MP News-मध्यप्रदेश के भोपाल का मिंटो हॉल इमारत नहीं बल्कि इतिहास का जीवंत हिस्सा है. जितना रौचक मिंटो हॉल का इतिहास है उतना ही सफर बेहद खास और गौरवशाली रहा है. इसकी ऐतिहासिक और बुलंद दीवारें आने-जाने वालों को यह एहसास दिलाती है कि पुराने वक्त की शान आज भी जिंदा है.
भोपाल के कुशाभाऊ ठाकरे कन्वेंसन सेंटर जो पहले मिंटो हॉल हुआ करता था, उसने रियासतों से लेकर लोकतंत्र तक अपने कदम जमाए हैं. इस ऐतिहासिक इमारत की हर ईंट और नक्श में आज भी इतिहास की कई कहानियां छिपी हुईं हैं.
1909 में उस समय के भारत के वायसराय लॉर्ड मिंटो अपनी पत्नी के साथ भोपाल आए थे, जो राजभवन में ठहरे थे जो अब लाल कोठी के नाम से जाना जाता है. वहां व्यवस्थाएं ठीन न होने पर वे नाराज हो गए, ये बात जब नवाब बेगम को पता चली तो उन्होंने भवय हॉल के निर्माण का आदेश दिया. जिसकी नींव लॉर्ड मिंटो ने रखी, इसलिए इसका नाम मिंटो हॉल पड़ा.
1990 में नींव रखी गई और 24 साल बाद बनकर मिंटो हॉल तैयार हुआ. उस समय इसमें तीन लाख रुपए की लागत लगी थी. बाद में 1946 में यहां से हमीदिया कॉलेज का संचालन हुआ जो करीब 10 साल तक चलता रहा. इसके बाद इसी हॉल में मध्यप्रदेश की विधानसभा की शुरूआत हुई.
नवाब बेगम सुल्तानजहां के बाद सत्ता नवाब हमीदुल्ला खान को सौंपी गई. उन्हीं के समय में यह इमारत अपने खूबसूरत रूप में तैयार हुई. इस इमारत का बाहरी हिस्सा जॉर्ज पंचम के मुकुट की आकृति में तैयार किया गया.
मिंटो हॉल ने रियासतों से लगाकर लोकतंत्र का सफर तय किया है. रियासत के समय यह भवन सेना का मुख्यालय और पुलिस कप्तान का दफ्तर तक रहा है. इसके बाद हमीदिया कॉलेज संचालित हुआ तो इसने शिक्षा का केंद्र बनने का नया किरदार भी निभाया.
आजादी के बाद 1 नवम्बर 1956 को जब मध्य प्रदेश राज्य का गठन हुआ, तब यह भवन विधानसभा का ठिकाना बना. चार दशकों तक यहां की चारदीवारी में कई नीतियां बनी, जनप्रतिनिधियों की आवाजें गूंजी और लोगों की बातें भी सुनी गईं.
1996 में नई विधानसभा बनने के बाद मिंटो हॉल को आधुनिक कन्वेंशन सेंटर के रूप में संवारा गया. अब इसे कुशाभाऊ ठाकरे कन्वेंशन सेंटर के नाम से जाना जाता है. यहां सरकारी और गैर सरकारी आयोजन होते हैं
ट्रेन्डिंग फोटोज़