प्रदेश में पहली बार आयोजित किए गए नेशनल ट्राइबल डांस फेस्टिवल में देश के 25 राज्यों के साथ ही छे देशों के 18 सौ से अधिक कलाकार शामिल हुए.
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रायपुर: छत्तीसगढ़ की अनोखी आदिवासी संस्कृति,लोककला और पर्यटन को राष्ट्रीय पहचान दिलाने के लिए राज्य सरकार की ओर से एक कदम उठया गया. जिसमें 27 दिसंबर से लेकर 29 दिसंबर तक रायपुर के साईंस कॉलेज ग्राउंड में राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव का आयोजन किया गया. प्रदेश में पहली बार आयोजित किए गए नेशनल ट्राइबल डांस फेस्टिवल में देश के 25 राज्यों के साथ ही छे देशों के 18 सौ से अधिक कलाकार शामिल हुए. इस आयोजन में बेलारूस, युगांडा, थाईलैण्ड, श्रीलंका, मालद्वीव, बांग्लादेश के आदिवासी कलाकारों ने अपनी प्रस्तुति दी. कार्यक्रम का शुभारंभ 27 दिसम्बर को सुबह करीब 10:30 बजे कांग्रेस सांसद राहुल गांधी और सीएम भूपेश बघेल द्वारा किया गया.
छत्तीसगढ़ में बड़ी संख्या में जनजातियां निवास करती हैं, लगभग 32 प्रतिशत आबादी जनजातियों की हैं. यहां 44 प्रतिशत भू-भाग पर वन हैं. हिमालय की तराई के बाद सबसे ज्यादा नदी नाले यहां पर हैं, यहां कूत खनिज सम्पदा है. उर्वरा धरती और मेहनत कश किसान भी यहां मौजूद हैं. राज्य की पहचान धान के कटोरे के रूप में पूरे देश में की जाती है. यहां आदिवासी विकास की मुख्य धारा से कदम ताल करने के साथ ही आज भी अपनी संस्कृति को समेटे और सहेजे हुए हैं. इस बात से दुनिया को रूबरू कराने और दूसरे राज्यों और विभिन्न देशों की कला-संस्कृति से जोड़ने ये आयोजन किया गया.
पहला दिन
लोक सभा सांसद राहुल गांधी और सीएम भूपेश बघेल ने महोत्सव का शुभारंभ किया, इस मौके पर राहुल गांधी ने कहा कि आदिवासियों और सभी वर्गों को जोड़कर ही देश की तरक्की का रास्ता निकलेगा. सभी वर्गों और लोगों को जोड़ना और सभी को साथ लेकर चलना हमारी सांस्कृतिक पहचान है, और यही भावना इस महोत्सव में दिख रही है. इस महोत्सव में आदिवासी संस्कृति और इतिहास को जानने और समझने का बेतहर मौका मिल रहा है. राहुल गांधी ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा किए जा रहे कार्यों की प्रशंसा करते हुए कहा कि आदिवासी समुदाय की बेहतरी के लिए राज्य सरकार ने उनकी जमीन वापस की है, तेन्दूपत्ते की पारिश्रमिक दर भी बढ़ाई है. कुपोषण को दूर करने के लिए सुपोषण अभियान और मुख्यमंत्री हाट बाजार क्लीनिक योजना चलाई जा रही है, इसके सुखद परिणाम मिल रहे हैं और छत्तीसगढ़ में हिंसा में भी कमी आयी है, क्योंकि सरकार लोगों की आवाज सुन रही है. यहां की विधानसभाओं में भी सभी की आवाज सुनाई दे रही है.
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इस अवसर पर कहा कि हम आदिवासियों की कला संस्कृति, परम्परा और धरोहर को संरक्षित करने का प्रयास कर रहे हैं. अनेकता में एकता हमारी पहचान है और ताकत भी. हमने किसानों का विश्वास जीता, आदिवासियों की लोहण्डीगुड़ा में उनकी जमीन वापस की, बस्तर अंचल में सुपोषण अभियान की शुरूआत की और उनके स्वास्थ्य के लिए हाट बाजार में क्लिनिक योजना की भी शुरूआत की. आज हमारी सरकार के कार्यों से छत्तीसगढ़ में सर्वत्र शांति व्याप्त है.
दंतेवाडा जिले को पिछड़े जिले के अभिशाप से मुक्ति दिलाने का संकल्प
मुख्यमंत्री बघेल ने दंतेवाड़ा जिले में गरीबी रेखा का प्रतिशत राष्ट्रीय औसत से कम करने का संकल्प लिया. वर्तमान में दंतेवाड़ा जिले में 60 लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करते हैं जबकि राष्ट्रीय औसत 22 प्रतिशत है. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और मंत्रिमण्डल के सभी सदस्यों ने आने वाले 4 वर्षों में इसे राष्ट्रीय औसत से कम करने का संकल्प लिया, ताकि दंतेवाडा जिले को सार्वधिक पिछड़ा जिला होने के कलंक से मुक्ति मिल सके.
मांदर की थाप पर थिरके राहुल गांधी और अतिथि
राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव के शुभारंभ मौके पर पहुंचे सांसद राहुल गांधी का आदिवासियों ने परंपरागत वाद्य यंत्रों और नृत्य के साथ स्वागत किया. शुभारंभ अवसर पर छत्तीसगढ़ के लोक नृत्य दल के द्वारा जब मुख्य मंच पर प्रस्तुति दी जा रही थी तब राहुल गांधी भी खुद को रोक नहीं पाए और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के साथ मुख्य मंच पर पहुंच गए और एक कलाकार से मांदर लेकर खुद बजाने लगे साथ ही बाकी कलाकारों के साथ लय मिलाकर जमकर थिरके. उनके साथ मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, संसकृति मंत्री अमरजीत भगत और अन्य अतिथियों ने भी नृत्य कर नर्तक दलों का उत्साहवर्धन किया.
राजधानी रायपुर में आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव के पहले दिन कलाकारों ने आदिवासी संस्कृति की रीति-रिवाजों और परम्परा की आकर्षक तरीके से प्रस्तुति ने दर्शकों को मन्त्र मुग्ध कर दिया. पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश के भील जनजाति द्वारा प्रस्तुत भगोरिया नृत्य ने समा बांध दिया. इस नृत्य में युवक-युवतियां फूलों से सुसज्जित डंडे हाथ मे लेकर मनमोहक नजारा प्रस्तुत करते नजर आए. केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख से पहुंचे लोक नर्तकों ने जनजातियों की वैवाहिक परम्परा का बखूबी प्रदर्शन किया. उनके द्वारा परम्परागत वेशभूषा धारण कर वैवाहिक दृश्य का जीवंत मंचन किया गया. महाराष्ट्र की प्रसिद्ध तड़पा नृत्य वहां की वारली जनजाति द्वारा किये जाने वाला एक खास नृत्य है, जिसे दर्शकों का भरपूर प्यार मिला. ताड़ के पेड़ से बने वाद्य यंत्र आकर्षण का केंद्र रहा. राजस्थान से आये कालबेलिया जनजाति समूह द्वारा संगीतमय प्रस्तुति दी गयी. संगीत के साथ घुम्मर शैली में इस नृत्य का गजब का सयोजन दिखाई दिया. राजस्थान की इस समूह को दर्शकों ने खूब प्यार दिया. केरल राज्य की तैय्यम डांस अपनी अद्भुत वेशभूषा और नृत्य के लिए दर्शकों के मन मे गहरी छाप छोड़ी. यह डांस देवी देवताओं के पूजा अर्चना के अवसर पर जनजातीय समूह द्वारा किया जाता है. वाद्य यंत्रों की थाप पर देवालय में की गयी पूजा अर्चना और अनुष्ठान के इस दृश्य ने भाव विभोर कर दिया. सिक्किम से आये युवा कलाकारों ने वहां की प्रचलित तमांग शेला नृत्य को शानदार तरीके से प्रस्तुत किया, इसे दांबु नाच भी कहा जाता है. रोमांस का यह संगीतमय प्रस्तुति युवाओं में आकर्षण का केंद्र रहा. देवभूमि उत्तराखंड के भोटिया जनजाति के नर्तक दलों ने मुखौटा नृत्य अलग ही अंदाज में प्रस्तुत किया, यह नृत्य फसल कटाई के बाद महिला और पुरुषों द्वारा सामुहिक रूप से किया जाने वाला नृत्य है. इसमें नृत्य के माध्यम से अपने पूर्वजों को आमंत्रित किया जाता है. महाराष्ट्र के विदर्भ अंचल की रेला वहां की गोंड व प्रधान जनजाति द्वारा वैवाहिक अवसरों पर किया जाने वाला नृत्य है. नृत्य की खूबसूरत प्रस्तुति ने दर्शकों को भी झूमने पर मजबूर कर दिया. युवक युवतियों द्वारा किया गया सामूहिक नृत्य अपने पारम्परिक पोशाक में दर्शकों का ध्यान खिंच रही थी. वहीं युगांडा, बेलारुश, मालदीव और थाईलैंड के कलाकारों ने अपने परफार्मेंस से समा बांध दिया.
दूसरा दिन
रायपुर में चल रहे राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव के दूसरे दिन शनिवार को राज्यपाल अनुसुईया उईके, नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक, सीएम भूपेश बघेल सहित पक्ष-विपक्ष के अन्य नेता शामिल हुए, दूसरे दिन भी सीएम भूपेश बघेल सहित अन्य अतिथी मालदीव और थाईलैंड के कलाकारों के साथ थिरकते नजर आए. दूसरे दिन मालदीव और युगांडा से आए कलाकारों ने सबको चौंका दिया. मालदीव के कलाकार जब मंच पर पहुंचे तो वहां मौजूद दर्शक को लगा कि अपनी संस्कृति से रूबरू कराएंगे, लेकिन अचानक कलाकार हिन्दी फिल्मी गीत गाने लगे. विदेशी कलाकारों को हिंदी गीत गाते और डांस करते देख लोगों ने भी तालियों से उनका हौंसला बढ़ाया. बाद में कलाकारों ने विवाह के अवसर पर किया जाने वाला पारंपरिक नृत्य बेजोबेरो की भी प्रस्तुति दी, इसके अलावा युगांडा और थाईलैंड से आए नर्तक दल के कलाकारों ने भी अपनी प्रस्तुति से सबका मन मोह लिया, युगांडा के कलाकारों का डांस देखकर दर्शकों में बेहद उत्साह नजर आया. तीन दिवसीय महोत्सव के दूसरे दिन की शुरुआत राजस्थान के गवरी, गुजरात के डांगी, अंडमान के निकोबारी और तमिलनाडु व उत्तराखंड के पारंपरिक नृत्यों से हुई. राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव के दौरान दूसरे दिन लद्दाख से आए कलाकारों ने विवाह संस्कारों को मंच पर जीवंत किया. राजस्थान के कलाकारों ने कालबेलिया नृत्य प्रस्तुत किया. लद्दाख से आए आदिवासी कलाकारों ने मंच पर नृत्य के माध्यम से अपने विवाह संस्कारों की झलक दिखाई, इनके अलावा गुजरात, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, असम और मध्य प्रदेश के कलाकारों ने नृत्य किया. वहीं बांग्लादेश, श्रीलंका, मालदीव, यूगांडा के कलाकारों ने अपनी संस्कृति और नृत्य से मन मोह लिया। महोत्सव के लिए चार हजार दर्शकों की क्षमता वाला विशाल डोम तैयार किया गया है. इसमें ग्रीन रूम, फूड जोन और शिल्प ग्राम भी सजा है.
तीसरा और आखिरी दिन
आखिरी दिन समापन समारोह में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बड़ी घोषणा करते हुए कहा, कि अब हर साल राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव का आयोजन किया जाएगा. यह आयोजन राज्योत्सव के साथ होगा, राज्योत्सव कुल पांच दिनों को होगा, इसमें पहले दो दिन राज्य के स्थानीय कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन करेंगे और उसके बाद शेष तीन दिन राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव का आयोजन किया जाएगा.
समापन कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि महाराष्ट्र विधानसभा के अध्यक्ष नानाभाऊ पटोले ने कहा, कि छत्तीसगढ़ सरकार ने आदिवासियों की कला एवं संस्कृति को देश-दुनिया में पहुंचाने और आदिवासियों में नई ऊर्जा लाने का काम किया है. राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव में कलाकारों ने चार श्रेणीयों में अपने नृत्य का प्रदर्शन किया. इसमें पहले विवाह एवं अन्य संस्कार, दूसरा पारंम्परिक त्यौहार एवं अनुष्ठान, तीसरा फसल कटाई एवं कृषि तथा अन्य पांरम्परिक विधाएं शामिल रहीं. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने नृत्य महोत्सव में आयोजित प्रतियोगिता के विजेता नृतक दलों को पुरस्कार राशि, प्रशस्ति पत्र और स्मृति चिन्ह प्रदान कर उन्हें सम्मानित किया. प्रत्येक श्रेणी के लिए प्रथम पुरस्कार के रूप में नृतक दल को पांच लाख रूपए की राशि, द्वितीय पुरस्कार के रूप में तीन लाख रूपए की राशि, तृतीय पुरस्कार में दो लाख रूपए और सांत्वना पुरस्कार के रूप में नर्तक दलों को 25-25 हजार रूपए के चेक प्रदान किए गए. विवाह एवं अन्य संस्कार श्रेणी में प्रथम पुरस्कार- गौर माड़िया छत्तीसगढ़ चंदन सिंह बघेल दल को दिया गया. इस श्रेणी में द्वितीय पुरस्कार डमकच झारखंड के किशोर नायक दल, तृत्तीय पुरस्कार (संयुक्त रूप से) विवाह नृत्य लद्दाख के सोनम सोपेरी टीम एवं तमांग सेलो, सिक्किम गायत्री राय की टीम को प्रदान किया गया. इस श्रेणी में सांत्वना पुरस्कार कयांग, हिमांचल बृजलाल दल को दिया गया.
द्वितीय श्रेणी पारंम्परिक त्यौहार एवं अनुष्ठान में प्रथम पुरस्कार सिंगारी ओडिसा के ध्यानानंद पेडा दल को, द्वितीय पुरस्कार तारपा, महाराष्ट्र के राजन वैद्य दल एवं तृतीय पुरस्कार (संयुक्त रूप से) छाऊ, झारखंड प्रभात महतो दल एवं कोमकोया, आंध्रप्रदेश मधु को तथा सांत्वना पुरस्कार सगोरिया, मध्यप्रदेश गोविंद गहलोत को प्रदान किया गया.
तृतीय श्रेणी फसल कटाई एवं कृषि में प्रथम पुरस्कार करमा तिहार, बिहार के रणधीर दल, द्वितीय पुरस्कार झिंझी, उत्तर प्रदेश श्री बंटी राणा दल तथा तृतीय पुरस्कार (संयुक्त रूप से) ममीता, त्रिपुरा, अशोक बर्मन टीम एवं टोडा, तमिलनाडु असमामल्ली टीम तथा सांत्वना पुरस्कार लम्बाड़ी तेलंगाना चंदू नायक दल को दिया गया. चतुर्थ श्रेणी में अन्य पांरम्परिक विधाएं में प्रथम पुरस्कार बगड़वाल उत्तराखंड प्रेम हिंदवाल, द्वितीय पुरस्कार गद्दीराम हिमांचल के प्यारेलाल तथा तृतीय पुरस्कार (संयुक्त रूप से) राढवा गुजरात राजेश राढवा और डाग गुजरात पवन बादल तथा सांत्वना पुरस्कार इदु, अरूणाचल के टेशी मित्री को दिया गया.
राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव के तीसरे और अंतिम दिन भी रंगारंग प्रस्तुतियों ने लोगों को देर रात तक बांधे रखा. दर्शकों और समापन समारोह में शामिल होने आए अतिथियों ने देर रात तक छत्तीसगढ़, दूसरे राज्यों एवं विदेश से पहुंचे दलों द्वारा प्रस्तुत मनमोहक नृत्यों का आनंद लिया. महोत्सव में विजेता दलों को पुरस्कार वितरण के बाद झारखंड के छाऊ नृत्य, लद्दाख के विवाह नृत्य, गुजरात के सिद्धिधमाल, केरल के तय्यम नृत्य, त्रिपुरा के संगराई, ममिता व होजगिरी नृत्यों के साथ ही थाईलैंड, यूगांडा और बेलारूस की प्रस्तुतियों ने लोगों को देर रात तक बांधे रखा.