बीजेपी शासित तीन राज्यों की सरकारें एससी/एसटी कानून पर दायर करेंगी पुनर्विचार याचिका
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बीजेपी शासित तीन राज्यों की सरकारें एससी/एसटी कानून पर दायर करेंगी पुनर्विचार याचिका

शीर्ष अदालत ने हाल में एससी/एसटी अधिनियम के कथित दुरुपयोग को रोकने के लिए दिशा-निर्देश तय किए थे. 

बीजेपी शासित तीन राज्यों की सरकारें एससी/एसटी कानून पर दायर करेंगी पुनर्विचार याचिका

नई दिल्ली: बीजेपी शासित तीन राज्यों की सरकारों ने अनुसूचित जाति / जनजाति अधिनियम पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर फिलहाल अमल नहीं करने और उक्त निर्देश के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल करने का निर्णय किया है. पार्टी के एक नेता ने मंगलवार को यह जानकारी दी. छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान सरकारों ने कथित रूप से आदेश को लागू करने के लिए कदम उठाए थे लेकिन अब उन्होंने फैसला किया है कि फैसले को अमल में नहीं लाया जाए और पुनर्विचार याचिका दाखिल की जाए. 

बीजेपी के एक नेता ने नाम न उजागर करने की शर्त पर बताया, "हमने इन मुख्यमंत्रियों से बात की है और उनकी सरकारें जल्द ही अदालत में पुनर्विचार याचिका दायर करेंगी. यह स्वाभाविक है कि न्यायालय द्वारा अंतिम फैसला करने तक आदेश को अमल में नहीं लाया जाएगा." 

शीर्ष अदालत ने हाल में एससी/एसटी अधिनियम के कथित दुरुपयोग को रोकने के लिए दिशा-निर्देश तय किए थे. दलित संगठनों के बड़े पैमाने पर इसका विरोध किया और कहा था कि यह दिशा निर्देश कानून को कमजोर करते हैं और इससे अनुसूचित जाति और जनजाति समुदायों के प्रति अत्याचार के मामलों में इजाफा होगा . इन विरोध प्रदर्शनों के मद्देनजर केंद्र पहले ही सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर कर चुका है. 

सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च के अपने आदेश में कहा था कि कानून का दुरुपयोग करके बेगुनाह नागरिकों को आरोपी बनाया जा रहा है और लोक सेवकों को अपनी ड्यूटी करने से रोका जा रहा है. जब अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति ( अत्याचार निवारण ) अधिनियम बनाया गया था तब इसकी यह मंशा नहीं थी.

विपक्षी दलों ने इस मुद्दे को लेकर बीजेपी पर निशाना साधा था. रिपोर्टों के मुताबिक, छत्तीसगढ़ , मध्य प्रदेश और राजस्थान की सरकारों ने हाल में अपने पुलिस प्रमुखों को सुप्रीम कोर्ट के 20 मार्च के आदेश को लागू करने के लिए आधिकारिक आदेश जारी किए थे.

इस मुद्दे पर रामविलास पासवान और रामदास अठावले समेत बीजेपी नीत एनडीए के बहुत से दलित सांसदों ने मोदी से मुलाकात कर चिंता जताई थी और मांग की थी कि केंद्र को इस आदेश को चुनौती देनी चाहिए. इसके बाद प्रधानमंत्री मोदी ने भी कहा था कि उनकी सरकार इस कानून को कमजोर करने की अनुमति नहीं देगी. 

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