Bastar Tribal Unique Tradition: किसी की मृत्यु के बाद अक्सर लोग कहते हैं कि उसकी आत्मा को शांति मिले. कोई मानता है कि अगर अच्छे कर्म रहें तो आत्मा स्वर्ग नहीं तो नर्क की ओर जाती है, लेकिन छत्तीसगढ़ के बस्तर के कुछ आदिवासी समुदाय के लोग इस मामले पर अपनी अलग प्रतिक्रिया देते हैं. दरअसल, बस्तर में आदिवासी बस्तियों में मृत हो चुके परिजनों की आत्मा को भी घर दिए जाने की परंपरा निभाई जाती है और घर को आना कुड़मा कहा जाता है. सुनने में यह बहुत विचित्र लगेगा, लेकिन बस्तर के आदिवासी समुदाय के लोग अपनी इस परंपरा को कई सालों से निभाते आ रहे हैं.
किसी की याद में किसी चीज का निर्माण करना तो आम बात है, लेकिन किसी की मृत्यु के बाद उसकी आत्मा के लिए घर का निर्माण करना अपनी सोच से भी परे है.
दरअसल, छत्तीसगढ़ बस्तर के अबूझमाड़ में आपको एक अनोखा दृश्य देखने को मिलेगा जहां लोग मर चुके परिजनों के लिए घर का निर्माण करते हैं और उस घर को आना कुड़मा के नाम से बुलाते हैं. गोंडी भाषा में "आना कुड़मा" का मतलब होता है आत्मा का घर.
अबूझमाड़ के आदिवासी समुदाय के लोग अपनी इस परंपरा को कई सालों से निभाते आ रहे हैं. उनका मानना है कि आत्मा के घर के निर्माण से उन्हें विपदाओं से मुक्ति मिलती है. शुभ कार्य में कोई अड़चन नहीं आती और पितृ देवता उनकी रक्षा करते हैं.
बता दें कि घने जंगल में बसे अबूझमाड़ के गांवों में हांडियों के भीतर पूर्वजों की आत्माओं को रखा जाता है. बस्तर संभाग में ऐसे कई स्थान हैं, जहां आदिवासियों की अनोखी मान्यताओं को देखा जा सकता है.
मृत परिजनों के आत्मा के लिए बने इस आना कुड़मा में महिलाओं का जाना वर्जित होता है लेकिन विवाह की रस्मों को पूरा करने से पहले पूर्वजों का आशीर्वाद लेने यहां आना जरुरी होता है.
आना कुड़मा का बात करें तो आत्माओं के निवास के लिए एक छोटा सा कमरा बना होता है जिसमें काफी मृदभांड( मिट्टी के बर्तन) रखे होते हैं इसमें ही आदिवासी समाज के पितृदेव का वास होता है. इसी तरह आदिवासी समाज में घरों में भी एक कमरा पूर्वजों का होता है. जानकार बताते हैं कि आत्माओं के घर के रख रखवा को लेकर आदिवासी बेहद सावधानी बरतते हैं.
बता दें कि सिर्फ विवाह ही नहीं बल्कि नई फसल आने पर भी उसे सबसे पहले पूर्वजों को ही चढ़ाया जाता है. बस्तर के आदिवासी मानते हैं कि उनके पूर्वजों का साक्षात आना कुड़मा में वास होता है इसलिए वे सालभर उनकी पूजा अर्चना करते हैं. मान्यता ये भी है कि अगर किसी ने नई फसल आने पर आना कुड़मा में चढ़ावा नहीं अर्पित किया तो उसके गांव में विपत्ति आ सकती है
बस्तर के आदिवासी समुदाय की ये परंपरा सुनने में तो विचित्र है ही लेकिन कहते हैं कि जिस तरह इंसान पितृ पक्ष मना कर अपने पूर्वजों को याद करते हैं ठीक इसी तरह आना कुड़मा का निर्माण आदिवासियों के पूर्वजों को एक सम्मान दर्शाने की परंपरा है.
डिस्क्लेमर: यहां बताई गई सभी बातें मीडिया रिपोर्ट्स और धार्मिक मान्यताओं पर आधारित हैं. इसकी विषय सामग्री और काल्पनिक चित्रण का ZEEMPCG हूबहू समान होने का दावा या पुष्टि नहीं करता.
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