Rajwada Palace History-मध्यप्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर का राजवाड़ा पैलेस सिर्फ एक पुराना महल नहीं, बल्कि एक धरोहर है. इंदौर का राजवाड़ा महल, शहर की शान और गौरव का प्रतीक माना जाता है. करीब 200 साल पुराना यह महल आज भी इंदौर के इतिहास को जीवित रखे हुए है. इस ऐतिहासिक इमारत में इंदौर का इतिहास छिपा हुआ है. मंगलवार को राजवाड़ा महल में मोहन यादव सरकार की कैबिनेट बैठक होनी है, आजादी के बाद ये पहली बैठक होगी. चलिए जानते हैं राजवाड़ा महल का इतिहास
राजवाड़ा का निर्माण होलकर रियासत के संस्थापक मल्हार राव होलकर ने अपने जीवन के अंतिम वर्षों में शुरू करवाया था. इंदौर की स्थायी जागीर के रूप में स्थापना 1734 में मल्हार राव की पत्नी गौतमा बाई के नाम पर हुई थी, जिसके बाद 1747 में उन्होंने राजवाड़ा की नींव रखी. निर्माण कार्य बाद में उनके पोते मल्हार राव द्वितीय द्वारा पूरा कराया गया था.
राजवाड़ा महल फ्रेंच, मराठा और मुगल वास्तुकला शैलियों का अद्वितीय संगम है. इसका मुख्य द्वार अत्यंत भव्य और आकर्षक है। बड़ी-बड़ी खिड़कियां, बालकनी और गलियारे होलकर राजवंश की शाही भव्यता का प्रतीक हैं. यह भारत का एकमात्र ऐसा महल है जिसका प्रवेश द्वार सात मंजिला है.
इस महल में तीन बार भयंकर आग लगी—1801, 1908 और 1984 में. पहली बार जब इंदौर पर हमला हुआ था, तब राजवाड़ा की ऊपरी मंजिलें जल गईं. दूसरी बार 1908 में लेफ्ट विंग में आग लगी, जिसका कारण स्पष्ट नहीं है. तीसरी बार 1984 के दंगों में महल को भारी नुकसान पहुंचा और दो शीश महल नष्ट हो गए थे.
राजवाड़ा लगभग 6174 वर्गमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है. इसकी तीन निचली मंजिलें संगमरमर से बनी हैं और ऊपरी चार मंजिलें सागौन की लकड़ी से निर्मित हैं. इसका प्रवेश द्वार 6.70 मीटर ऊंचा है और इसकी स्थापत्य शैली पारंपरिक हिंदू महलों से प्रेरित है, जबकि अंदर का दरबार हॉल ‘गणेश हॉल’ फ्रेंच शैली में है. इसी में मोहन यादव सरकार की मंगलवार को कैबिनेट बैठक होनी हैं. आजादी के बाद राजवाड़ा में पहली बैठक होगी, दरबार हॉल को ठीक वैसे ही सजाया जा रहा है, जैसे होलकर रियासत में दरबार लगता था.
इस सात मंजिला भव्य महल का निर्माण कार्य 1766 से 1834 के बीच पूरा हुआ. इसे तैयार करने में लगभग चार लाख रुपए खर्च हुए थे. इसका आकार 318 फुट लंबा और 232 फुट चौड़ा है. महल की बड़ी-बड़ी खिड़कियां, बालकनी और गलियारे होलकर शासकों और उनकी भव्यता का प्रमाण हैं. यह स्थापत्य और ऐतिहासिक दृष्टि से इंदौर का एक अनमोल धरोहर है.
इंदौर पुरातत्व विभाग के अधिकारी के अनुसार 1975 में होलकर राजवंश ने इस ऐतिहासिक भवन को बेच दिया था. इसे किसे बेचा गया, इसकी जानकारी स्पष्ट नहीं है, परंतु ऐसा माना जाता है कि कासलीवाल परिवार को बेचा गया था. इसके बाद "राजवाड़ा बचाओ समिति" ने विरोध किया, जिससे मामला सरकार तक पहुंचा. जनता के विरोध के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री ने मामले का संज्ञान लिया और राजवाड़ा का अधिग्रहण कर लिया गया. इसके बाद इसे मध्यप्रदेश सरकार की ऐतिहासिक धरोहर में शामिल किया गया.
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