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Zee Madhya Pradesh ChhattisgarhPhotos एमपी की इस मिल से निकलता है भारतीय नोटों का कागज, जानिए कब और किसने की थी शुरूआत?
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एमपी की इस मिल से निकलता है भारतीय नोटों का कागज, जानिए कब और किसने की थी शुरूआत?

Indian Currency Paper Made in MP: अगर आप घर से निकलते हैं तो सबसे पहले यही ख्याल आता है कि पैंट की जेब में कितने नोट पड़े हैं. आज के समय में बिना पैसे के इस दुनिया में कुछ भी करना मुश्किल है. खाना हो या यात्रा, हर जगह रुपये की जरूरत पड़ती है. क्या आपने कभी सोचा है कि जो नोट आपके पास आते हैं. एटीएम से निकाले गए, बैंक से दिए गए या कहीं और से मिले हुए. वे कहां बनते हैं? शायद आपको मुद्रा बनने की प्रक्रिया का कुछ ज्ञान होगा, पर सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर ये कागज कहां और कैसे बनते हैं.

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दरअसल, मध्य प्रदेश के नर्मदापुरम में देश का इकलौता कागज कारखाना है, जहां पर नोटों में इस्तेमाल होने वाला खास कागज तैयार किया जाता है. इसी कारखाने से देश के अलग-अलग शहरों में भेजा जाता है, जहां पर नोट बनाए जाते हैं. इनमें मध्य प्रदेश के देवास, महाराष्ट्र के नासिक, कर्नाटक के मैसूर, प.बंगाल के सालबोनी शामिल हैं.

 

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बता दें कि नर्मदापुरम में स्थित कागज कारखाना, जिसे SPM कहा जाता है. यह कारखाना भारत प्रतिभूति मुद्रण तथा मुद्रा निर्माण निगम लिमिटेड का हिस्सा माना जाता है. यहां से बैंक नोटों के लिए उच्च गुणवत्ता वाला सिक्योरिटी पेपर बनता है. इस कागज से बने नोटों में धोखाधड़ी की गुंजाइश न के बराबर होती है. 

कब बना था यह कारखाना?

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कब बना था यह कारखाना?

नर्मदापुरम कागज कारखाने की शुरूआत 1967 में हुई थी. तत्काली उप प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने 9 मार्च 1967 को इसका औपचारिक उद्घाटन किया था. पहले दो मशीनें 27 जून 1967 को लगाई गई. इसके बाद मशीन 3 व 4 का काम 27 नवंबर 1967 को पूरा हुआ. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, यहां पर आज पीएम-5 मशीनें मौजूद हैं, जिनसे कागज का निर्माण होता है. 

 

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आजादी के बाद भारत का सपना था कि हम नोटों के लिए विदेशों से कागज मंगाने की जरूरत को खत्म करें. 60 के दशक की शुरुआत में यह सपना साकार हुआ. कागज बनाने के लिए जरूरी जमीन, पानी, बिजली और मजदूरी की सुविधा को देखते हुए सरकार ने नर्मदापुरम को सबसे सही जगह माना.

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इस प्रोजेक्ट की नींव 1962 में रखी गई, जब CPWD ने भवन की डिजाइनिंग शुरू की. फिर 28 अक्टूबर 1963 को 500 मीटर लंबे और 50 मीटर चौड़े मुख्य भवन का निर्माण कार्य शुरू हुआ. यह काम समय पर पूरा हुआ और कारखाने ने देश को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में अहम योगदान दिया.

 

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नोटबंदी के समय इस फैक्ट्री में काम का दोगुना बोझ बढ़ गया था, लेकिन यहां की टीम ने पूरी जिम्मेदारी निभाई. इसकी वजह से नोटों की सप्लाई सुचारू रही और अर्थव्यवस्था को मजबूती मिली. यहां 10, 50, 100, 200 और 500 रुपए के नोटों का कागज बनता है. पहले 2000 रुपए के नोट का भी कागज बनता था, पर अब छपाई बंद होने से उसकी मांग नहीं रही.

 

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पहले यह कारखाना केंद्र सरकार का हिस्सा था, लेकिन साल 2006 में इसे एक निगम बना दिया गया. इसके बाद इसकी नीतियों में कुछ बदलाव आए, जिससे कामकाज और आधुनिक हुआ. आज भी नर्मदापुरम का यह कारखाना देश की आर्थिक रीढ़ को मजबूत बनाने में अपनी खास भूमिका निभा रहा है.