हमद अली रतलाम शहर के काजी हैं और पुष्पेंद्र फलोदीया ने होश संभाला है उनके पिता द्वारा निभाई जा रही इस परंपरा को वो भी निभा रहे हैं.
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रतलाम: ईद कुछ खास होती है. यहां ईद पर वर्षों से निभाई जा रही पुरानी परंपरा आज भी आपसी भाईचारे और धार्मिक सौहार्द के संदेश देती है. दरअसल, रतलाम में प्राचीन बड़ी ईदगाह पर शहर काजी ईद की नमाज अदा करवाते हैं. ईद की नमाज के बाद शहर काजी एहमद अली बग्गी में सवार होकर सबसे पहले रतलाम के फलोदी परिवार के घर जाते हैं. जहां, काज़ी साहब का सम्मान होता है और उनका दूध से मुह मीठा करवाया जाता है. यह परंपरा वर्षों पहले हुए शहर काजी और फलोदीया परिवार के पुरखों ने शुरू की थी लेकिन आज भी शहर काजी और फलोदीया परिवार इस परंपरा को निभाते चले आ रहे हैं.
फिलहाल जब से अहमद अली रतलाम शहर के काजी हैं और पुष्पेंद्र फलोदीया ने होश संभाला है उनके पिता द्वारा निभाई जा रही इस परंपरा को वो भी निभा रहे हैं. इस बार भी इसी धार्मिक सौहार्द की परंपरा के चलते शहर के काज़ी अहमद अली ईद की नमाज के बाद रतलाम के पुष्पेंद्र फलोदीया के घर पहुंचे. यहां पुष्पेंद्र फलोदीया ने शहर के काजी का सम्मान किया और ईद की मुबारकबाद दी और दूध पिलाकर उनका मुंह मीठा करवाया.
शहर काजी भी इस परंपरा को सालों पुरानी बताते हुए कहते हैं कि यह परंपरा आपसी प्रेम को बढ़ाती है. एक भाईचारे का संदेश देती है. हम इस परंपरा को जब से होश संभाला है तब से निभाते आ रहे हैं. वही पुष्पेंद्र फलोदीया बताते हैं कि हमारे दादा परदादा के समय से यह परंपरा चली आ रही है. हमारा बेटा सिंगापुर चला गया लेकिन साल में किसी भी एक ईद पर वह रतलाम आता है और इस परंपरा में परिवार के साथ शामिल होता है. हमारे बाद भी यह परंपरा निभाई जाएगी.