MP news-जिस फसल पर किसानों की लाखों रुपए की लागत आ चुकी है, अब वह फसल कोड़ियों के भाव बिक रही है. दाम इतने कम हैं कि मंडी तक जाने के भी पैसे नहीं मिल पा रहे हैं. किसान अब इसे मंडी में बेचने की वजह मवेशियों को खिलाने पर मजबूर हैं.
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Low Tomato Price in MP-मध्यप्रदेश में एक बार फिर टमाटर ने किसानों को रुला दिया है, 3 महीने बाद तैयार हुई इस फसल ने किसानों के सपनों पर पानी फेर दिया है. जब फसल को लेकर किसान मंडियों में बेचने के लिए पहुंचे तो रेट सुनकर माथा पकड़ लिया. जिस फसल पर प्रति एकड़ 1 लाख रुपए तक खर्च कर दिए, उसके दाम 1 से 2 रुपए किलो मिल रहे हैं.
अब इस फसल को मंडी में ले जाकर बेचने की जगह मजबूरन किसान टमाटर को मवेशियों को खिला रहे हैं.
क्वालिटी पर भी नहीं है रेट
ये कहानी प्रदेश के हर उस किसान की है जिसने टमाटर की फसल लगाई है. पूरे प्रदेश में अच्छी क्वालिटी और बड़े साइज के टमाटर के रेट भी 2 से 3 रुपए किलो तक ही पहुंच रहे हैं. दूसरी ओर मंडी से निकलकर यह टमाटर लोगों को 8 से 10 रुपए किलो में मिल रहा है. भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर जैसे शहरों में भी किसान की फसल की यही हाल है.
पैदावार के कारण घटे रेट
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, इस साल प्रदेश में अच्छी बारिश हुई है. दूसरी और जनवरी-फरवरी में ओलोवृष्टि नहीं हुई और न ही ज्यादा दिन तक शीतलहर भी चली. इसी कारण प्रदेश में टमाटर की पैदावार भी बंपर हुई है. यह वजह है कि ज्यादा पैदावार किसानों के लिए मुसीबत बन गई.
तेजी से लुढ़के रेट
बता दें कि सीहोर, विदिशा, शिवपुरी, छिंदवाड़ा, सागर, सतना, दमोह, रायसेन, अनूपपुर, सिंगरौली, जबलपुर, रीवा, उज्जैन जिलों में टमाटर की पैदावार भी अच्छी हुई है. यहां दो तरह की फसलें ली गई है. पहली फसल खेतों में और दूसरी नेट या पॉली हाउस में. खेत में एक एकड़ में 500 से 600 क्विंटल तक और नेट-पॉली हाउस में 1500 क्विंटल तक पैदावार हुई है. इस वजह से हुआ ये की खपत से कई गुना ज्यादा टमाटर मंडियों में पहुंचा, जिस वजह से तेजी से रेट लुढ़क गए.
2 साल में बढ़ा उत्पादन
जानकारी के अनुसार, मध्यप्रदेश में पिछले 2 सालों में टमाटर का उत्पादन करीब 5 लाख मीट्रिक टन तक बढ़ा है. साल 2022 में यह 32.73 मीट्रिक टन हुआ था. अब यह बढ़कर 36 लाख 94 702 मीट्रिक टन हो गया है. प्रति हेक्टेयर के टमाटर की उत्पादन की लागत 88-90 हजार रुपए आती है. वहीं, 600 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से उत्पादन के मान से चार लाख 80 हजार रुपए तक कमाई हो जाती है. वहीं किसानों का कहना है कि इसमें कई बार लागत एक से डेढ़ लाख रुपए तक पहुंच जाती है.
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