करोड़ों खर्च होने के बाद भी क्षिप्रा नदी का पानी पीना छोड़िए नहाने लायक भी नहीं! जानिए क्या कहती है रिपोर्ट
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करोड़ों खर्च होने के बाद भी क्षिप्रा नदी का पानी पीना छोड़िए नहाने लायक भी नहीं! जानिए क्या कहती है रिपोर्ट

क्षिप्रा शुद्धिकरण (shipra shuddhikaran) का मामला प्रदेश में गरमाया हुआ है. संतों के बाद नूरी खान (noori khan) की एंट्री इस मामले में हो गई है. ऐसे में जानें क्षिप्रा शुद्धिकरण के लिए कब कितने पैसे खर्च हुए और क्या प्रयास किए गए.

करोड़ों खर्च होने के बाद भी क्षिप्रा नदी का पानी पीना छोड़िए नहाने लायक भी नहीं! जानिए क्या कहती है रिपोर्ट

राहुल राठौर/उज्जैन: प्रदेश में इन दिनों क्षिप्रा शुद्धिकरण (shipra shuddhikaran) का मामला गरमाया हुआ है. संतों के आंदोलन शांत होने के बाद इसमें महिला कांग्रेस उपाध्यक्ष नूरी खान (noori khan) भी कूद गई हैं. हाल ही में उन्होंने जल सत्याग्रह किया, जिसमें उनकी जान बाल-बाल बची. मामला शुरू होता है प्रदूषण विभाग (pollution department) की रिपोर्ट से, जिसमें शिप्रा के पानी को डी-ग्रेड बताया जाता है.  डी-ग्रेड यानी शिप्रा का पानी पीने तो छोड़िए नहाने के काबिल भी नहीं बचा.

कब-कब आई रिपोर्ट
पहली रिपोर्ट राम घाट की है, जिसमें सबसे पहले 7 अप्रैल को सैंपल लिए गए. उसके बाद 8 जून, 2 जुलाई, 5 अगस्त, 20 सितंबर व 12 अक्टूबर को सैंपल लिए गए. इन सभी सैंपलों की रिपोर्ट में पानी को डी-ग्रेड का बताया गया.

दूसरी रिपोर्ट इंदौर रोड स्थित क्षिप्रा ब्रीज के पास की है. यहां 2 जुलाई के सैंपल में शिप्रा के पानी को सी-ग्रेड बताया गया. उसके बाद 5 अगस्त, 20 सितंबर व 12 अक्टूबर को लिए गए सैंपल में शिप्रा के पानी को डी-ग्रेड का बताया गया.

तीसरी रिपोर्ट त्रिवेणी घाट की है. यहां 7 अप्रैल, 8 जून व 2 जुलाई को लिए गए सैंपल में पानी को सी-ग्रेड वहीं 5 अगस्त, 20 सितंबर व 12 अक्टूबर को शिप्रा के पानी को डी-ग्रेड बताया गया.

कब कितना हुआ खर्च
करीब 5 साल पहले इंदौर में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट की क्षमता बढ़ाई गई थी. खान का पानी नदी में मिलने से रोकने के लिए 99 करोड़ रुपए खर्च कर राघौपिपल्या गांव से कालियादेह पैलेस तक भूमिगत पाइपलाइन बिछवाई गई थी. इसके बाद भी उज्जैन के करीब 16 गंदे नाले, इंदौर की खान नदी, देवास की इंदुस्ट्रि से क्षीप्रा मैली होती रही.

18 साल पहले भाजपा सरकार ने 432 करोड़ रुपए खर्च कर नर्मदा-शिप्रा लिंक करने की परियोजना बनाई थी. पहली बार साल 2016 में सिंहस्थ में लोगों ने नर्मदा-शिप्रा के संगम पर स्नान किया. इसके बाद हालात ये शिप्रा के सूखने और अधिकर प्रदूषित होने में ही नर्मदा का पानी इसमें छोड़ा गया. इसे में इस परियोजना का भी कोई खास लाभ शिप्रा शुद्धीकरण में नहीं मिला.

नवंबर 2017 में सरकार ने 402 करोड़ रुपए का भूमिगत सीवरेज पाइपलाइन प्रोजेक्ट शुरू कराया. इसे साल 2019 में पूरा होना था, लेकिन मौजूदा हालातों को देखते हुए लगता है ये काम 2023 में भी पूरा नहीं हो पाएगा. 4 साल में अनुबंधित कंपनी ने केवल 200 किलोमीटर का काम पूरा किया है, अभी भी 239 किलोमीटर का काम पेंडिंग है.

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बैठक में बनी ये असफल योजना
26 अक्टूबर 2021 को हुई जिला विकास समन्वय एवं निगरानी समिति की बैठक में सेवरखेड़ी में शिप्रा नदी पर बांध बनाने को लेकर चर्चा हुई. साथ ही सांसद अनिल फिरोजिया ने इस बात पर भी जोर दिया कि शिप्रा की शुद्धि बहुत जरूरी है. इसके लिए अकेले सरकार नहीं जनता को भी साथ आना होगा.

कब-कब हुए आंदोलन
प्रदूषण विभाग (pollution department) की रिपोर्ट आने के बाद 16 नवंबर को ज्ञान दास महाराज उपवास पर बैठे थे. उसके बाद 9 दिसंबर से 13 अखाड़ों के संत दत्त अखाड़ा घाट पर धरने पर बैठे थे. 13 जनवरी को जल संसाधन मंत्री, उच्च शिक्षा मंत्री व जिला कलेक्टर के आश्वासन पर 15 दिन के लिए धरना स्थगित किया गया था. 

यहां से मिला राजनीतिक तूल
संतों के बाद महिला कांग्रेस उपाध्यक्ष नूरी खान (noori khan) भी शिप्रा शुद्धिकरण (shipra shuddhikaran) के लिए मैदान में आ जाती हैं, यहीं से मामले को राजनीतिक तूल मिलता है. नूरी खान का कहना है कि उन्हें शिप्रा शुद्धिकरण के लिए लगाई गई 650 करोड़ रुपए की राशि का हिसाब चाहिए. इसके अलावा सरकार ये भी बताए कि वो शिप्रा को लेकर क्या कर रही है. उन्होंने कहा कि शिप्रा हिंदू मुस्लिम के लिए नहीं पूरी जनता के लिए हैं. वैसे भी शिप्रा उज्जैन ही नहीं पूरे प्रदेश के लिए धार्मिक महत्व रखती है.

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