अजब MP में गजब आस्था, मन्नत पूरी करवाने के लिए गायों से खुद को रौंदवाते हैं लोग
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अजब MP में गजब आस्था, मन्नत पूरी करवाने के लिए गायों से खुद को रौंदवाते हैं लोग

सदियों से चली आ रही गौरी पूजन की परंपरा की तैयारियों में जुट जाते हैं. लोग अपनी गायों को तैयार करते हैं.

गांव में प्राचीन मान्यता है कि मां गौरी का रूप यानि की गो माता सुख समृद्धि और शांति का प्रतीक है.

उज्जैन: हिंदुस्तान ने आज वैज्ञानिक तरक्की के जरिये भले ही दुनिया भर में अपनी मजबूत पहचान बना ली हो. लेकिन, 21वीं सदी में जी रहे भारत देश में आज भी परंपरा और आस्था का बोलबाला है. वहीं, जब आस्था और परंपरा में हदें पार हो जाएं, तो आस्था और अंध विश्वास में फर्क करना मुश्किल हो जाता है. उज्जैन के एक गांव में ऐसी ही एक परंपरा सदियों से चली आ रही है. दरअसल, भीड़ावद गांव में दीपावली के दूसरे दिन दर्जनों लोग मन्नतें लेकर सैकड़ों गायों के पैरों तले रौंदे जाने के लिए लेट जाते हैं. कुछ ही पलों में सैकड़ों गायें जमीन पर लेटे लोगों के ऊपर से गुजर जाती हैं. 

दीपावली के दूसरे दिन उज्जैन से 75 किमी दूर भीड़ावद गांव के लोग सूरज निकलने के पहले ही उठ जाते हैं. सदियों से चली आ रही गौरी पूजन की परंपरा की तैयारियों में जुट जाते हैं. लोग अपनी गायों को तैयार करते हैं. सैकड़ों गायों को नहलाया जाता है और इनको आकर्षक रंग से सजाया जाता है. इसके  बाद गांव के लोग चौक पर जमा होते हैं. जहां से मन्नत मांगने वाले लोगों का जुलूस निकालता है. जुलूस खत्म होने के बाद गांव के मुख्य मार्ग पर ये लोग मुंह के बल जमीन पर लेट जाते हैं. इसके बाद गांव की सैकड़ों गायें दौड़ते हुए इनके ऊपर से गुजरती हैं. गांव के लोग बताते हैं कि ये परंपरा सैकड़ों सालों से चली आ रही है.

गांव में प्राचीन मान्यता है कि मां गौरी का रूप यानि की गो माता सुख समृद्धि और शांति का प्रतीक है. शास्त्रों में भी गो माता के शरीर में 33 करोड़ देवताओं वास बताया गया है. गांव के लोग मन्नत मांगने वालों को साथ लेकर चौक में जमा होते हैं. यहां पर मां गौरी (गो माता) का पूजन किया जाता है. बताया जाता है कि मन्नत मांगने वाले लोगों को दीपावली से पांच दिन पहले से ही माता भवानी के मंदिर में अपना घर छोड़कर रहना पड़ता है.

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