Buddhist Sites of Madhya Pradesh: वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि के दिन गौतम बुद्ध का अवतार हुआ था. इसलिए इस तिथि को बुद्ध पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है. इस दिन स्नान-दान के साथ महात्मा बुद्ध के शिक्षाओं के प्रसार-प्रचार का भी बहुत महत्व है. बुद्ध पूर्णिमा के दिन गौतम बुद्ध से जुड़े पवित्र स्थलों पर भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिलती है. अगर आप मध्य प्रदेश के हैं तो आज हम आपको यहां स्थित महात्मा बुद्ध से जुड़े ऐसे पवित्र स्थल के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां आप बुद्ध पूर्णिमा के दिन जा सकते हैं.
दरअसल, बुद्ध पूर्णिमा का पर्व नजदीक है. इस बार बुद्ध पूर्णिमा कल यानी 12 मई को पड़ रही है. इस दिन बौद्ध स्थलों पर धार्मिक कार्यक्रम, प्रार्थना सभाएं और ध्यान आयोजित किए जाते हैं. भक्त बुद्ध की मूर्तियों की पूजा करते हैं, बौद्ध धर्मग्रंथों का पाठ करते हैं और धार्मिक चर्चाओं में भाग लेते हैं.
गौतम बुद्ध को भगवान विष्णु के नौवें अवतार के रूप में माना जाता है. बुद्ध पूर्णिमा का पर्व सोमवार 12 मई को मनाया जाएगा. इस बार भगवान गौतम बुद्ध की 2587 वीं जयंती मनाई जाएगी.
बुद्ध पूर्णिमा के दिन ध्यान, साधना, और करुणा के साथ भगवान बुद्ध की पूजा करने से मानसिक शांति मिलती है और जीवन की परेशानियों से उबरने में मदद मिलती है. अगर आप मध्य प्रदेश के हैं तो आज हम आपको यहां स्थित बुद्ध से जुड़े ऐसे पवित्र स्थान के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां जाकर आप भगवान बुद्ध की पूजा कर सकते हैं.
मध्य प्रदेश में भगवान बुद्ध से जुड़े कई महत्वपूर्ण स्थान हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं: सांची का स्तूप, मुरेलखुर्द, अंधेर, सोनारी के स्तूप, सारू मारू, और देवरकोठार. इसके अलावा भी एमपी में और छोटे बड़े स्थान भगावन बुद्ध से जुड़े हो सकते हैं. लेकिन इन सबसे में सबसे प्रमुख स्थान सांची के स्तूप का है.
मध्य प्रदेश का प्रमुख बौद्ध स्थल सांची है. यह राजधानी भोपाल से लगभग 46 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, सांची स्तूप, अशोक स्तंभ और कलात्मक प्रवेश द्वारों के लिए विश्व प्रसिद्ध है.
यह एमपी का सबसे प्रसिद्ध बौद्ध स्थल है. यहां कई स्तूप हैं, जिनमें सबसे प्रमुख अशोक द्वारा बनवाया गया महान स्तूप है. बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर सांची में विशेष आयोजन होते हैं, जिसमें बड़ी संख्या में बौद्ध अनुयायी और पर्यटक भाग लेते हैं. स्तूपों को सजाया जाता है, विशेष प्रार्थनाएं और अनुष्ठान किए जाते हैं.
ऐसा बताया जाता है कि महान स्तूप (स्तूप संख्या 1) का निर्माण मूल रूप से मौर्य सम्राट अशोक ने तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में करवाया था., उन्होंने भगवान बुद्ध के अवशेषों को यहां स्थापित करने के लिए इसे बनवाया था, जिससे यह स्थान पवित्र हो गया, हालांकि बुद्ध स्वयं कभी सांची नहीं आए थे.
ट्रेन्डिंग फोटोज़