Analysis: 2023-24 के चुनाव में कितने अहम हैं आदिवासी, अमित शाह के दौरे के सियासी मायने
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Analysis: 2023-24 के चुनाव में कितने अहम हैं आदिवासी, अमित शाह के दौरे के सियासी मायने

अमित शाह राजधानी भोपाल के जंबूरी मैदान में होने वाले वनोपज तेंदू पत्ता संग्राहक सम्मेलन शामिल होंगे. यह आयोजन मध्य प्रदेश की आदिवासी आबादी के लिए महत्वपूर्ण है.

Analysis: 2023-24 के चुनाव में कितने अहम हैं आदिवासी, अमित शाह के दौरे के सियासी मायने

अर्पित पांडे/भोपाल। हाल ही में हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में मिली जीत से उत्साहित बीजेपी ने 2023 में होने वाले विधानसभा चुनावों की तैयारियां भी शुरू कर दी हैं. मध्य प्रदेश में 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव पर देशभर की नजरें होगी. यही वजह है कि बीजेपी का सबसे ज्यादा फोकस मध्य प्रदेश पर ही है. ऐसे में पार्टी ने अभी से 2023 के लिए जमीन तैयार करना शुरू कर दिया है. यही वजह है कि बीजेपी के चाणक्य कहे जाने वाले केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह खुद अभी से मोर्चा संभालते दिख रहे हैं. अमित शाह 22 अप्रैल को मध्य प्रदेश के दौरे पर पहुंच रहे हैं,  अमित शाह राजधानी भोपाल के जंबूरी मैदान में होने वाले वनोपज तेंदू पत्ता संग्राहक सम्मेलन शामिल होंगे. यह आयोजन मध्य प्रदेश की आदिवासी आबादी के लिए महत्वपूर्ण है जिसमें अमित शाह का शामिल होना भी बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है. जिसके पीछे की कहानी हम आपको बताने की कोशिश कर रहे हैं. 

आदिवासी वोटबैंक पर बीजेपी की नजर 
दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बाद अमित शाह बीजेपी के दूसरे ऐसे बड़े नेता है जो मध्य प्रदेश में आदिवासी वर्ग के लिए आयोजित होने वाले किसी बड़े कार्यक्रम में पहुंच रहे हैं. शाह के इस दौरे को आदिवासियों को 2023 के विधानसभा चुनाव के मद्देनजर लुभाने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है. जिसकी कई वजह हैं. क्योंकि मध्य प्रदेश में 2 करोड़ से ज्यादा आदिवासी आबादी है, 43 समूहों में बटा प्रदेश का आदिवासी वर्ग राज्य की 230 विधानसभा सीटों में से 87 विधानसभा सीटों पर सीधा असर डालता है. जिनमें से 47 सीटें आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित हैं. 

MP में बीजेपी के लिए क्यों है अहम है शाह का दौरा?
प्रदेश के आदिवासी मतदाताओं को लुभाने के लिए अमित शाह का यह दौरा 2023 विधानसभा चुनाव के लिहाज से बीजेपी के लिए बेहद अहम माना जा रहा है. प्रदेश के मालवा-निमाड़, महाकौशल और विंध्य ऐसे अंचल हैं, जहां आदिवासियों की तादाद काफी ज्यादा है. सियासी जानकार कहते हैं कि चुनाव में जिस पार्टी को इस वर्ग का साथ मिलता है उसका सत्ता पर पहुंचना तय माना जाता है. 2013 के विधानसभा चुनाव में आदिवासी वर्ग ने बीजेपी को जमकर वोट किया और बीजेपी ने 87 सीटों में से 59 सीटों पर जीत दर्ज करते हुए बंपर बहुमत से सत्ता में वापसी की थी. लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में यह वर्ग भाजपा से छिटकता नजर आया और पार्टी को इन 87 में से सिर्फ 34 सीटों पर जीत मिली थी. ऐसे में पार्टी अब आदिवासी वोट बैंक को साधने की रणनीति पर काम कर रही है. राजनीतिक जानकारों का कहना है कि अमित शाह अपने इस दौरे से आदिवासियों को पार्टी से जोड़ने के अभियान में जान फूंकने की कोशिश करेंगे. यानी पीएम मोदी के बाद अमित शाह आदिवासी वर्ग को यह संदेश देने की कोशिश करेंगे की भाजपा आदिवासी समुदाय की हितेषी है. 

आदिवासी वर्ग ने कैसे तय करता है हार-जीत का समीकरण 
चुनावी मैनेजमेंट में माहिर अमित शाह इस बात को बखूबी समझते हैं कि किसी भी राज्य का कोई भी मजबूत वोटबैंक हार-जीत के लिए कितना अहम होता है. मध्य प्रदेश के पिछले कुछ चुनावी इतिहास पर नजर डाले तो यह बात स्पष्ट समझ में आती है कि कैसे प्रदेश की सियासत में आदिवासी वर्ग कैसे हार-जीत का समीकरण तय करता है. 

चुनावों में कैसे बदले समीकरण 

2003 विधानसभा चुनाव 
साल 2003 में हुआ विधानसभा चुनाव मध्य प्रदेश की राजनीति में बड़े बदलाव के तौर पर देखा जाता है, क्योंकि इस चुनाव में बीजेपी ने 10 सालों से सत्ता में जमी कांग्रेस को हटा दिया था. बीजेपी की इस जीत और कांग्रेस की इस हार में आदिवासी वर्ग ने ही बड़ा रोल निभाया था. दरअसल, उस वक्त आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित राज्य की 41 सीटों में से 37 सीटों पर बीजेपी ने कब्जा जमाया था. जबकि कांग्रेस केवल 2 सीटों पर सिमट गई थी, इसके अलावा गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने 2 सीटें जीती थी. इससे पहले 1998 के चुनाव में कांग्रेस का आदिवासी सीटों पर अच्छा खासा प्रभाव था. यानि आदिवासी वर्ग ने जैसे ही कांग्रेस से दूर हुआ उसकी सत्ता चली गई. 2003 के विधानसभा चुनाव में आदिवासियों के लिए 41 सीटें आरक्षित है. 

2008 विधानसभा चुनाव 
2008 विधानसभा चुनाव में हुए परिसीमन के बाद मध्य प्रदेश में आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों की संख्या 41 से बढ़कर 47 हो गई. हालांकि इस बार इस वर्ग का झुकाव कांग्रेस की तरफ भी हुआ. 2008 में भाजपा ने 29 सीटें जीती थीं, जबकि कांग्रेस ने 17 सीटों पर जीत दर्ज की थी. 

2013 विधानसभा चुनाव 
2013 के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 47 सीटों में से भाजपा ने जीती 31 सीटें जीती थीं, जबकि कांग्रेस के खाते में 15 सीटें आईं थीं. यानि 2013 में भी बीजेपी ने आदिवासी वर्ग पर अपनी पकड़ मजबूत रखी. 

2018 विधानसभा चुनाव में पलटा पांसा
2003 से 2013 तक बीजेपी की आदिवासी वर्ग पर मजबूत पकड़ रही. लेकिन 15 सालों से सत्ता से दूर कांग्रेस ने आदिवासी वर्ग के ऐसा रिझाया कि 2018 के इलेक्शन में पूरा पांसा ही पलट गया. आदिवासियों के लिए आरक्षित 47 सीटों में से भाजपा केवल 16 सीटें जीत सकी और कांग्रेस ने दोगुनी यानी 30 सीटें जीत ली. जबकि 1 सीट निर्दलीय ने जीती. अब तक बीजेपी के लिए जीत की गांरटी बने आदिवासियों ने कांग्रेस की नैया पार लगा दी 

हो सकती है कोई बड़ी घोषणा 
खास बात यह भी है कि अमित शाह के इस दौरे के दौरान सरकार की तरफ से कोई बड़ी घोषणा भी हो सकती है. सीएम शिवराज भी भोपाल में होने वाले कार्यक्रम में आदिवासियों के लिए कई ऐलान कर सकते हैं. क्योंकि यह पूरा आयोजन आदिवासी वर्ग पर फोकस है. 

क्या हो सकती है शाह की कोशिश 
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि बीजेपी किसी भी चुनाव में उतरने से पहले ही हर काम पर बारीक नजर रखती है. अमित शाह की नजर में भी 2018 में बीजेपी के लिए आया यह गैप होगा. ऐसे में माना जा रहा है कि बीजेपी अब इस गैप को भरने की कवायद में जुटी है. दरअसल, बीजेपी में अमित शाह संगठन को चलाने में सबसे मजबूत माने जाते हैं, यही वजह है कि बीजेपी ने उनके जरिए ही मध्य प्रदेश में आदिवासी जनाधार को वापस भाजपा के पाले में लाने की कवायत शुरू कर दी है क्योंकि अमित शाह इस मामले में माहिर है. 

बीजेपी कार्यकर्ताओं का जोश बढ़ाने पर भी होगी नजर 
आदिवासियों को लुभाने से इतर अमित शाह की कोशिश कार्यकर्ताओं का जोश बढ़ाने पर भी होगी. क्योंकि अमित शाह इस बात को बखूबी जानते हैं कि से पहले ही कार्यकर्ताओं को चुनावी मोड में लाने से पार्टी की राह आसान होगी. यही वजह है कि पिछले 7 महीनों के दौरान मध्य प्रदेश में यह उनका दूसरा दौरा है. इससे पहले वह जबलपुर पहुंचे थे. जबकि अब वह भोपाल पहुंच रहे हैं. अमित शाह से पहले खुद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा भी इंदौर पहुंचे थे. ऐसे में माना जा रहा है कि मध्य प्रदेश में बीजेपी अब पूरी तरह से खुद को चुनाव के लिए तैयार करना चाहती है.

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