और उसके बाद जब विसर्जन का समय आया, तब ग्रामीणों ने विसर्जन के लिए प्रतिमा को उठाना चाहा. लेकिन करीब तीस लोग मिलकर भी मां काली की प्रतिमा को हिला नहीं सके. इस घटना को ग्रामीणों ने देवी का चमत्कार मानते हुए प्रतिमा का विसर्जन नहीं करने का निर्णय लिया और प्रतिमा को उसी स्थान पर स्थापित कर पूजा अर्चना शुरू कर दी. 

30 लोगों पर प्रतिमा हिली तक नहीं थी 
गांव के बुजुर्ग रतन सिंह का दावा है की विसर्जन के लिए जब करीब तीस लोग काली प्रतिमा को उठाने की कोशिश कर रहे थे, उस वक्त उन तीस लोगों में वह खुद भी शामिल थे. रतन सिंह ने बताया की उन्होंने ग्रामीणों के साथ मिलकर पूरी ताकत के साथ प्रतिमा को उठाने की कोशिश की थी. लेकिन पूरे लोग मिलकर भी प्रतिमा को टस से मस नहीं कर पाये थे. जबकि स्थापना के समय लोग देवीजी की प्रतिमा को उठाकर लाए थे. लेकिन विसर्जन के समय कोई प्रतिमा को उठा तक नहीं पाया. लिहाजा ग्रामवासियों ने काली मां की प्रतिमा का विसर्जन न करने का फैसला लिया था

काली माता की देखरेख व पूजापाठ करने वाले पुजारी परेश दुबे ने बताया की 12 साल पहले जब वो इस काली की प्रतिमा को लेने डिंडौरी गए थे. तो इस प्रतिमा को उठाने में 15 आदमी लगे थे और बड़ी आसानी से प्रतिमा को पंडाल में स्थापित किया गया था. लेकिन ठीक 9 दिन बाद विसर्जन के लिये 30 लोग मिलकर भी इस प्रतिमा को उठाना तो दूर हिलाने में भी कामयाब नहीं हो पाये. उसके बाद से इस प्रतिमा के विसर्जन का कभी प्रयास नहीं किया गया. पुजारी ने बताया कि नवरात्र के पर्व पर बड़ी दूर दूर से लोग मिन्नतें लेकर माता काली के दरबार में पहुंचते हैं. सभी भक्त बड़े श्रद्धा भाव से मां की विशेष पूजापाठ करते हैं. 

प्रतिमा में कोई बदलाव देखने को नहीं मिला
खास बात यह है की संध्या की आरती में गांव के नन्हे मुन्हे बच्चे बड़ी संख्या में शामिल होते हैं और छोटे छोटे बच्चे हाथों में ढोलक मंजीरा थामे जयकारे लगाते हुए नजर आते हैं. गौरतलब यह है कि जो भी इस काली प्रतिमा के बारे में सुनता है वह एक बार दर्शन के लिए यहां जरुर पहुंचता है. श्रद्धालुओं का मानना है कि जो भी यहां आता है मां उसकी मुराद जरूर पूरी करती हैं. ग्रामीणों के दावों में कितनी सच्चाई है यह कहना बड़ा ही मुश्किल है. लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि 12 साल गुजरने के बाद भी मिट्टी से बनी माता काली की प्रतिमा के स्वरुप में कोई बदलाव देखने को नहीं मिला है. खास बात यह है कि पिछले 12 सालों से मां काली की यह प्रतिमा नवरात्रि पर चर्चा में रहती है. 

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